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रामसेतु की तरह, सरस्वती नदी के अस्तित्व को भी मानेगी नई पीढी..!

(शशि कोन्हेर) : नई दिल्ली – राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत ने गौरवपूर्ण प्राचीन सनातन संस्कृति की पुर्नस्थापना के लिए सांस्कृति धरोहरों के प्रमाणीकरण पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि इसके लिए बड़े स्तर पर शोध आवश्यक है। क्योंकि आज की पीढ़ी उसे मानने लिए पहले प्रमाण मांगती है। शिक्षा व्यवस्था आस्था को बढ़ावा नहीं देती है। उन्होंने कहा कि यह प्रयास विश्व को भी नई दिशा देगा, क्योंकि अभी तक हमें यहीं बताया जाता रहा है कि हमारे पास जो कुछ है वो दुनियां ने दिया, हमने सब कुछ दुनियां से लिया। हमारा अपना कुछ नहीं है। हमने केवल दुनियां की नौकरी की है।

सरसंघचालक ने कहा कि अगर भारत को फिर से विश्व गुरू बनाना है। विश्व में अपनी हैसियत बनानी है तो सनातन प्राचीनता को फिर से स्थापित करना पड़ेगा। इसके लिए सभी को जोर लगाना हाेगा। क्योंकि इसके गौरवपूर्ण प्राचीन धरोहरों और मान्यता को लेकर धूर्तों द्वारा इतनी बार झूठ बोला गया।

इसके साथ ही ऐसे प्रमाण खड़े किए। उन्होंने अपनी भाषाएं तथा और सारी बातें स्थापित की जिससे हम उनके द्वारा बनाई गई गुलामी की मानसिकता के शिकार हो गए। अपने इतिहास को ही भूल गए। उस विस्मृति को हटाने के लिए प्रमाण आवश्यक है।

वह जनपथ होटल स्थित इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र (आइजीएनसीए) में “द्विरूपा सरस्वती’ पुस्तक के विमोचन अवसर को संबोधित कर रहे थे। यह पुस्तक सरस्वती नदी के इतिहास और प्रमाणित करते दस्तावेजों का संकलन है। इसे आइजीएनसीए के ट्रस्टी डा. महेश शर्मा व मानद सचिव सच्चिदानंद जोशी ने संपादित किया है। उन्होंने कहा कि जैसे राम और रामायण के साथ राम सेतु को मौजूदा पीढ़ी मानने लगी है। वैसे ही वह सरस्वती नदी को भी मानेगी। जिसपर एक बड़े वर्ग की श्रद्धा है। एक देवी और एक नदी के रूप में।

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