(इरशाद अली संपादक लोकस्वर टीवी) : बिलासपुर / बच्चों को शिक्षा देने के नाम पर नोट छापने का खेल बिलासपुर में बड़ी जोरो से चल रहा है। स्कूल की चमक दमक दिखाकर संपन्न परिवारों से लाखों रुपए वसूलने वाले निजी स्कूलों के खिलाफ प्रशासन का मौन रहना कहीं ना कहीं उनको बढ़ावा देने का काम कर रहा है। बिलासपुर में ऐसे कई स्कूल हैं जो बच्चों का भविष्य संवारने के नाम पर उनकी गाढ़ी कमाई को किसी चुंबक की तरह खींचे जा रहे हैं।
पालक भी बच्चों के बेहतर भविष्य का सपना लिए खुद को बाजार में बेचने पर आमादा है। बिलासपुर जिले में बड़ी-बड़ी बिल्डिंग के पीछे चल रहा है शिक्षा के नाम पर माफियाओं का खेल।पलकों को लगता है कि उनके बच्चे जितने बड़े और महंगे स्कूलों में पढ़ेंगे, उनका भविष्य उतना ही उज्जवल होगा। मगर ऐसा होता नही है। अपना स्टेटस और बच्चों को काबिल बनाने की कोशिश में हर साल जब भी बोर्ड परीक्षा के नतीजे आते हैं तो मेरिट लिस्ट में शामिल आधे से अधिक बच्चे सरकारी और गांव देहात के होते है।
ऐसे ही एक स्कूल से प्रताड़ित अभिभावक ने अपनी व्यथा सोमवार को बिलासपुर प्रेस क्लब में पहुंचकर सुनाई। आशीर्वाद वेली निवासी पालक संजय सिंह ने बोदरी में स्थित एलसीआईटी पब्लिक स्कूल की शिकायत कलेक्टर,एस पी, शिक्षाधिकारी सहित चकरभाठा थाने में अधिकारियों से की है।उन्होंने बताया कि स्कूल प्रबंधन ने फीस ना पटाने के नाम पर मासूम बच्चों के साथ उनका भी अपमान किया और बच्चों का मार्कशीट रोक लिया।
जबकि पिता प्रमाण के साथ कह रहे हैं कि उन्होंने साल के शुरू में ही पूरी फीस पटा दी है। यानी जानबूझकर उन्हें मानसिक रूप से प्रताड़ित किया जा रहा है। इस भया दोहन के खिलाफ अब उन्होंने मोर्चा खोल दिया है।संजय सिंह का पुत्र सजत कुमार सिंह कक्षा नवमी और बेटी दीक्षा सिंह कक्षा चौथी में एलसीआईटी पब्लिक स्कूल में पढ़ती है। शैक्षणिक वर्ष 2022-23 के शुरू में ही 11 अप्रैल 2022 को संजय सिंह ने अपने बेटे रजत कुमार सिंह का साल भर का स्कूल फीस ₹48,070 तथा बेटी दीक्षा की साल भर की फीस ₹39,349 पटा दी थी।
अन्य निजी स्कूल की तरह एलसीआईटी स्कूल ने भी बच्चों के लिए यूनिफॉर्म, किताब आदि स्कूल प्रबंधन से ही खरीदने का दबाव बनाया। मजबूरी में संजय सिंह ने यह भी किया। दोनों बच्चों को स्कूल लाने ले जाने के लिए बतौर परिवहन शुल्क ₹18,070 भी उन्होंने एडवांस में जमा करा दिया। हैरानी तो उन्हें उस वक्त हुई जब मार्च 2023 में परीक्षा से पहले दोनों बच्चों का प्रवेश पत्र जारी किया गया तो उसके साथ यह टीप लिखा गया कि उनकी फीस बकाया है। इतना ही नहीं क्लास टीचर ने मासूम दीक्षा को पूरे क्लास के सामने डांटते हुए अपमानित किया कि जब उनकी पिता की हैसियत स्कूल की फीस पटाने की नहीं है तो वह स्कूल आती ही क्यों है।
आप सोच सकते हैं कि किसी मासूम बच्चे पर इस तरह की बातों का कितना गहरा असर पड़ सकता है।जब संजय सिंह को इसकी जानकारी हुई तो वे भी हैरान रह गए। उन्होंने खुद स्कूल जाकर सभी पुराने रसीद दिखाएं और बताया कि उन्होंने तो पहले ही सारा फीस पटा दिया है । यह देख प्रबंधन ने मौखिक में अपनी गलती मानी और कहा कि अब ऐसी भूल नहीं होगी। लेकिन 31 मार्च को जब संजय सिंह अपने बेटे सजत और दीक्षा का रिजल्ट लेने स्कूल गए तो अन्य अभिभावकों के सामने ही कक्षा नौवीं की शिक्षिका डोला मुखर्जी तथा कक्षा चौथी की शिक्षिका दीपिका दीवान ने भरी महफिल में बेहद अपमानजनक ढंग से उन पर चिल्लाते हुए कहा कि जब फीस पटाने की हैसियत नहीं है तो इतने बड़े स्कूल में क्यों पढ़ाते हो।
साथ ही कहा कि जब तक दोनों बच्चों की फीस अदा नहीं होती दोनों बच्चों का रिजल्ट नहीं दिया जाएगा। संजय सिंह ने जब यह बताने का प्रयास किया कि वे तो फीस पहले ही पटा चुके हैं तो दोनों शिक्षिकाओं ने हाथ खड़ा करते हुए कह दिया कि यह सब कुछ स्कूल के डायरेक्टर और प्राचार्य के आदेश पर किया जा रहा है। उनका ही निर्देश है कि फीस ना पटाने वाले अभिभावकों को यूं ही सबके सामने जलील किया जाए।
उनकी कोई भी दलील दोनों टीचर द्वारा ना सुनने पर संजय सिंह ने स्कूल के प्रबंधन से मिला, लेकिन उन्होंने भी कोई बात ना सुनते हुए एक बार फिर से संजय सिंह को अपमानित किया।पूरी फीस पटाने के बाद भी स्कूल प्रबंधन इस तरह से अभिभावक और उनके बच्चों को प्रताड़ित कर रहा हैं, यह हैरानी की बात है । जाहिर है स्कूल प्रबंधन का लक्ष्य बेहतर शिक्षा देना नहीं बल्कि एन केन प्रकारेण फीस बटोरना भर है। इसीलिए तो जिन शिक्षकों पर बच्चों का भविष्य बनाने की जिम्मेदारी है , वहीं शिक्षक बच्चों को प्रबंधन के इशारे पर मानसिक रूप से प्रताड़ित कर उन्हें हीन भावना से ग्रसित कर रहे हैं।
अपने ही सहपाठियों के सामने बार-बार फीस ना पटा पाने का अपमान बच्चे बेवजह सह रहे हैं, जिससे उनका मानसिक संतुलन बिगड़ सकता है। बाल मन पर इसकी गहरी छाप पड़ सकती है, लेकिन स्कूल प्रबंधन को इन सबसे क्या ? उन्हें तो बस मतलब है तो पैसों की उगाही से। इसके लिए वे अभिभावकों को, बच्चों को ब्लैकमेल करने से भी गुरेज नहीं कर रहे। ऐसे निजी स्कूलों के लिए तो अभिभावक वह गन्ना है जिसका एक एक बूंद निचोड़ लेने की कला में इन स्कूलों ने मास्टर डिग्री हासिल कर रखी है।
संजय सिंह के मामले में तो हैरान करने वाली बात यह है कि पूरी फीस पटाने के बाद भी उन्हें इस तरह से बार-बार बेवजह जलील किया जा रहा है। पता नहीं उनसे किस बात का बदला एलसीआईटी स्कूल ले रहा है। यह भी पता नहीं कि इसी अनुभव से और कितने अभिभावक गुजर रहे होंगे जो बच्चों के भविष्य की परवाह कर अपने होंठ सील कर खामोश है। फिलहाल संजय सिंह ने पुलिस और प्रशासन से शिकायत कर एलसीआईटी स्कूल के डायरेक्टर प्रमोद जैन और प्राचार्य सबस्टिन जोसेफ के साथ स्कूल की शिक्षिका डोला मुखर्जी , दीपिका दिवान और स्कूल प्रबंधन के खिलाफ सख्त कार्यवाही की मांग की है।
बिलासपुर प्रेस क्लब में उन्होंने सभी दस्तावेज दिखाएं ,जिससे यह प्रमाणित हो रहा है कि संजय सिंह सही कह रहे हैं। ऐसे में स्कूल शिक्षा विभाग को ऐसे स्कूल की जांच कर तत्काल ऐसे स्कूल के गेट पर ताला जड़ देना चाहिए, जो शिक्षा का मंदिर नहीं बल्कि एन केन प्रकारेण पैसा कमाने का अड्डा बन गया है। उन अभिभावकों को भी सोचना होगा जो बड़े और महंगे स्कूलों में एडमिशन के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं। लाखों रुपए खर्च करने के बाद भी उन्हें आखिर में इस तरह से जलील होना पड़ता है।पालक ने जांच कार्यवाई नही होने पर न्यायालय की शरण लेने का मन बनाया है।