रामायण’ के ‘लक्ष्मण’ सुनील लहरी ने उड़ा दीं ‘आदिपुरुष’ की धज्जियां, बताईं गलतियां
(शशि कोन्हेर) : ओम राउत निर्देशित फिल्म आदिपुरुष रिलीज के पहले से ही चर्चा में बनी हुई थी। हालांकि रिलीज के बाद प्रभास , कृति सेनन , सनी सिंह , देवदत्त नागे और सैफ अली खान स्टारर आदिपुरुष दर्शकों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतरी। फिल्म के डायलॉग्स पर भारी विवाद हुआ, और ऐसे में कुछ डायलॉग्स बदले जा रहे हैं। वहीं एक्टर्स के लुक्स और सीन्स पर भी विवाद देखने को मिला। इस बीच रामानंद सागर की रामायण में लक्ष्मण का किरदार निभाकर हर दिल में खास जगह बना चुके अभिनेता सुनील लहरी ने आदिपुरुष विवाद पर रिएक्ट किया।
सुनील लहरी ने फिल्म आदिपुरुष पर जारी विवाद पर कहा, ‘फिल्म को उन्होंने अगर रामायण कहकर बनाया है तो विवाद बनता है। अगर आप फिल्म देखें तो मुझे रामायण की झलक दिखी लेकिन रामायण नहीं दिखी। अगर वो कहते है कि वो रामायण से प्रेरित होकर कुछ बना रहे हैं तो एक हद तक बात ठीक थी, लेकिन ये रामायण नहीं है। अगर हम लुक पर जाएं तो लुक जस्टीफाइड नहीं है, कैरेक्टर जस्टीफाइड नहीं है, जो मूड है वो जस्टीफाइड नहीं है, जिस हिसाब से उन्होंने सीन्स को दिखाया है, वो भी ठीक नहीं लगा।’
राम जी हमेशा ही शांत रहते थे….
सुनील आगे कहते हैं,’राम जी हमेशा ही शांत रहते थे और उनकी हर परिस्थिति में ठहराव दिखता था, लेकिन प्रभास के किरदार में ये मुझे नहीं दिखा। ये एक्टर्स की गलती नहीं है, बल्कि लिखा ही ऐसा है। ये मेकर्स की गलती है कि उन्होंने उसे ऐसे एग्जीक्यूट नहीं किया। उन्होंने कुछ अलग करने के चक्कर में ऐसी चीजें कर दीं, जिनका कभी जिक्र नहीं सुना। जैसे रावण, एक चमगादड़ पर बैठा आ रहा है, जबकि हमने पुष्पक विमान सुना है। चीजों को अलग करने का मतलब ये नहीं है कि आप चीजें ऐसा कर दें, जो कभी हुआ ही नहीं।’
एक वक्त के बाद सिर दर्द करने लगता…
फिल्म के बारे में सुनील आगे कहते हैं, ‘वहीं मेघनाद और लक्ष्मण का युद्ध उन्होंने पानी में दिखा दिया, क्या जरूरत थी इसकी? कुछ सेंस बनता हो तो ठीक है लेकिन क्यों? जैसे डायलॉग्स हैं, लोकेशन हैं… रावण को लोहा पीटते दिखा रहे हैं, जैसे लोहार है वो। इन सीन्स की क्या जरूरत थी? ये जस्टीफाई नहीं करते हैं, कोई रिफरेंस हो तो समझ आता है। जबरदस्ती में बैटलफील्ड में सीता जी का सीन लेकर आ गए। वीएफएक्स में इतना ज्यादा कर दिया कि एक वक्त के बाद सिर दर्द करने लगता है। सिनैमैटिक कह सकते हो आप कि बड़े अच्छे फ्रेम्स हैं, फोटोग्राफी के लिए, कैमरा एंगल बहुत अच्छे यूज हैं, लेकिन ये फिल्म को आगे नहीं बढ़ाते हैं।’
क्या देखकर आए, क्यों देखकर आए….
सुनील लहरी फिल्म के लिए आगे कहते हैं, ‘आप बाहर निकलकर कहानी को सोचे तो समझ नहीं आएगा कि क्या देखकर आए, क्यों देखकर आए। मैं सोच रहा था कि मैच्योर लोग हैं, सेंसबल फिल्ममेकर्स हैं, कुछ अच्छा बनाएंगे। लेकिन नहीं हुआ ऐसा। उनकी पिछली फिल्में अच्छी रहीं। कोई भी सीन भी पूरी तरह से खत्म नहीं होता है, जैसे लक्ष्मण रेखा वाला सीन है, जो जटायू के मरने का सीन है, सीता जी के आभूषण का सीन है, किसी भी सीन को लेकर ऑडियंस के इमोशन्स नहीं जागते हैं।’