बिलासपुर

बिलासपुर से बॉलीवूड तक का निर्देशक सुभाष जायसवाल का सफर….

(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर रतनपुर से बारह किमी दूर गांव परसदा (सिल्ली) में जन्में सुभाष जायसवाल आज मुंबई में बतौर निर्देशक के तौर पर अपना सिक्का जमा चूके है, गांव में प्राथमिक शिक्षा के बाद बिलासपुर में छत्तीसगढ़ और भारत माता स्कूल में शिक्षा प्राप्त कर स्नातक की डिग्री सीएमडी महाविद्यालय से हासिल की, सुभाष जायसवाल का बचपन से ही कला के प्रति रुझान था, स्कूल कॉलेज के सांस्कृतिक कार्यक्रमों में हमेशा सक्रिय रहे, फिर सृजन नाटय संस्था गठित कर सालों तक शहर और देश भर में नाटय मंचन किया।

• फिल्मी दुनिया में कुछ कर गुजरने की इच्छा लेकेर 2002 में मायानगरी मुंबई का रुख किया, काफी संघर्ष के बाद बालाजी टेली फिल्म में बतौर सहा. निर्देशक के रूप में फिल्मी सफर की शुरुआत की, उसके बाद जाने माने सिरियल -• जैसे “कसौटी जिंदगी की…केसर…कुमकुम …विरासत…. हम लड़किया… दुर्गेश नंदिनी… जिया जले.. मितवा “जैसे अनेको सिरियल में सहा निर्देशक के रूप में काम किया।

बतौर निर्देशक की शुरुआत “मेरा नाम करेगी रोशन” धारावाहिक से कि जो सफर शरु हुआ वह अब तक चल रहा है, सोनी, जीटीवी, स्टार पल्स, कलर्स, दूरदर्शन में प्रसारित हो रहे जैसे “मै घर घर खेली…सरस्वती चंद्र… महाकुंभ… जिंदगी की महक… कृष्णा चली लंदन….. गुड्डन तुमसे न हो पाएगा… क्यो रिश्तों म कट्टी बट्टी… पिंजरा… इस मोड़ से जाते है…..

” जैसे जाने माने धारावाहिक का सफल निर्देशन किया

चूंकि छत्तीसगढ़ में पले बढ़े सुभाष जायसवाल इतने वर्षों का अनुभव लेने के बाद छत्तीसगढ़ के लिए भी काम करना चाहते हे छत्तीसगढ़ की संस्कृति परंपरा से चित परिचित है अपने अनुभव के आधार पर अब वे छत्तीसगढ़ में भी स्वस्थ मनोरंजक फिल्मों और वेब सीरिज बनाने की प्लानिंग कर रहे है सुभाष जायसवाल का मानना है कि छत्तीसगढ़ी फिल्मों में शार्टकट में जल्द सफलता पाने कि कोशिश कि जा रही है, कम पैसे और कम मेहनत में ज्यादा पैसा कमाने की होड़ लगी … हुई है, जिसके चलते छत्तीसगढ़ की संस्कृति परंपरा संस्कार से इतर नकल करने कि प्रवृत्ति बढ़ रही है जबकि छत्तीसगढ़ में ढ़ेरों ऐसी मौलिक कहानियां है जिस पर काम किया जा सकता है, अभी तक शहरी दर्शको को हम अपने सिनेमा से जोड़ नही पाए हे, संगीत और इतिहास के पक्ष को ध्यान रखे तो छत्तीसगढ़ इन मामलों में काफी समृद्ध है, यहां कि बोली, संस्कृति, खान पान, रहन सहन, परंपरा का ध्यान रखते हुए कुछ अच्छा करने का इरादा है।

सुभाष जायसवाल का मानना है कि छत्तीसगढ़ में इसे लेकर अपार संभावनाएं है इसे लेकर मीडिया की भूमिका भी महत्वपूर्ण है, हम सब जब खुद अपनी भाषा, संस्कृति, लोक गीत, लोक कला, तीज त्यौहारों से प्यार नहीं करेंगे बाहर दुनिया को कैसे आकर्षित कर पाऐंगे, हम अपने भीतर जब तक खुद आकर्षित नहीं होंगे, बाहर वाले कैसे हमारी तरफ देखेंगे। जय जोहार, सुभाष जायसवाल, फिल्म निर्देशक, संपर्क:- 9821067795

Related Articles

Leave a Reply

Back to top button