शिक्षक दिवस पर आईजी रतनलाल डांगी….उन सभी शिक्षकों को सादर नमन… जिनकी बदौलत मैं यहां तक पहुंचा हूं
(शशि कोन्हेर) : शिक्षक दिवस पर आईजी रतनलाल डांगी ने उन सभी शिक्षकों को नमन किया जिनकी बदौलत वो यहां तक पहुँचे है, पढ़िए फेसबुक पोस्ट पर आईजी श्री डांगी ने क्या लिखा….👇
“शिक्षक दिवस”
“शिक्षक दिवस पर उन सभी शिक्षकों के प्रति जिनके बदौलत मैं यहां तक पहुंचा हूं, कृतज्ञता प्रकट करते हुए उनको नमन करता हूं।”
एवम् देश के समस्त शिक्षकों को शिक्षक दिवस पर हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं देता हूं ।
“शिक्षा वो शेरनी का दूध है जो जितना पिएगा वो उतना ही दहाड़ेगा” डॉक्टर बाबा साहब अम्बेडकर
और वो शिक्षा बिना शिक्षक के संभव नहीं हो सकती। इसलिए व्यक्ति के जीवन में शिक्षक की बहुत महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ना केवल व्यक्ति के लिए बल्कि राष्ट्र के लिए भी शिक्षक की भूमिका का कोई दूसरा स्थान नहीं ले सकता है।
शिक्षकों को अपने अमूल्य व्यवसाय पर गौरवान्वित महसूस करना चाहिए।
शिक्षक दिवस शिक्षा की ज्योति को निरंतर प्रकाशित करने का संकल्प दिवस होता है।
प्रत्येक सफल व्यक्ति चाहे वो किसी भी पद व स्थान पर सुशोभित हो उसके पीछे उसके शिक्षकों की कृपा ही रहती है।
शिक्षक का कार्य कल्याणकारी होता है।
वह मानवीय निर्माण में सृजनात्मक भूमिका निभाता है।
वह मानवीय जीवन को ज्ञान से सिंचित कर जीने योग्य बनाता है, इसलिए शिक्षकों को अपने चरित्र,सुव्यवहार , आचरण तथा व्यवसाय के सही अर्थों को समझते हुए अपने आपको गौरवान्वित महसूस करना चाहिए।
शिक्षक के ऊपर समाज निर्माण तथा राष्ट्र निर्माण की जिम्मेदारी रहती है।इसलिए शिक्षक की कोई भी लापरवाही भविष्य निर्माण पर भारी पड़ सकती है।
शिक्षक को यह भी जानना होगा कि इसे ज्ञान की तीव्र प्रेषण गति में वह कहीं पीछे ना रह जाए। शिक्षक को अपने ज्ञान अनुभव एवं जागरूकता से विद्यार्थियों, अभिभावकों तथा समाज पर अपना प्रभाव बनाकर श्रेष्ठ रूप से प्रस्तुत करना होगा।
शिक्षक समाज में नेतृत्व प्रदान करता है। यह नेतृत्व राजनीतिक नहीं , बल्कि ज्ञान का नेतृत्व होता है ।
शिक्षक को अपने चरित्र तथा आचरण से व्यवसाय के लिए लोगों में विश्वास पैदा करना चाहिए ।
शिक्षक का चरित्र उदाहरणीय एवं अनुकरणीय होना चाहिए ।
उसका वार्तालाप, आचरण व्यवहार, परिधान, चरित्र ज्ञान तथा नेतृत्व उच्च श्रेणी का होना चाहिए।
शिक्षक को विद्यार्थियों, उनके अभिभावकों तथा समाज में अपने प्रति मान-सम्मान व श्रद्धा का भाव पैदा करना चाहिए। यह तभी संभव है जब वो कर्मठता , ईमानदारी तथा समर्पित भाव से अपना शिक्षण कार्य करेगा।
शिक्षण एक बहुत ही पुनीत व्यवसाय है। शिक्षक होना सौभाग्य की बात है।
वर्तमान समय में शिक्षकों के लिए चुनौतियां भी कम नहीं है । समाज के हर व्यक्ति तथा वर्ग की दृष्टि हर समय शिक्षक पर रहती है । समय-समय पर उसे कई ताने फब्तियां , बातें सुनने पड़ती है । उस पर कटाक्ष किए जाते हैं। उस पर व्यंग्य बाण चलाए जाते हैं। जिससे कई बार उसका मनोबल भी टूटता है।
समाज के सभी वर्गों से यह आशा की जाती है कि वह अपने बच्चे के जीवन निर्माता पर विश्वास कर उनका सम्मान करें तभी कल्याण संभव है।
शिक्षक दिवस शिक्षा की ज्योति को निरंतर प्रकाशित करने का संकल्प दिवस होता है।
तमसो मा ज्योतिर्गमय इसका अर्थ है अंधेरे से उजाले की ओर जाना।
इस प्रक्रिया को वास्तविक अर्थों में पूरा करने के लिए शिक्षा, शिक्षक और समाज तीनों की बड़ी भूमिका होती है। भारतीय समाज में शिक्षा को शरीर, मन और आत्मा के विकास का साधन माना गया है। वही शिक्षक को समाज के समग्र व्यक्तित्व के विकास का उत्तरदायित्व सौंपा गया है ।
महर्षि अरविंद ने एक बार शिक्षकों के संबंध में कहा था कि “शिक्षक राष्ट्र की संस्कृति के चतुर माली होते हैं ।
वे संस्कारों की जड़ों में खाद देते हैं और अपने श्रम से सींच कर उन्हें शक्ति में निर्मित करते हैं।”
महर्षि अरविंद का मानना था कि किसी राष्ट्र के वास्तविक निर्माता उस देश के शिक्षक होते हैं । इस प्रकार एक विकसित ,समृद्ध एवं खुशहाल राष्ट्र एवं विश्व के निर्माण में शिक्षकों की भूमिका ही सबसे अधिक महत्वपूर्ण होती है।
विद्यार्थी का सही दिशा निर्देशन करने का कार्य शिक्षक का होता है। शिक्षा के अनेक उद्देश्यों की पूर्ति शिक्षकों के माध्यम से ही होती है। समाज का उनके प्रति कर्तव्य होता है और उनका भी समाज के प्रति उत्तरदायित्व रहता है।किसी भी समाज की अभिलाषा, आकांक्षा, आवश्यकता, अपेक्षा और आदर्शों को सफल बनाने का कार्य शिक्षक ही कर सकते हैं ।
डॉ राधाकृष्णन के जन्मदिवस को शिक्षक दिवस के रूप में मनाया जाता है। राधाकृष्णन के अनुसार शिक्षक होने का अधिकारी वही व्यक्ति है जो अन्य जनों से अधिक बुद्धिमान व विनम्र हो।
उनका कहना था की उत्तम अध्यापन के साथ-साथ शिक्षक का अपने विद्यार्थियों के प्रति व्यवहार व स्नेह उसे एक सुयोग्य शिक्षक बनाता है।
मात्र शिक्षक होने से कोई योग्य नहीं हो जाता बल्कि यह गुण उसे अर्जित करना होता है। शिक्षा मात्र ज्ञान को विद्यार्थी को सूचित करना नहीं होता है बल्कि इसका उद्देश्य एक उत्तरदाई नागरिक का निर्माण करना है।
ऐसा माना जाता है कि यदि जीवन में शिक्षक नहीं है तो शिक्षण संभव नहीं है।शिक्षण का शाब्दिक अर्थ शिक्षा प्रदान करना है जिसकी आधारशिला शिक्षक रखता है।
भारत में शिक्षक सदैव पूजनीय रहे हैं। क्योंकि उन्हें गुरु कहा जाता है। वर्तमान सामाजिक व्यवस्थाओं के स्वरूप में आ रहे परिवर्तनों से शिक्षक भी अछूते नहीं है।
शिक्षक भी आम आदमी है अतः सामान्य व्यक्ति की जो विशेषताएं हैं वहीं शिक्षकीय व्यक्तित्व में भी दृष्टिगोचर होती है परंतु कुछ ऐसी विशेषताएं हैं जो शिक्षक को सामान्य जन से पृथक करती है।
हमारे शिक्षकों में संवेदनशीलता, आत्मीयता, परोपकार वृत्ति, सहृदयता, ममता, मानवतावादी वृत्ति, सीधे सच्चे प्रतिष्ठित ,सौहार्दता,दया करुणा, सहा नुभूती , संघर्षशीलता , दायित्व के प्रति सजगता मार्गदर्शकता प्रवीणता, दक्षता सक्रियता, मूल्यांकन परकता, परिवर्तनवादिता,विषय ज्ञान पर असाधारण प्रभुत्व आदि गुण होते हैं।
इनकी सहायता से वह समाज में मान सम्मान और प्रतिष्ठा प्राप्त करता है।
समाज अपने नौनिहालों के भविष्य के निर्माण का वजन शिक्षकों के कंधों पर डाल कर निश्चिंत हो जाता है लेकिन कहीं न कहीं व शिक्षकों के प्रति अपने दायित्व को भूल जाता है।
वहीं दूसरी ओर शिक्षक अर्थाभाव, पारिवारिक उलझनों और समाज की उदासीनता के बावजूद भी अपने दायित्व एवं कार्यों के प्रति प्रमाणिक रहने का प्रयास करते रहते हैं।
समाज शिक्षकों के प्रति उदासीन है और शिक्षक सामाजिक उत्तरदायित्व से दूर भागने के प्रयास में है।
प्राचीन शिक्षा व्यवस्था में शिक्षक देवता- गुरु मार्गदर्शक की भूमिका और दायित्व निभाया करते थे परंतु अब शिक्षकों में ऐसे संवेदनशील भावनाएं कहीं खोती जा रही है ।
कभी-कभी ऐसा लगता है कि शिक्षा की निरंतर बदल रही व्यावसायिक नीतियों के कारण भारतीय समाज में शिक्षक अन्याय व अत्याचार के शिकार हो रहे हैं।
विद्यार्थियों को पुस्तक ज्ञान देने के अलावा उनको सामाजिक जीवन से संबंधित ज्ञान की प्राप्ति करवाना तथा समाज में योगदान देने के लिए सम र्थ बनाना शिक्षक का ही उत्तरदायित्व होता है ।
वही आज शिक्षक स्वयं को सामाजिक शोषण, दबाव , भय आदि से गिरा हुआ अनुभव करता है ।
इन गंभीर सामाजिक परिस्थितियों ने शिक्षकों की भूमिका और दायित्व को प्रभावित किया है ।
अतः वे अब अपने उत्तरदायित्व से पलायन करने लगे हैं।
स्वामी विवेकानंद का मानना था कि ऐसी शिक्षा व्यवस्था होनी चाहिए जिससे समाज के चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति में वृद्धि हो ,बुद्धि का विस्तार हो और जिसमें व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके।
वास्तविक शिक्षा वह नहीं होती जो कक्षा में शिक्षक के व्याख्यान से शुरू होती है और उसी पर समाप्त हो।
वर्तमान में बद ले शिक्षकीय मूल्यों को दृष्टिगत रखते हुए ऐसी सुदृढ़ शिक्षा व्यवस्था की आवश्यकता है जिसमें विद्यार्थियों की सक्रिय सहभागिता हो, इसमें विद्यार्थी अधिक से अधिक प्रश्न पूछे ,जिनके सटीक उत्तरों के लिए शिक्षकों को भी उतना ही अध्ययन व चिंतन करना पड़े ।
सर्वश्रेष्ठ शिक्षक वही है जो जीवन पर्यंत विद्यार्थी बना रहता है और इस प्रक्रिया में पुस्तकों के साथ-साथ अपने विद्यार्थियों से भी बहुत कुछ सीखता है।
शिक्षक , शिक्षा (ज्ञान) और विद्यार्थी के बीच एक सेतु का कार्य करता है और यदि यह सेतु ही निर्बल होगा तो समाज को खोखला होने में देरी नहीं लगेगी।
एक समर्पित और निष्ठावान शिक्षक ही देश की शिक्षा प्रणाली को सुंदर व सुदृढ़ बना सकता है ।
इसके लिए समाज को भी शिक्षकों को एक सम्मानजनक स्थान देना होगा ।
देश के अलग अलग हिस्सों से कभी कभी शिक्षकों के द्वारा अपने विद्यार्थियों से उसकी जाति एवम् धर्म के आधार पर भेदभाव करने की खबरे प्रकाशित होती है जो कि बहुत ही विचलित करने वाली होती है।जो न केवल शिक्षक के मूल्यों के खिलाफ है बल्कि संविधान के भी खिलाफ है। शिक्षकों को अपने विद्यार्थियों का मूल्यांकन उनकी योग्यता से करना चाहिए न कि किसी पूर्वाग्रह या अपने चहेते को उससे ऊपर लाने के लिए ।ऐसा मूल्यांकन विद्यार्थी के मन में इस शिक्षक के प्रति सम्मान नहीं पैदा करेगा बल्कि हमेशा के लिए नफरत भी भर देगा।इसलिए आपको समदर्शी भी बनना होगा।
सभी शिक्षकों को इस विशेष दिवस पर शुभकामनाएं।