खड़गे या थरूर: संकट के दौर से गुजर रही कांग्रेस को आज मिलेगा नया अध्यक्ष, ये होंगी सबसे बड़ी चुनौतियां
(शशि कोन्हेर) : अपने इतिहास के सबसे संकटपूर्ण दौर में कांग्रेस अध्यक्ष पद का चुनाव कराकर संघर्ष पथ पर आगे बढ़ने के लिए पार्टी इसे चाहे राहतकारी मोड़ मान रही हो मगर जमीनी राजनीति की हकीकत तो यही है कि कांग्रेस की चुनावी सियासत को ट्रैक पर लाने के लिए नए अध्यक्ष के सामने चुनौतियों की लंबी फेहरिस्त है।
नि:संदेह इसमें कांग्रेस नेताओं के पार्टी छोड़ने के सिलसिले पर ब्रेक लगाना सबसे मुश्किल चुनौती है। राजनीतिक पार्टी का संगठनात्मक ढांचा ही सत्ता-सियासत का बुनियादी आधार है, मगर शीर्ष से लेकर ब्लाक तक जीर्ण-शीर्ण हालत का यह ढांचा पार्टी नेताओं को भविष्य की उम्मीद नहीं दिखाता।
संगठन और नेताओं में जड़ता व नाउम्मीदी की स्थिति को तोड़ना होगा
ऐसे में बुधवार को मतगणना के बाद नए कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में निर्वाचित होना तय माने जा रहे मल्लिकार्जुन खड़गे के लिए अपने नेतृत्व के प्रति विश्वास का भाव पैदा किए बिना पार्टी संगठन की राजनीतिक क्षमता में उम्मीदों का पंख लगाना आसान नहीं होगा। चुनाव से पहले नेतृत्व को लेकर लंबे अर्से तक रही दुविधा ने संगठन और नेताओं में जड़ता और नाउम्मीदी की स्थिति पैदा की है।
इस दोहरी चुनौती को तोड़े बिना कांग्रेस को संकट से उबारने की गाड़ी आगे नहीं बढ़ेगी और अखिल भारतीय कांग्रेस समिति के संगठनात्मक ढांचे को हवा-हवाई नेताओं की फौज से छुटकारा दिलाना अहम होगा।
प्रतिभाशाली जमीनी नेताओं को संगठन में देनी होगी जगह
दरबारी संस्कृति के पोषक नेताओं को प्रमुखता से प्रश्रय देने का मोह छोड़ क्षमतावान प्रतिभाशाली जमीनी नेताओं को संगठन में जगह देनी होगी। कांग्रेस कार्यसमिति के आधे यानि 12 सदस्यों का चुनाव और संसदीय बोर्ड की वापसी पार्टी की राजनीतिक क्षमता और निर्णय प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाएगी। इन संगठनात्मक सुधारों को लागू करने की आवाज पार्टी के अंदर से भी उठाई गई थी।
संवाद की प्रक्रिया बहाल करनी होगी
कांग्रेस के मौजूदा ढांचे में शीर्ष नेतृत्व से जुड़ी सबसे बड़ी शिकायत संवादहीनता की रही है। 2016 में पार्टी छोड़ने वाले हिमंत बिस्व सरमा हों या हाल में बाहर गए दिग्गज गुलाम नबी आजाद लगभग सभी ने इसे गंभीर समस्या बताने से परहेज नहीं किया। संवाद की यह प्रक्रिया पार्टी के अहम फैसलों को समावेशी ही नहीं सर्वस्वीकार्य बनाने का रास्ता बनाएगी और सामूहिक नेतृत्व के अभाव की शिकायतों की गुंजाइश भी बंद होगी।