प्राचीन व्यापार में लदनी की चलन…..
(मुन्ना पाण्डेय) : सरगुजा – किस्से कहानियों में नहीं वरन् लदनी एक जिवंत सच्चाई है। सदियों पहले घोड़े बैलों में नायक जाति के लोग किराना सामानों के साथ मनिहारी कपड़े सोने चांदी तांबे पीतल गिलट के अलावा सांचे में ढले मिट्टी से बने माला को आग के अंगीठी में पकाकर मिट्टी का माला धागा में पिरोया हुआ काले रंग का जिसे खासकर बच्चों को नजर जादू टोना टोटका से बचाने के लिए पहनाया जाता था इसके अलावा महिलाओं के लिए श्रृंगार सामान में लाल छोटी मूंगा मोती आदि आभूषण के रूप में नायकों द्वारा बेचे जाते थे। नायक व्यापारियों की एक टोली हुआ करता था । जो सैकड़ों कोस जमीन पैदल नाप कर अपने सामान बेचने दूरदराज गांव कस्बों शहरों में घर बार परिवार छोड़ कर जाते थे। पुराने जमाने में कोई गाड़ी वाहनों की सुविधा नहीं थी महिनों नहीं चार पांच साल नायक लोग अपने सामानों का बोझ उठाये बस्ती बस्ती फिरा करते थे। लदनी का मतलब शाय़द यही रहा होगा कि बैल खच्चर, घोड़े के पीठ पर सामान लादा जाता था नायक जाति के लोगों का व्यापार करने का यही एक तरीका था।
बुजुर्ग शिवप्रसाद साहू की मानें तो
सरगुजा में नायक जातियों का आगमन उत्तर प्रदेश से व्यापार करने हुआ था एक नदी पहाड़ उबड़ खाबड़ रास्तों से पैदल चलकर एक निश्चित गांव में इनका कारवां ठहरता था। जब तक उनका धधा उस गांव में चलता था ठहरते थे अन्यथा दूसरे गांव कस्बों की ओर बढ़ जाते थे। नायक जातियों का जीवन खानाबदोशी था। किवन्दतीयो से पता चलता है ये नायक जाति के लोग बहुत मिलनसार हुआ करते थे। गांव कस्बों वालों घुल मिल कर अपना व्यापार करते थे। लदनी में हल्दी मसाले कपड़े किराना दुकान के सारे सामान के अलावा सोने चांदी तांबे पीतल गिलट आदि धातुओं से बने श्रृंगार के सामान बेचते थे। बताया यह भी जाता है कि नायक जाति के लोग सरगुजा क्षेत्र से पर्याप्त मात्रा में घी सरसों ले जाते थे नमक के बदले लाख (लाही) खरीदते थे उस ज़माने में नमक का बहुत किल्लत हुआ करता था सरगुजावासी नमक के लिए मोहताज थे । कभी कभार नायक जातियों के स्त्रीया संग मे रहती थी तब उनके द्वारा उस गांव के जहां ये ठहरें होते थे उस गांव में लोगों के फटे पुराने कपड़ों के गुदड़ी हाथ सुई से सिलते थे तथा चाकू छुरी आदि छोटे हथियार तेज करते थे।उसके एवज में एक निश्चित पारिश्रमिक लिया करते थे। ये नायक जाति कला प्रेमी भी होते थे ढोलक, हरमुनिया खजडीआदि साज रखते जब इन्हें फुर्सत का समय मिलता था तब ये चौपाल लगाकर गाना बजाना करते थे। ग्रामोफोन रिकार्ड से गाना भी सुना करते थे इनके मनोरंजन में यदा कदा गांव कस्बे के लोग भी शामिल हो जाते थे। इनके द्वारा गांवों के लोगो को बेहद सम्मान दिया जाता था ये पढ़ें लिखे कम होते थे परन्तु अनुभवी एवं बुद्धिमान हुआ करते थे।अपने देवी देवताओं के प्रति व विशेष आस्था रखते हुए पूजा अर्चना करते तथा सुख समृद्धि के लिए प्रार्थना करतें थे। बताते हैं उस जमाने में झाड़ फूंक तांत्रिक क्रियाओं का विशेष चलन था इस दृष्टि कोण से लोगों का झाड़ फूंक कर ताबीज गडा जड़ी बूटी देकर लोगों के तकलीफों को दूर करने का प्रयास भी करते थे। सरगुजा के अलावा ये नायक आसपास के नजदीकी नगरों शहरों से जाकर जरूरी सामान लाते और बेचते थे। बताया जाता है इन नायकों के टोली में तकरीबन 10-20 लोग हुआ करते थे। जो आसपास के अलग अलग गांवों में रहकर धघा करते और जब इनको दूसरे गांव जाना होता तो आपसी रायशुमारी के बाद अपने सामानों को बैल खच्चर घोड़े आदि में लाद कर चले जाते थे।जब इनका कारवां निकलता था कतारबद्ध चल रहे बैल बहुत खूबसूरत नजर आते पुल पुलिया नहीं होने कारण बरसात के दिनों में नदी किनारे वाले किसी गांव में ठहर जाते थे जब तक नदी का उफान कम नहीं हो जाता।नायक जाति एक दूसरे में तालमेल रखते थे । लखनपुर निवासी वृद्ध शिवप्रसाद साहू बताते हैं कि —स्वतंत्र भारत से पहले सन् 1939-40 से पहले यह नायक जाति के लोग सरगुजा में आते थे इनका मकसद व्यापार करके सामान बेचना था। बताते हैं बरसात के दिनों में नदी नालों में जब बाढ़ आ रही होती थी तब सामान लदे बैल का पूंछ पकड़ कर तैरते हुए नदी पार कर जाते थे। यह तभी संभव होता था जब नदी में बाढ का बहाव अपेक्षाकृत कम होता था। नदी पार जाने योग्य होता था। लखनपुर में नायक जाति के लोग पुराने समय में हाई स्कूल के पास ठहरते थे उनका छावनी हाई स्कूल के अलावा झिनपुरी पारा के खुले जगह पर लगता था। आज़ भी लोग बताते हैं। नायक कुनबु के लोग जिला सरगुजा के उदयपुर ब्लाक अन्तर्गत सोनतराई गांव में बसे होने का साक्ष्य मिलता है। आज भले ही नायक जाति के लोग आसपास में नहीं है परन्तु उनकी दास्तान क्षेत्र में बिखरी हुई है। बदले समय के साथ भौतिकवाद के धुंध में भले ही उस जमाने के क्रिया कलाप गुम है परन्तु बीते कल के सच्चाई की कहानी लोगों के जुबान पर आज भी बनी हुई है।