बिलासपुर

“ए बाबू” डांडिया (गरबा) का एक “पास” दे दो बाबू…! पूरे शहर से आ रही एक यही आवाज…पास मंगईया की भीड़ से डरकर भाग रहे डांडिया आयोजक

(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – कार्यक्रम कोई भी हो…उसका पास हासिल करने का जूनून बिलासपुर वालों को दशकों से रहा है। बिलासपुर में बरसों पहले चाहे सुलक्षणा पंडित नाईट हो… अथवा गोविंदा नाईट.. या गरबा डांडिया का आयोजन…! लगभग पूरा शहर ही कार्यक्रम का पास मांगने के लिए आयोजकों और उनके जान पहचान वालों पर टूट पड़ता है। बरसों पहले हुए सुलक्षणा पंडित नाइट का पास नहीं मिलने से नाराज युवाओं ने ऐन वक्त पर लाल बहादुर शास्त्री स्कूल की लाइट गोल कर दी। जिससे वहां काफी भगदड़ मच गई और कार्यक्रम देखने पहुंची शहर की बहन बेटियों को बहुत फजीहत का सामना करना पड़ा था। इसके बाद रघुराज सिंह स्टेडियम में हुए गोविंदा नाइट कार्यक्रम के आयोजकों को भी पास मांगने वालों की फौज से भागना पड़ रहा था।

शहर में पास मांगने वालों की ऐसी ही भगदड़ हर साल नवरात्र पर आयोजित होने वाले गरबा और डांडिया के आयोजनों में भी देखी जाती है।‌ हालत यह हो जाती है कि आयोजन स्थल में अगर 1000 की लोगों की क्षमता रहती है। और तो चार- पांच हजार लोग पास मांगने आ धमकते हैं। ऐसे में आयोजक भी करें तो क्या करें..? चारों ओर से पास मांगने वालों की ये आवाज.. उन्हें पागल कर देती है…ऐ बाबू गरबा डांडिया का एक पास दे दे बाबू” आखिरकार उन्हें पास मांगने वालों की भीड़ से अपना पिंड छुड़ाने के लिए भूमिगत अथवा लापता हो जाना पड़ता है। इस साल भी नवरात्र में, डांडिया और रास गरबा का आयोजन करने वाले आयोजकों की हालत भी कुछ ऐसी ही हो गई है।

पूरा शहर दो तीन दिनों हफ्तो से पास-पास चिल्लाते हुए आयोजकों पर टूट पड़ा है। और आयोजक उन से डर कर अपना मोबाइल फोन बंद कर कहीं कोने में दुबके बैठे हैं। बिलासपुर में आज से रॉयल पार्क, रास डांडिया,नारी शक्ति (त्रिवेणी भवन) गुजराती समाज और गुजराती समाज पाटीदार भवन में रास गरबा, डांडिया का भव्य आयोजन हो रहा है। इनमें से गुजराती समाज टिकरापारा और पाटीदार भवन उसलापुर के आयोजन उनके अपने समाज के लिए प्राइवेट लिमिटेड जैसे हैं। उनमें दूसरों का प्रवेश प्रतिबंधित रहता है। इनको छोड़कर रायल पार्क और रास डांडिया तथा नारी शक्ति त्रिवेणी भवन में बड़े और अच्छे आयोजन आज गुरुवार शाम से शुरू होने हैं। लेकिन इनका पास मांगने वाले पंद्रह दिन से “पेट में सत्तू बांध कर” आयोजकों पर पिल पड़े हैं। इसके कारण ही चारों ओर से एक ही आवाज आयोजकों को सुनाई दे रही है..ऐ बाबू डांडिया का एक पास दे दे बाबू..!

किसी भी आयोजन में आयोजन करने वालों को काफी बड़ी रकम खर्च करनी पड़ती है। वहीं आयोजन में सहयोग करने वाले पुलिस प्रशासन और नेतानुमा सफेदपोश लोगों को पास देना उनकी मजबूरी है। अगर उन्हें पास नहीं दिया तो डांडिया और गरबा के आयोजन का भी वैसा ही हर्ष हो सकता है जैसा कई साल पहले म्युनिसिपल स्कूल के मैदान में सुलक्षणा पंडित नाइट का हुआ था। वैसे कभी-कभी आयोजन का खर्च निकालने के लिए प्रवेश पत्रों की एक मदद भी ली जाती है। जो साइलेंट रहती है। क्योंकि प्रवेश पत्र पर उसे (रकम को) छापने से आबकारी वाले राशन पानी लेकर धमक सकते हैं। इसलिए गोपनीय ढंग से प्रवेश पत्र के जरिए आयोजन के खर्च का कुछ हिस्सा इकट्ठा किया जाता है। लेकिन शहर के पास मांगने वालों की भीड़… ऐसा कुछ भी नहीं होने देती। इन्हीं पास मांगने वालों के कारण ही बिलासपुर में रायपुर और रायगढ़ कोरबा की तरह बड़े बड़े कार्यक्रम आयोजित नहीं होते। कौन बड़े-बड़े आयोजन कर, अपनी गईया गति कराना चाहेगा। इतने बवंडर के बाद भी अगर कोई आयोजक बिलासपुर में डांडिया, गरबा समेत कोई आयोजन करता है..तो उनके हिम्मत की दाद देनी होगी। “होम करके हाथ जलाना” शायद इसी को कहते हैं। बहरहाल, शहर में आज से शुरू हो रहे डांडिया गरबा के आयोजकों को, और हमें भी चारों ओर से यह आवाज आती सुनाई दे रही है…ऐ बाबू डांडिया गरबा का एक पास दे दो बाबू… अगर यह आवाज आपको सुनाई नहीं दे रही है…तो हमारी गारंटी है कि आप भी पास मंगईया ही होंगे… और आयोजकों के पीछे पडकर चिल्ला रहे होंगे…ऐ बाबू…रास डांडिया का ऐक पास दे दो बाबू..!

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