छत्तीसगढ़

पुत्रवती माताओं ने संतान की दीर्घायु और कल्याण के लिए रखा उपवास और की  कमरछठ पूजा

(भूपेंद्र सिंह राठौर) : मंगलवार के दिन हल षष्ठी का व्रत किया गया । भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्ठी तिथि को श्री बलरामजी के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है। बलराम जी का प्रधान शस्त्र और मूसल है इसलिए इस दिन को हलषष्ठी, हरछठ या ललही छठ के रूप में जाना जाता है, मान्यताओं के मुताबिक, हल षष्ठी की पूजा करने से हर अधूरी चाह पूरी हो जाती है।

भाद्रपद माह में आने वाला हल षष्ठी का व्रत मंगलवार यानी पांच सितंबर को रखा गया। यह व्रत संतान के दीर्घायु, सुख व सौभाग्य के लिए रखा जाता है।

मान्यता है कि यह व्रत माताएं अपने पुत्रों की लंबी उम्र के लिए रखती हैं। इस दिन बलराम जयंती भी मनाई जाती है। पंडित जितेंद्र तिवारी ने बताया कि श्री बलराम को हलधर के नाम से भी जाना जाता है।

हल षष्ठी के दिन व्रत करने का भी विधान है। इस के दिन व्रत करने से श्रेष्ठ संतान की प्राप्ति होती है और जिनकी पहले से संतान है, उनकी संतान की आयु, आरोग्य और ऐश्वर्य में वृद्धि होती है।

हल षष्ठी के दिन श्री बलराम के साथ-साथ भगवान शिव, पार्वती जी, श्री गणेश, कार्तिकेय जी, नंदी और सिंह आदि की पूजा का विशेष महत्व बताया गया है। बलराम जयंती पर माताएं भगवान श्रीकृष्ण सहित उनके बड़े भाई बलराम की विधि-विधान से पूजा करती हैं और अपने बेटे की लंबी उम्र का आशीर्वाद मांगती हैं।

हल छठ व्रत के दौरान हल से जुते अनाज और सब्जियों का उपयोग नहीं किया जाता है। इस व्रत में केवल वही वस्तुएं खाई जाती हैं जो तालाब या बिना हल की जुताई वाले खेत में उगी होती हैं। जैसे तिन्नी चावल, केरमुआ सब्जी, पसही आदि से बना भोजन उपयोग होता है।

इस व्रत में किसी भी गो से बने उत्पाद जैसे दूध, दही आदि का उपयोग नहीं किया जाता। छठ व्रत के दौरान भैंस के दूध, दही और घी का उपयोग किया जाता है। व्रती महिलाएं कुश के पौधे का पूजन करती हैं। अंत में इकट्ठा होकर हल षष्ठी की कहानी सुनती हैं। इसके बाद वह प्रणाम करके पूजा समाप्त करती हैं।

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार बलराम जयंती, हल छठ या हल षष्ठी का व्रत संतान की लंबी उम्र और सुखी जीवन के लिए किया जाता है। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और भगवान बलराम व हल की विधि-विधान से पूजा करती हैं। इस दिन दान व पूजन करने से सुख सौभाग्य बना रहता है।

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