सुप्रीम कोर्ट भी, देश में समान नागरिक संहिता लागू न करने पर…कई बार कर चुका है केंद्र की खिंचाई……..
(शशि कोन्हेर): सुप्रीम कोर्ट ने देश में समान नागरिक संहिता लागू न किए जाने पर कई बार सवाल उठाए हैं। सुप्रीम कोर्ट ने यहां तक कहा कि संविधान के अनुच्छेद 44 की अपेक्षाओं के मुताबिक केंद्र सरकार ने समान नागरिक संहिता बनाने की कोई ठोस कोशिश नहीं की। सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता बनाने के संबंध में अप्रैल 1985 में पहली बार सुझाव दिया था। आइये जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट ने समान नागरिक संहिता लागू करने को लेकर कब-कब क्या कहा-
शाहबानो केस 1985
‘यह अत्यधिक दुख का विषय है कि हमारे संविधान का अनुच्छेद-44 मृत अक्षर बनकर रह गया है। यह प्रविधान कहता है कि सरकार सभी नागरिकों के लिए एक ‘समान नागरिक संहिता’ बनाए लेकिन इसे बनाने के लिए सरकारी स्तर पर प्रयास किए जाने का कोई साक्ष्य नहीं मिलता है। समान नागरिक संहिता विरोधाभासी विचारों वाले कानूनों के प्रति पृथक्करणीय भाव को समाप्त कर राष्ट्रीय अखंडता के लक्ष्य को प्राप्त करने में सहयोग करेगी।’
सरला मुदगल केस 1995
‘संविधान के अनुच्छेद 44 के अंतर्गत व्यक्त की गई संविधान निर्माताओं की इच्छा को पूरा करने में सरकार और कितना समय लेगी? उत्तराधिकार और विवाह को संचालित करने वाले परंपरागत हिंदू कानून को बहुत पहले ही 1955-56 में संहिताकरण करके अलविदा कर दिया गया है। देश में समान नागरिक संहिता को अनिश्चितकाल के लिए निलंबित करने का कोई औचित्य नहीं है। कुछ प्रथाएं मानवाधिकार एवं गरिमा का अतिक्रमण करती हैं। धर्म के नाम पर मानवाधिकारों का गला घोंटना स्वराज्य नहीं बल्कि निर्दयता है, इसलिए एक समान नागरिक संहिता का होना निर्दयता से सुरक्षा प्रदान करने और राष्ट्रीय एकता एवं अखंडता को मजबूत करने के लिए नितांत आवश्यक है।’