(आशीष मौर्य के साथ सुशांत सिंह) : बिलासपुर : मोर जमीन मोर आस योजना के तहत मकान पाने हितग्राही नगर निगम में आवेदन जमा कर रहे हैं, लेकिन आवेदन के साथ जो निवास और आमदनी प्रमाण पत्र संलग्न है, उसमें तहसीलदार और अतिरिक्त तहसीलदार के फर्जी सील और हस्ताक्षर है. लोकस्वर टीवी न्यूज़ चैनल ने जब मामले का खुलासा किया तो नगर निगम और राजस्व विभाग के अधिकारियों के होश उड़ गए. इधर तहसीलदार अतुल वैष्णव ने पूरे मामले को संज्ञान में लेते हुए कार्रवाई करने की बात कही है.
बिलासपुर नगर निगम सीमा क्षेत्र अंतर्गत रहने वाले किरायेदारों के लिए नगर निगम मोर जमीन मोर आस योजना के तहत 84 मकान उपलब्ध करा रहा है. इन मकानों की तुलना में करीब नगर निगम को 800 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए हैं. हितग्राहियों को यह मकान लाटरी पद्धति से दिया जाएगा. लेकिन अधिकतकर आवेदन के साथ जो निवास प्रमाण पत्र और आमदनी पत्र संलग्न किया गया है. उसमें तहसीलदार और अतिरिक्त तहसीलदार का फर्जी सील और हस्ताक्षर है.
लोकस्वर टीवी न्यूज़ चैनल ने जब पूरे मामले का खुलासा किया, तो पता चला कि अधिकतर प्रमाण पत्र फर्जी बनाए गये है. दरअसल बीते 5 साल से जाति निवास और आमदनी ऑनलाइन जारी किया जा रहा है जिसका बकायदा प्रकरण भी दर्ज किया जाता है. लेकिन जो नगर निगम में प्रमाण पत्र मैनुअली हाथ से जारी किया गया है व शिक्षा के लिए छात्र छात्राओं को जारी किया जाता है
लेकिन दलालों ने प्रमाण पत्र बनाने के नाम पर हितग्राहियों से ₹500 से लेकर हजार रुपए वसूल लिए और बदले में उन्हें फर्जी प्रमाण पत्र थमा दिया. बीते 1 महीने से मोर जमीन मोर आस योजना के तहत हितग्राहियो को आवेदन उपलब्ध कराए गए थे. 16 सितंबर के बाद जब आवेदन जमा किए गए तो 84 मकान की तुलना में 800 से अधिक आवेदन प्राप्त हुए।
लोकस्वर टीवी न्यूज़ चैनल ने जब आवेदन को करीब से देखा तो पता चला कि निवास और आमदनी प्रमाण पत्र में तहसीलदार अतुल वैष्णव और अतिरिक्त तहसीलदार राजकुमार साहू के सील और हस्ताक्षर फर्जी है. इस पूरे मामले में तहसीलदार अतुल वैष्णव ने नगर निगम को पत्र लिखकर ऐसे प्रमाण पत्रों को स्वीकार नहीं करने कहा है. साथ ही पूरे मामले में जांच कराने की भी बात कही है.
कौन बना रहा प्रमाण पत्र :- फर्जी प्रमाण पत्रों के संज्ञान में आने के बाद राजस्व महकमा पूरी तरीके से हरकत में आ गया है. अब इस पूरे मामले में हितग्राही के आवेदन के साथ लगे फर्जी प्रमाण पत्र की जांच कराई जाएगी. और संबंधित हितग्राही से पूछा जाएगा यह प्रमाण पत्र उसने किस से बनवाया है. जांच में बहुत ज्यादा परेशानी नहीं होगी. और दोषी का चेहरा बेनकाब होगा.
500 से 1000 रुपए में बनाए जा रहे प्रमाण पत्र :- जो बातें निकल कर सामने आ रही है जो प्रमाण पत्र फर्जी जारी किए गए हैं इसके पीछे दलालों ने 500 से ₹1000 लिए है.