EMI घटने की उम्मीद बढ़ी, रेपो रेट में कटौती पर हो सकता है फैसला
महंगाई के मोर्चे पर लोगों को बड़ी राहत मिली है। पांच साल में यह पहला मौका है, जब उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित खुदरा महंगाई दर आरबीआई के चार प्रतिशत के लक्ष्य से नीचे आई है।
ऐसे में विशेषज्ञों का कहना है कि महंगाई दर में इस गिरावट से प्रमुख ब्याज दर (Repo Rate) में कटौती की उम्मीद और बढ़ गई है। अगर आरबीआई कटौती करता है तो आम लोगों की मासिक किस्त में राहत मिल सकती है।
सरकार ने रिजर्व बैंक को खुदरा मुद्रास्फीति को दो प्रतिशत घट-बढ़ के साथ चार प्रतिशत रखने की जिम्मेदारी दी हुई है।
रिजर्व बैंक मौद्रिक नीति की समीक्षा में नीतिगत दर तय करते समय देश के कई आर्थिक संकेतकों के साथ खुदरा महंगाई के आंकड़ों पर भी गौर करता है। इसमें तेजी आने पर वह दरों में वृद्धि का फैसला करता है, जबकि लगातार नरमी आने पर दरों में कमी का फैसला करता है।
माना जा रहा है कि खुदरा महंगाई में लगातार नरमी के बाद आरबीआई रेपो दर में कटौती कर सकता है। अक्टूबर 2024 में रिजर्व बैंक पॉलिसी रेट्स की समीक्षा करेगा, तब महंगी ईएमआई से राहत मिल सकती है।
आठ अगस्त 2024 को आरबीआई ने मौद्रिक समीक्षा में रेपो दर को नौवीं बार 6.5 फीसदी पर बरकरार रखने का फैसला किया था। रेपो दर में फरवरी 2023 से कोई बदलाव नहीं हुआ है। विशेषज्ञों का कहना है कि ऐसे में अगली बैठक में आरबीआई पर दरों में कटौती करने का कुछ दबाव रहेगा
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने अपनी रिपोर्ट में अनुमान लगाया है कि आरबीआई अक्टूबर में रेपो रेट में कटौती शुरू कर सकता है। इसका कारण यह है कि पिछले साल की तुलना में बेहतर मानसून और अधिक फसल बुवाई से खाद्य मुद्रास्फीति कम होने की उम्मीद है। एजेंसी ने यह उम्मीद भी जताई है कि आरबीआई चालू वित्त वर्ष के दौरान दो बार ब्याज दरों में कटौती कर सकता है।
रिपोर्ट के अनुसार,यूरोपीय सेंट्रल बैंक (ECB) और बैंक ऑफ इंग्लैंड (BOE) ने अपनी ब्याज दरों में कटौती शुरू कर दी है। बैंक ऑफ जापान (BOJ) ने अपनी ब्याज दरें बढ़ा दी हैं और अमेरिकी फेडरल रिजर्व ( FED ) द्वारा सितंबर में दरों में कटौती की उम्मीद है।
आर्थिक विशेषज्ञों के अनुसार जब कर्ज सस्ता होता है तो ईएमआई होने की वजह से लोग कर्ज लेकर खुलकर खर्च करते हैं। सस्ता कर्ज उपभोक्ताओं की खरीदने की क्षमता बढ़ा देता है। वहीं जब कर्ज महंगा होता है तो लोग बहुत संभलकर खर्च करते हैं। साथ ही कंपनियां भी विस्तार पर ज्यादा खर्च नहीं करती हैं। इससे मांग में नरमी के साथ महंगाई भी घटती है।