IIT के गोल्ड मेडलिस्ट ने छोड़ी लाखों की नौकरी, बने संन्यासी
(शशि कोन्हेर) : आईआईटी दिल्ली से बीटेक करने वाले गोल्ड मेडलिस्ट इंजीनियर के संन्यासी बनने का एक फ़ोटो सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है. उन्होंने एमटेक किया, मोटी सैलरी पर जॉब भी की, लेकिन फिर उन्होंने 28 साल की उम्र में संन्यास की राह पकड़ ली.
IIT Delhi के Gold Medalist छात्र संदीप कुमार भट्ट ने इंजीनियर से संन्यासी बन गए हैं. उन्होंने शादी भी नहीं की है.
जब वह संन्यासी बन गए तो वे स्वामी सुंदर गोपालदास हो गए. वह मूलत: बिहार के रहने वाले हैं. उन्होंने कहा कि 2002 में आईआईटी दिल्ली से बीटेक किया, बीटेक में गोल्ड मेडलिस्ट रहे.
पढ़े-लिखे लोगों को बनना चाहिए साधु-संत’
संदीप भट्ट ने कहा कि मशीन की क्वालिटी तो बढ़ रही है पर इंसान की क्वालिटी घट रही है. हर साल लाखों क्राइम होते हैं, यह इस बात का प्रमाण है कि इंसान की क्वालिटी खराब हो रही है.
उन्होंने कहा- ‘मैं मानता हूं कि पढ़े लिखे लोगों को साधु-संत बनना चाहिए. आखिर क्या वजह है कि बड़ी-बड़ी कंपनी IIT के लोगों हायर करती है? अगर अच्छाई समाज में बढ़ानी है तो ऐसे लोगों को भी आगे आना चाहिए.’
जब वह इंजीनियरिंग कर रहे थे तो उन्होंने नोटिस किया उनके आसपास इंजीनियर, डॉक्टर, IAS, जजेस, साइंटिस्ट, नेता तो बहुत हैं. लेकिन, कोई ऐसा व्यक्ति नहीं है, जो समाज को अलग तरह की राह दिखा सके. लोगों के चरित्र को ठीक कर सके. धार्मिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए वह संन्यासी बने.
उन्होंने कहा कि लोग भौतिक सुखों के पीछे लगे रहते हैं. आत्महत्या, नशे को लेकर भी संदीप कुमार भट्ट उर्फ गोपाल दास ने कई बातें की. उन्होंने कहा तमाम गलत आदतों को सुधारने के लिए धार्मिक शिक्षा की जरूरत है. उन्होंने बताया कि लोगों को इंसान बनना नहीं आता है. लोगों के अंदर सेल्फ रेगुलेशन नहीं है. बोले- नोबेल पुरस्कार पाना कोई बड़ी बात नहीं है, लेकिन अगर आप किसी बिगड़े हुए शख्स को सुधार दें तो यह वाकई बड़ा काम है.
परिवार का क्या था रिएक्शन?
संदीप भट्ट उर्फ गोपाल दास ने बताया कि जब उनके संन्यासी बनने की बात घरवालों को पता चली तो उनका रिएक्शन भी ठीक वैसा ही था, जो अमूमन किसी भी घर वाले का होता.
लेकिन, उन्होंने अपने परिवार वालों को समझाया कि वह यही करना चाहते हैं. आईआईटी दिल्ली में रहते हुए ही उन्होंने श्रीमदभागवत गीता को भी पढ़ा, जिससे उनके जीवन में एक बड़ा परिवर्तन आया