बिलासपुर

बलिदान दिवस पर महापौर रामशरण यादव ने शहीद हेमू की प्रतिमा पर माल्यार्पण किया


(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – शहीद हेमू कलानी की पुण्यतिथि शुक्रवार को हेमू कॉलोनी सांस्कृतिक मंडल बिलासपुर द्बारा बलिदान दिवस के रूप में मनाई गई। सुबह 9:3० बजे भक्त कवर राम नगर द्बार के पास हेमू कॉलोनी चौक स्थित प्रतिमा पर श्रद्धा सुमन अर्पित किया गया। इसके मुख्य अतिथि के रूप में प्रथम नागरिक बिलासपुर महापौर राम शरण यादव मौजूद रहे। अध्यक्षता सांस्कृतिक मंडल के अध्यक्ष प्रभाकर मोटवानी ने की। विशिष्ट अतिथि डॉ ललित मखीजा थे। संचालन मोहन शेरा भैया द्बारा किया गया। इस अवसर पर सिधु सेवा समिति के अध्यक्ष बृजलाल भोजवानी, पूज्य पंचायत सिधी कॉलोनी के अध्यक्ष हरीश भागवानी, जन जागरण समिति के अध्यक्ष हरिकिशन गंगवानी आदि मौजूद रहे।इस मौके पर अतिथियों ने शहीद हेमू की जीवन पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि हेमू कलानी सिध में 23 मार्च सन 1923 को जन्मे थे। उनके पिता का नाम पर पेसू मल एवं उनकी मां का नाम जोठीबाई था। हेमू बचपन से साहसी थे। विद्यार्थी जीवन से ही क्रांतिकारी गतिविधियों में सक्रिय रहे। हेमू जब सात वर्ष के थे, तब से वह तिरंगा लेकर अंग्रेजों की बस्ती में अपने दोस्तों के साथ क्रांतिकारी गतिविधियों का नेतृत्व करते थे। 1942 में 19 वर्षीय क्रांतिकारी ने अंग्रेजी भारत छोड़ो नारे के साथ अपनी टोली के साथ सिध प्रदेश में तहलका मचा दिया था। उसके उत्साह को देखकर प्रत्येक सिधवासी में जोश आ गया। हेमू समस्त विदेशी वस्तुओं का बहिष्कार करने के लिए लोगों से अनुरोध किया करते थे। शीघ्र ही सक्रिय क्रांतिकारी गतिविधियों में शामिल होकर उन्होंने अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने का संकल्प लेकर राष्ट्रीय स्वतंत्रता के आंदोलन में कूद पड़े। 1942 में जब उन्हें यह गुप्त जानकारी मिली कि अंग्रेजी सेना हथियारों से भरी रेलगाड़ी रोहड़ी शहर से होकर गुजरेगी हेमू कॉलोनी ने अपने साथियों के साथ रेल पटरी को अस्त-व्यस्त करने की योजना बनाई वे यह सब कार्य अत्यंत गुप्त तरीके से कर रहे थे फिर भी यहां तैनात पुलिसकर्मियों की नजर उन पर पड़ी और उन्हें गिरफ्तार कर लिया और उनके बाकी साथी फरार हो गए हेमू कॉलोनी को कोर्ट ने फांसी की सजा सुनाई उस समय सिध के गणमान्य लोगों ने एक पिटीशन दायर की और वायसराय से उनकी फांसी की सजा न देने की अपील की वायसराय ने इस शर्त पर यह स्वीकार किया कि हेमू कॉलोनी अपने साथियों का नाम और पता बताएं पर हेमू कॉलोनी ने यह शर्त स्वीकार कर दी और 21 जनवरी 1943 को उन्हें फांसी की सजा दी गई फांसी से पहले उनसे आखिरी इच्छा पूरी पूछी गई उन्होंने भारत वर्ष में फिर से जन्म लेने की इच्छा जाहिर की इंकलाब जिदाबाद भारत माता की जय की घोषणा के साथ अपनी उन्होंने फांसी को स्वीकार किया।

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