जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है, ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ के नारे लगाने वाले सांसद का SC में हलफनामा
(शशि कोन्हेर) : नेशनल कॉन्फ्रेंस के नेता मोहम्मद अकबर लोन ने सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश के बाद भारतीय संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हुए एक हलफनामा दायर किया है। अकबर लोन अनुच्छेद 370 को खत्म करने को चुनौती देने वाले मुख्य याचिकाकर्ता हैं।
दरअसल एक दिन पहले शीर्ष अदालत ने नेशनल कांफ्रेंस (नेकां) के नेता मोहम्मद अकबर लोन से भारत के संविधान के प्रति निष्ठा की शपथ लेते हुए और देश की संप्रभुता को बिना शर्त स्वीकार करते हुए एक हलफनामा दाखिल करने को कहा था।
लोन द्वारा 2018 में कथित तौर पर जम्मू कश्मीर विधानसभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाए जाने के बाद विवाद पैदा हो गया था। उसी पृष्ठभूमि में उच्चतम न्यायालय का निर्देश आया है। अकबर लोन द्वारा उच्चतम न्यायालय में हलफनामा दायर करने के बाद मामले की सुनवाई कर रही मुख्य न्यायधीश की पीठ ने कहा है कि वह “इसका अध्ययन करेंगे”।
इस पीठ में प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के अलावा, न्यायमूर्ति संजय किशन कौल, न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति बी आर गवई और न्यायमूर्ति सूर्यकांत भी शामिल हैं। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ ने कहा था कि जब लोन ने संविधान के अनुच्छेद 32 के तहत शीर्ष अदालत का दरवाजा खटखटाया है, तो उन्हें राष्ट्र की संप्रभुता में विश्वास करना होगा और मानना होगा कि जम्मू और कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है।
प्रमुख याचिकाकर्ता हैं लोन
सोमवार को वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली पांच सदस्यीय पीठ से कहा कि लोन मंगलवार तक हलफनामा दाखिल करेंगे। लोन, पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले अनुच्छेद 370 को निरस्त किए जाने के फैसले को चुनौती देने वाले प्रमुख याचिकाकर्ता हैं।
सिब्बल ने कहा कि अगर लोन यह हलफनामा दाखिल नहीं करते हैं तो वह उनकी पैरवी नहीं करेंगे। वरिष्ठ अधिवक्ता ने पीठ से कहा, ‘‘वह लोकसभा सदस्य हैं। वह भारत के नागरिक हैं और उन्होंने संविधान द्वारा अपने पद की शपथ ली है। वह भारत की संप्रभुता को स्वीकार करते हैं।’’
इससे पहले, केंद्र की ओर से पेश हुए सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ से कहा कि केंद्र सरकार चाहती है कि लोन 2018 में जम्मू-कश्मीर विधानसभा में ‘पाकिस्तान जिंदाबाद’ का नारा लगाने के लिए माफी मांगें। उन्होंने कहा कि लोन को यह बताना होगा कि वह संविधान के प्रति निष्ठा रखते हैं, साथ ही जम्मू-कश्मीर विधानसभा में नारा लगाने के लिए उन्हें माफी मांगनी होगी। मेहता ने जिक्र किया कि कश्मीरी पंडितों का एक समूह इस मामले को न्यायालय के संज्ञान में लाया।
अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर न्यायालय ने फैसला सुरक्षित रखा
उच्चतम न्यायालय ने तत्कालीन जम्मू-कश्मीर राज्य को विशेष दर्जा देने वाले संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने के केंद्र के निर्णय को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर मंगलवार को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया।
प्रधान न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पांच न्यायाधीशों की पीठ ने 16 दिन की मैराथन सुनवाई के बाद फैसला सुरक्षित रख लिया। न्यायालय ने सुनवाई के अंतिम दिन वरिष्ठ अधिवक्ताओं- कपिल सिब्बल, गोपाल सुब्रमण्यम, राजीव धवन, जफर शाह, दुष्यन्त दवे और अन्य की दलीलें सुनीं। शीर्ष अदालत ने कहा कि यदि याचिकाकर्ताओं या प्रतिवादियों की ओर से पेश कोई वकील लिखित अभिवेदन दाखिल करना चाहता है तो वह अगले तीन दिन में ऐसा कर सकता है। इसने कहा कि अभिवेदन दो पृष्ठों से अधिक का नहीं होना चाहिए।
पिछले 16 दिन में सुनवाई के दौरान, शीर्ष अदालत ने केंद्र और हस्तक्षेपकर्ताओं की ओर से अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता, वरिष्ठ अधिवक्ताओं- हरीश साल्वे, राकेश द्विवेदी, वी गिरि और अन्य को अनुच्छेद 370 को निरस्त करने का बचाव करते हुए सुना। वकीलों ने प्रावधान को निरस्त करने के केंद्र के 5 अगस्त, 2019 के फैसले की संवैधानिक वैधता, पूर्ववर्ती राज्य को दो केंद्रशासित प्रदेशों में विभाजित करने वाले जम्मू कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम की वैधता, 20 जून, 2018 को जम्मू कश्मीर में राज्यपाल शासन लगाए जाने, तथा 19 दिसंबर, 2018 को राष्ट्रपति शासन लगाए जाने और 3 जुलाई, 2019 को इसे विस्तारित किए जाने सहित विभिन्न मुद्दों पर अपने विचार रखे।