बिलासपुर

न्यायधानी बिलासपुर के नए नवेले “छोकरों” को अपराध की दुनिया में धकेलने का “खेला”कर रहे हैं, लईका पकड़ैया किस्म के छुटभैये नेता..!

(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – 25 फरवरी को तालापारा समता कॉलोनी गार्डन में हुए हत्याकांड को जिस तरह नाबालिग छोकरों के एक झुंड ने अंजाम दिया है। वह, पूरे शहर के लिए खतरे की घंटी है। खासतौर से शहर के ऐसे नागरिक और परिवार जिनके बच्चे तेरह-चौदह साल से सोलह 17 साल तक की उम्र के हों, उन्हें और भी सतर्क रहने की जरूरत है। शहर में और खासकर शहर के तालापारा, मगरपारा चांटीडीह, चिंगराजपारा जरहाभाटा मिनी बस्ती, कुदुदंड और सिरगिट्टी में सक्रिय छुटभैये राजनीतिक नेताओं और कार्यकर्ताओं के द्वारा शहर की नई नस्ल को बिगाड़ने का काम किया जा रहा है। इन नेताओं के द्वारा नए नवेले छोकरों मैं मौजूद नशे की लत को खाद पानी देकर उन्हें अपने अनुकूल बनाया जा रहा है। लईका पकडैया किस्म के ऐसे नेताओं की पौध पहले सिर्फ तालापारा और मगरपारा तथा सिविल लाइन थाना क्षेत्र में ही पाई जाती थी। लेकिन अब गाजर घास जैसे ये लईका पकडैया, शहर के ऐसे सभी मोहल्लों में जहर फैला रहे हैं, जहां गरीब मध्यवर्ग और निम्न मध्यवर्ग के परिवार रहा करते हैं। नशे के आदी हो चुके ऐसे छोकरों के झुण्ड को छुटभैये नेता अपने बड़े नेताओं के आगमन पर जिंदाबाद मुर्दाबाद के काम में लगा कर खुद का ग्राफ बड़ा किया करते हैं। इसके एवज में 13 साल से 17 साल के छोकरों के इस झुण्ड को शराब और नशीली दवाओं की खुराक दी जाती है। छोटे-मोटे अपराध होने पर उन्हें थानों से छुड़ा भी लिया जाता है। जिससे छुटभैये नेताओं के प्रति उनका समर्पण और हिंसक आक्रामकता निरंतर बनी रहे। तालापारा समता कॉलोनी गार्डन में हुआ हत्याकांड बिलासपुर शहर की पहली ऐसी वारदात नहीं थी, जिसमें नाबालिगों के झुंड का इस्तेमाल किया गया हो। बिलासपुर में नाबालिगों के जरिए मारपीट हिंसक वारदातें और चोरी तथा लूट जैसे अपराधों की जो बाढ़ आ गई है। उसके पीछे मोहल्लों में खाली पीली नेतागिरी झाड़ने वाले लईका पकड़ैया किस्म के छुटभैये नेता और मोहल्ला छाप असामाजिक तत्वों की मौजूदगी साफ दिखाई देती है। अपने आका के इशारे पर काम करने वाले 13 साल से 17 अट्ठारह साल के छोकरे शहर की गरीब बस्तियों में आसानी से थोक के भाव में मिल जाते हैं। उन्हें अपनी छत्रछाया में रखने पर बहुत अधिक खर्च भी नहीं करना पड़ता। सुबह शाम नशे की नियमित और अनवरत खुराक मात्र देकर, ऐसे किशोरवय के बच्चों को आसानी से अपने अधीन रखा जा सकता है। या करें रखा जा रहा है। बिलासपुर शहर में बीते एक- दो साल के दौरान छोटे बड़े अपराधों में जिस तरह नाबालिग आरोपियों की संख्या और झुंड बढे हैं। वे भी इस बात की चुगली कर रहे हैं कि राजनीतिक दलों में घुसे असामाजिक तत्व जैसे लईका पकडैया किस्म के आपराधिक मानसिकता वाले छुटभैये नेता बिलासपुर शहर की नई नस्ल को, हमारी नई पीढ़ी को, नशे और अपराधों की अंधी सुरंग में धकेल रहे हैं। बिलासपुर शहर में 15-20 सालों से क्राइम बीट से जुड़े पत्रकारों को भी संभवत इस बात की जानकारी होगी कि नाबालिग छोकरों को नशे और नेतागिरी की लत लगा कर अपने नियंत्रण में लेने का यह “खेला” बिलासपुर में किस नेता ने शुरू किया था। मगर मुश्किल यह है कि सफेदपोश की तरह रहने वाले इन छुटभैये और छिल्टे नेताओं के खिलाफ सबूतों के अभाव में ठीक वैसे ही लिखा पढ़ा नहीं जाता… जैसे आज सबूतों के अभाव में ही हम जानते हुए भी यह नहीं लिख पा रहे हैं कि समता कॉलोनी गार्डन हत्याकांड की वारदात, आरोपी नाबालिक छोकरों के झुण्ड ने धक्का देने के मामूली विवाद को लेकर की थी या फिर उन्हें लईका पकडैया किस्म के किसी शातिर छुटभैये ने ऐसा करने को उकसाया था।

बहरहाल, अब तालापारा समता कॉलोनी गार्डन का मामला हम पुलिस पर ही छोड़ते हैं। वही इसमें, सबूत और परिस्थिति जन्य सबूत आदि के जरिए… “दूध का दूध और पानी का पानी” करेगी, इसकी पूरी उम्मीद है..!

पुनश्च… तालापारा समता कॉलोनी की घटना, शहर के ऐसे मध्यम, निम्न मध्यम और गरीब परिवारों के लिए खतरे की घंटी है, जिनके घरों में तेरह-चौदह से लेकर, सोलह-सत्रह तक की उम्र के बच्चे हों। वे कृपया इस बात की सदैव तस्दीक करते रहें कि कहीं उनका नाबालिग बच्चा भी झूठी- मूठी रोलबाजी, नशे और नेताओं के फेर में आकर आक्रामक‌ और हिंसक छोकरों के झुण्ड में तो शामिल नहीं हो गया..?

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