छत्तीसगढ़

खुश गवार माहौल में मनाया गया ईद- उल- अजहा

(मुन्ना पांडेय) : लखनपुर+(सरगुजा) :
स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने 29 जून बरोज जुमा को इस्लामिक त्योहार     बकरीद पूरे अकीदत के साथ मनाया।  बकरीद को ईद -उल- अजहा भी कहा जाता है।  क़ौम के लोगों ने नगर के ईदगाह में पूरे शिद्दत के साथ नमाज अदा किया।
जामा मस्जिद  के पेश इमाम अमीरूददीन कादरी के द्वारा नमाज अदा कराई गई।

नमाजियों ने एक दूसरे के गले मिलकर बकरीद की मुबारकबाद दिया इस मुबारक मौके पर मुस्लिम समुदाय के लोगों ने अपने सजदा -ऐ-इबादत में मुल्क के खुशहाली एवं अमन चैन के लिए दुआ मांगे।नमाज अदा कर  सलाम पढ़ने के बाद बकरीद के मौके पर  ग्राम जूनाडीह बंधा, स्थित बाबा जामा शाह रह0  अलै0 के मजार शरीफ में जियारत के  लिए मुस्लिम समुदाय के लोगों का  तांता लगा रहा। इस दौरान गौसिया कमेटी के सदर हाजी कयामुद्दीन अंसारी सेक्रेटरी मोहम्मद शमीम नायब सदर शाकिर अंसारी खजांची समीम खान नईमूल हक अंसारी कमेटी के सदस्य संरक्षक मुस्लिम समुदाय के लोग उपस्थित रहे ‌।


जश्ने बकरीद के मौक़े पर फातिहा पढ़ी गईं कौम के लोगों ने  एक दूसरे को  सिरनी सेवईया  खिलाया।
किसी भी पर्व त्यौहार को मनाये जाने के पीछे एक धार्मिक मान्यता   जुड़ी होती है ।


इस्लाम धर्म के मुताबिक ईद- उल- अजहा का मतलब कुर्बानी वाली ईद से है।ऐसा माना जाता है ईद- उल -फितर के बाद ये इस्लाम धर्म का दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है।
इस्लाम धर्म की मानें तो इस दिन बकरे की कुर्बानी दी जाती है। बकरीद मनाने के पीछे हज़रत इब्राहीम के जीवन से जुड़ी हुई एक बड़ी घटना है।


दरअसल इस्लाम धर्म के मुताबिक हज़रत इब्राहीम खुदा के बंदे थे। ख़ुदा पर बेहद यक़ीन था — कहा जाता है एक बार अल्लाह ने पैगंबर इब्राहिम से कहा था कि- वह अपने प्यार और विश्वास को साबित करने के लिए सबसे प्यारी चीज का त्याग करें। इसके बाद पैगंबर इब्राहिम ने अपने   बेटे की कुर्बानी देने का फैसला किया ।


इसके बाद पैगंबर इब्राहिम अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे थे तभी अल्लाह ने उनके बेटे को बचा लिया उसकी जगह पशु को कुर्बान कर दिया। तभी से  बकरीद का त्यौहार पैगंबर इब्राहिम को याद करने के लिए मनाया जाता है।
मुस्लिम समाज के लोग हर साल इस त्यौहार को बकरे की कुर्बानी देकर मनाते हैं बकरीद के दिन बकरे को तीन हिस्सों में बांटा जाता है ।पहला भाग रिश्तेदारों दोस्तों और पड़ोसियों को दिया जाता है, दूसरा हिस्सा गरीबों और जरूरतमंदों को तकसीम किया जाता है। और तीसरा हिस्सा परिवार के लिए होता है।


इस त्यौहार का एक दूसरा पहलू भी है कि नफरतों को दिल से मिटा कर आपसी प्रेम, भाईचारे को क़ायम रखते हुए अपने अंदर के बुराईयों का कुर्बानी देना ।
फिलहाल नगर लखनपुर सहित आसपास के मुस्लिम समुदाय के लोगों ने खुश गवार माहौल में ईद -उल -अजहा बकरीद  का त्योहार मनाया।

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