जैसे हिटलर की बॉडी की हुई थी पहचान….अब उसी टेस्ट से श्रद्धा की भी होगी शिनाख्त….!
(शशि कोन्हेर) : उन्नतीस साल की श्रद्धा वालकर की हत्या में हर रोज उसके कातिल आफताब की दरिंदी के कारनामे सामने आ रहे हैं। किस तरह उसने श्रद्धा के 35 टुकड़े किए, फिर उन्हें कैसे ठिकाने लगाया और फिर उसके कटे सिर को कई दिनों तक फ्रीज में रखा रहा। आफताब की दरिंदी के बारे में जितना भी बयां किया जाय, वह कम है। करीब छह महीने बाद श्रद्धा की मौत की खुलासे और उसके शरीर के 35 टुकड़े होने की वजह से पुलिस को उसके हत्या के सबूत जुटाना आसान नहीं हो रहा है। इसे देखते हुए अब दिल्ली पुलिस Skull Super Imposition Test का सहारा ले सकती है। जिसके जरिए श्रद्धा के कंकाल के हिस्सों को पहचान हो सकेगी।
Skull Super Imposition Test एक ऐसी तकनीकी है जिसके जरिए किसी व्यक्ति के खोपड़ी के कुछ हिस्से मौजूद होने पर उसका डिजिटल चेहरा बनाकर शिनाख्त की जाती है। आज के दौर में इसे कंप्यूटर के जरिए किया जाता है। लेकिन यह तकनीकी पहले भी इस्तेमाल होती रही है। साल 1945 में जर्मन तानाशाह एडॉल्फ हिटलर की पहचान में भी इसी तकनीकी का यूज किया गया था। इसके बाद साल 2000 में रूस के पास हिटलर की रखी टूटी खोपड़ी और जबड़े से भी दोबारा शिनाख्त किया गया। इसमें Skull Super Imposition Test का सहारा लिया गया। हालांकि बाद इसको लेकर विवाद भी खड़ा हुआ। और अमेरिकी वैज्ञानिकों ने दावा किया कि वह अवशेष हिटलर के नहीं थे। हालांकि इसके बाद साल 2018 में एक बार फिर हिटलर की खोपड़ी के अवशेषों और दांतों की फिर जांच हुई। दाइचे वैले के अनुसार फ्रेंच पैथोलॉजिस्टों की एक टीम ने मॉस्को में रखे दांतों के एक सेट पर जांच की, और उसने बताया कि यह वही दांतों का सेट था जिसे मई 1945 में जर्मनी की राजधानी बर्लिन से बरामद किया गया था और वह हिटलर के थे।
इसी तरह भारत में बहुचर्चित शीना बोरा हत्याकांड में भी Skull Super Imposition Test का सहारा लिया गया था। और उसके जरिए शीरा बोरा की हत्या की गुत्थी सुलझी थी। साल 2012 में शीना बोरा की हत्या हुई थी। और अब टाइम्स ऑफ इंडिया के अनुसार दिल्ली पुलिस श्रद्धा के मामले में भी इसी टेस्ट का सहारा लेने पर विचार कर रही है।
कैसे होता है Skull Super Imposition Test
सुपरइम्पोजिशन टेस्ट का आमतौर पर इस्तेमाल सिर के कंकाल की जांच करने के लिए किया जाता है। फॉरेंसिक एक्सपर्ट इस तकनीक का इस्तेमाल तब करते हैं जब इंसान की पहचान अनुमान के मुताबिक नहीं हो पाती है। और जांच अधिकारी को संदेह रहता है कि बरामद खोपड़ी किसी विशेष लापता इंसान की हो सकती है। टेस्ट की मदद से जांच के दौरान मिले सिर के कंकाल और मौत से पहले उस शख्स की तस्वीरों की विश्लेषण किया जाता है। दोनों की तुलना करके यह समझने की कोशिश की जाती है कि उनमें कितनी समानताएं हैं। और एक डिजिटल इमेज बनाकर वास्तविक तस्वीर से मिलान की जाती है।