नवरात्रि पर नवा खाने की, रस्म की गई अदा
(मुन्ना पाण्डेय) : लखनपुर (सरगुजा) सदियों पुरानी चली आ रही परंपरा को कायम रखते हुए शारदीय नवरात्र के मौके पर जहां लोग शक्ति के भक्ति में डूबे रहे वहीं सरगुजा के मुख्य पर्वो में नवा खाने की भी प्राचीन प्रथा रही है।नवा खानी अपने आप में खास एहमियत रखता है इसे उत्सव के रूप में मनाया जाता है अश्विनी प्रतिपदा तिथि से लेकर पूर्णिमा तक नावां खाने की प्रक्रिया आमोखास लोगों द्वारा पूरी की जाती है। परंपरा रही है नवरात्रि में लोग अपने सुविधानुसार नये धान के तैयार चावल से नवा खाते हैं। ऐसी मान्यता है कि जब कोई व्यक्ति दूसरे गांव जाता है तो इतिफाक से नया चावल खाने की नौबत आ जाये तो ऐसी हालात में मां अन्नपूर्णा की पूजा अर्चना किये बिना वह नये धान के चावल से बने भोजन नहीं कर सकता । शायद इसी मर्यादा को बनाए रखने नवा खाने की रस्म पूरी की जाती है। क्षेत्र के लोगों ने नवाखाने चलन को आज भी जिंदा रखा है।
रिवाज के मुताबिक पहले नए धान अर्थात अन्नपूर्णा की विधिवत पूजा अर्चना की जाती हैं फिर नया धान के तैयार चावल से व्यंजन बनाकर पूरे शुद्धता से घी दूध दही के साथ ग्रहण करते हैं। वहीं आदीवासी बाहुल इलाकों में किसान वर्ग आपस में मिलजुल कर नवाखानी उत्सव हर्षोल्लास के साथ मनाते एवं भोजन करते हैं मुर्गे बकरे की बलि दी जाती है। चावल महुआ से बने कच्ची शराब पीने पिलाने का दौर भी चलता है । मादर के थापो पर करमा नृत्य भी किया जाता है नवा खाने की परंपरा सरगुजा में बहुत प्राचीन काल से रहा है नावा खाने में विशेषकर अग्रणी करहनी धान के चावल का उपयोग किया जाता है ।परंतु कालांतर में यदा-कदा छोड़कर करहनी धान नहीं मिलता। लिहाजा किसी भी धान से तैयार चावल का उपयोग नावां खाने में किया जाता है पुराने जमाने के सभी धानों के प्रजाति लगभग विलुप्त हो चुके है। बहरहाल क्षेत्र में नावा खाने का सिलसिला बदस्तूर जारी है ।