मंदिर या मस्जिद नहीं है ज्ञानवापी, ये बौद्ध मठ…’, धर्म गुरु ने SC में दायर की याचिका
(शशि कोन्हेर) : वाराणसी की ज्ञानवापी मस्जिद मामले में आज इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाते हुए ASI के सर्वे की इजाजत दे दी. दरअसल, 21 जुलाई को वाराणसी जिला जज ने ज्ञानवापी के ASI सर्वे का आदेश दिया था.
मुस्लिम पक्ष ने पहले सुप्रीम कोर्ट फिर हाईकोर्ट में ASI सर्वे के फैसले को चुनौती दी थी. अब हाईकोर्ट ने इस याचिका को खारिज कर दिया. इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा, न्यायहित में ASI का सर्वे जरूरी है. कुछ शर्तों के तहत इसे लागू करने की जरूरत है.
लेकिन इस मामले में एक नया मोड़ आज तब आ गया जब बौद्ध धर्म गुरु ने SC में दावा किया कि यह उनका मठ है. बौद्ध धर्म गुरु ने सुप्रीम कोर्ट में रिट दायर कर कहा कि ज्ञानवापी मंदिर या मस्जिद नहीं बल्कि बौद्ध मठ है. बौद्ध धर्म गुरु सुमित रतन भंते के मुताबिक देश में तमाम ऐसे मंदिर हैं, जो बौद्ध मठों को तोड़कर बनाए गए हैं.
ज्ञानवापी में पाए गए त्रिशूल और स्वस्तिक चिन्ह बौद्ध धर्म के हैं. केदारनाथ या ज्ञानवापी में जिसे ज्योतिर्लिंग बताया जा रहा है, वह बौद्ध धर्म के स्तूप हैं. ज्ञानवापी न मस्जिद है न मंदिर बल्कि बौद्ध मठ है.
सुमित रतन भंते ने देश में बौद्ध मठों की खोज शुरू की है. वे बोले कि हमने नई खोज शुरू की है कि जैन और बौद्ध मठों को तोड़कर मंदिर या अन्य धार्मिक स्थल बनाए गए हैं. सभी मंदिरों और मस्जिदों को उनके मूल स्वरूप में आना चाहिए. जहां-जहां बौद्ध मठ से उनका स्वरूप बदल दिया गया है. बौद्ध मठों को अपने मूल स्वरूप में आना चाहिए. सुमित रतन बोले कि बौद्ध धर्म के मानने वालों की संख्या भी यही चाहती है.
‘केदारनाथ, बद्रीनाथ को लेकर भी दायर करेंगे याचिका’
साथ ही उन्होंने कहा कि हम केदारनाथ, बद्रीनाथ सहित अन्य मंदिरों को लेकर भी याचिका दायर करेंगे. सनातन बौद्ध धर्म सबसे पुराना है. ज्ञानवापी को लेकर उन्होंने कहा कि ASI ने अगर सही से सर्वे किया तो बौद्ध मठ ही पाया जाएगा और अगर पाया जाए तो ज्ञानवापी हमें सौंप दें.
‘सबसे पुराना धर्म है बौद्ध’
बौद्ध धर्म गुरु के मुताबिक इस्लाम 1500 साल पहले आया और हिंदू धर्म 1200 साल पहले आया है. लेकिन बौद्ध धर्म ढाई हजार साल पहले का है. देश में आपसी फूट की जो परंपरा शुरू हुई है, वह उचित नहीं है. उन्होंने कहा कि बौद्ध मठों का भी सर्वेक्षण करके उन्हें बौद्ध समाज को वापस करना चाहिए. अगर सही फैसला होता तो वहां पर बौद्ध मठ होता.
पहले सर्वे की इजाजत फिर रोक…
बताते चलें कि इलाहाबाद हाई कोर्ट ने आज ही कहा, न्यायहित में ASI का सर्वे जरूरी है. कुछ शर्तों के तहत इसे लागू करने की आवश्यकता है. दरअसल, पिछले दिनों जिला जज एके विश्वेश ने शुक्रवार को मस्जिद परिसर का वैज्ञानिक सर्वे कराने का आदेश दिया था. ASI को 4 अगस्त तक सर्वे की रिपोर्ट वाराणसी की जिला अदालत को सौंपनी थी. इसी आदेश के बाद ASI की टीम सोमवार को ज्ञानवापी का सर्वे करने पहुंची थी. लेकिन मुस्लिम पक्ष ने इस सर्वे पर रोक की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. कोर्ट ने सर्वे पर दो दिन के लिए रोक लगाते हुए मस्जिद कमेटी को हाईकोर्ट जाने को कहा था. इसके बाद मुस्लिम पक्ष ने हाईकोर्ट का रुख किया था. सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम पक्ष की याचिका खारिज कर दी.
फिर SC पहुंचा मुस्लिम पक्ष
मुस्लिम पक्ष ने एएसआई सर्वेक्षण की अनुमति देने वाले इलाहाबाद हाई कोर्ट के आज के फैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है. मस्जिद समिति ने हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देते हुए विशेष अनुमति याचिका दायर की है. गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट पहले से ही मस्जिद समिति द्वारा दायर याचिका पर कल सुनवाई करने वाला है, जिसमें हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसने हिंदू याचिकाकर्ताओं द्वारा दायर मुकदमे की रखरखाव को बरकरार रखा है.