छत्तीसगढ़

मनाया गया आस्था का पर्व गंगा दशहरा

(मुन्ना पांडेय) : लखनपुर+(सरगुजा) गंगा दशहरा जल के महत्ता को दर्शाती है। यही वजह है कि हिन्दू समाज में युग युगान्तर से इस पर्व को  पूरे आस्था विश्वास के साथ मनायै जाने की परिपाटी रही  है।


सदियों पुरानी परम्परा को कायम रखते हुए नगर सहित आसपास ग्रामीण अंचलों में  30   मई मंगलवार को गंगा अवतरण का  उत्सव गंगा दशहरा उत्साह के साथ मनाया गया।
रियासत कालीन प्रथा अनुसार नगर लखनपुर के प्राचीन दशहरा तालाब तट पर आसपास ग्रामीण अंचल से आये श्रद्धालुओं ने  मां गंगा के  पूजा अर्चना किये ग्राम बैगाओ द्वारा लोकरीति के मुताबिक पूजा अनुष्ठान कराया गया ।


इस अवसर पर शादी
विवाह में उपयोग किये गये कलश, मुकुट, पट मौरी कलगी   नौनिहालों के कटे नाभी, मुंडन संस्कार में उतरे सिर के  बाल  इत्यादि का विसर्जन गंगा  दशहरा के मौके पर किया जाता है इस रस्म को  लोगों ने बखूबी निभाया  यही गंगा दशहरा की रीति है।


साथ ही क्षेत्र के विभिन्न हिस्सों में धार्मिक पर्व गंगा दशहरा उत्साह के साथ मनाया गया।
गंगा दशहरा के मौके पर लगने वाले
मेले का लुत्फ लोगों ने उठाया।
धर्म ग्रंथों में ऐसा माना जाता है कि- जब मां गंगा स्वर्ग से धरती पर अवतरित हुई तो वह ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की दसवीं तिथि थी, तभी से इस तिथि को गंगा दशहरा के रूप में मनाया जाता है।


शास्त्रों में गंगा अवतरण के अनेकों उल्लेख मिलते है कपिल मुनि के श्राप से राजा सगर के साठ सहस्त्र पुत्र भस्म हो गये थे । सूरसरी यानी
मां गंगा को राजा भागीरथी ने अपने पूर्वजों के उद्धार के लिए घोर तपस्या कर स्वर्ग से धरती पर उतारा था।
इस दिन  गंगा स्नान करने से 10  पापों का नाश होता है तथा मां गंगा की पूजा करने से भगवान विष्णु की अनंत कृपा प्राप्त होती है।
हिन्दू त्योहारो में गंगा दशहरा को वर्ष का आखरी त्योहार माना जाता है। क्योंकि  हिन्दू  त्योहारों की श्रृंखला में नागपंचमी रक्षाबधन हरेली आदि के बाद  कतार से त्योहार मनाये जाने का सिलसिला    गंगा दशहरा एवं भीमसेनी एकादशी पर जाकर मुकम्मल होती है।
यही वजह है कि गंगा दशहरा को खास तौर पर पूरे उमंग के साथ मनाया जाता है।
सरगुजा जिले में गंगा दशहरा के मौके पर दादर गाने का चलन आज भी कहीं कहीं बरकरार है।
इसमें महिला पुरुष अपने लोक गायन विधा का प्रदर्शन करते हुए  एक दूसरे को  सवाल जवाब देते हैं। दादर  सरगुजा संस्कृति की पहचान रही है। दादर गायन को गंगा दशहरा का अभिन्न हिस्सा माना जाता है। दरअसल दादर आलाप के बिना गंगा दशहरा अधुरा सा लगता है।
कालांतर में दादर गाने की प्रथा प्रायः लुप्त होती जा रही है।
बहरहाल सोमवार एवं मंगलवार को श्रद्धालुओं ने  शुभमुहूर्त में गंगा दशहरा मनाया ।
तालाब जल सरोवरों के तट पर श्रद्धालुओं की काफी भीड़भाड़ देखी गई ‌। 
दशहरा के मौके पर लोग जहां खुशी का इजहार करते हुए  एक दूसरे को पकवान मिष्ठान  खिलाते हैं। वहीं
ग्रामीण अंचलों में पीने पिलाने का दौर भी चलता है।

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