मानव मल, इंसानी राख और बहुत सारा कचरा… चांद पर क्या-क्या छोड़ चुके हैं अंतरिक्ष यात्री
(शशि कोन्हेर) : चंद्रमा पर चंद्रयान-3 का विक्रम लैंडर और प्रज्ञान रोवर लैंड कर चुका है। रोवर ने चांद की सतह पर अपना काम भी शुरू कर लिया है। रोवर के पास धरती के सिर्फ 14 दिन शेष हैं। चांद पर इंसानों की नजर 1950 से रही है। रूस ने इसी साल पहला यान लूना-1 चंद्रमा के करीब से गुजारा था। इसके कुछ साल बाद 1959 में रूस ने एक और यान चांद की तरफ भेजा और यह पहला मौका था जब धरती में बने किसी यान ने चांद पर लैंड किया।
फिर अमेरिका ने 1969 में इंसान को चांद पर उतारकर इतिहास रच दिया। अब तक ऐसे कई अभियान हो चुके हैं फिर भी, चांद धरती वासियों के लिए रहस्य बना हुआ है। चांद पर अब तक दुनियाभर के 12 अंतरिक्ष यात्री पैर जमा चुके हैं, रातें काट चुके हैं और कार तक घुमा चुके हैं। लेकिन, जब वे वापस धरती पर आए तो उन्होंने बहुत सारा कचरा चांद पर छोड़ दिया। इसमें मानव मल, इंसानी राख, फोटो फ्रेम, गोल्फ की गेंद और बहुत सारा कचरा शामिल है। तकरीबन 200 टन कबाड़ चांद पर धरतीवासी छोड़ चुके हैं।
निसंदेह चंद्रमा की सतह पर इंसानी कदम रखना मानव प्रयास की एक बेहद प्रभावशाली उपलब्धि है और इस कामयाबी को चंद्रमा पर छोड़ी गई कुछ चीजों द्वारा चिह्नित किया गया है। जैसे ही चांद पर पहला कदम रखने वाले नासा के अंतरिक्ष यात्री नील आर्मस्ट्रांग और एडविन ‘बज़’ एल्ड्रिन ने पृथ्वी पर अपनी वापसी यात्रा शुरू की, उन्होंने चंद्र मॉड्यूल से उन सभी चीजों का निपटान किया जिनकी उन्हें आवश्यकता नहीं थी। वे सारा कचरा चांद पर ही छोड़ आए।
नील आर्मस्ट्रांग की टीम ने चांद पर क्या छोड़ा
इसमें वह ट्यूब शामिल थी जिसमें अमेरिकी ध्वज को लपेटा गया था, वह टीवी कैमरा जिसका उपयोग उन्होंने फुटेज को पृथ्वी पर वापस भेजने के लिए किया था और वे उपकरण जिनका उपयोग उन्होंने चंद्रमा की चट्टान और धूल को इकट्ठा करने के लिए किया था। वे सब वे छोड़ आए।
इसके बाद हुए अपोलो मिशनों में, चंद्रमा पर कई चीज़ें छोड़ दी गईं, जिनमें अनुमानित 4 लाख पाउंड वजन की चीज़ें शामिल थीं।
मानव मल
चंद्रमा पर मानव अपशिष्ट के कुल 96 बैग हैं। वैज्ञानिक एक दिन इसे पृथ्वी पर वापस लाने के इच्छुक हैं, ताकि यह अध्ययन किया जा सके कि चंद्रमा पर इसके समय ने इस कचरे पर क्या प्रभाव डाला है, लेकिन अभी यह चंद्रमा की सतह पर बैगों में पड़ा हुआ है।
झंडे
प्रत्येक चंद्र लैंडिंग को एक ध्वज लगाकर चिह्नित किया जाता रहा है। यह परंपरा 1969 में अपोलो 11 के दौरान आर्मस्ट्रांग और एल्ड्रिन द्वारा शुरू की गई थी। हालांकि अपोलो 11 चंद्रमा लैंडिंग के दौरान चंद्रमा की सतह पर एक ध्वज लगाने का निर्णय अंतिम समय में किया गया था। भविष्य के सभी अपोलो मिशन ने इसका अनुसरण किया। चूंकि चंद्रमा पर कोई हवा नहीं है इसलिए झंडे कभी भी ‘उड़ेंगे’ नहीं। इसलिए झंडों लगाया गया ताकि ये उसी स्थान पर रहें और निशानी के तौर पर भी कि संबंधित स्पेस एजेंसी वहां जा चुकी है।
इंसानी राख
जीन शूमेकर एक अमेरिकी भूविज्ञानी थे, जिन्होंने स्थलीय क्रेटरों का अध्ययन किया और कई धूमकेतुओं और ग्रहों की खोज की। जब उनकी मृत्यु हुई तो उनकी राख को लूनर प्रॉस्पेक्टर अंतरिक्ष जांच बोर्ड पर एक कैप्सूल में चंद्रमा पर ले जाया गया। यह कैप्सूल अभी भी चांद की सतह पर मौजूद है।
पंख और हथौड़ा
कहा जाता है कि 16वीं सदी के अंत में गैलीलियो गैलीली ने पीसा की झुकी मीनार से अलग-अलग द्रव्यमान की दो वस्तुएं गिराई थीं। यानी एक हल्की और एक भारी। यह साबित करने के लिए कि दोनों वस्तुएं कितनी गति से नीचे गिर रही हैं। साल 1971 में अपोलो 15 के अंतरिक्ष यात्री डेविड स्कॉट ने चंद्रमा की सतह पर इसी तरह का एक प्रयोग किया था। स्कॉट ने एक ही समय में एक पंख और एक हथौड़ा गिराया, और दुनिया ने देखा कि वे एक ही गति से गिरे और एक ही समय में चंद्र सतह पर उतरे।