ताजियादारो ने निकाले ताजिया कर्बला में जाकर मुकम्मल हुई मुहर्रम
(मुंन्ना पाण्डेय) : लखनपुर+(सरगुजा) :
प्रत्येक वर्ष की भांति हज़रत इमाम हुसैन की याद में मनाया जाने वाला मातमी पर्व मुहर्रम स्थानीय मुस्लिम समुदाय के लोगों ने शिद्दत के साथ मनाया पहलाम के रोज 29 जुलाई शनिवार-को इमामबाड़ा से ताजिया निकाले गए साथ में दुल्ला बाबा की सवारी भी निकली ।
ताजियादारो का काफिला कदमी चौक से पठानपुरा ,थाना मुख्य मार्ग, बस स्टैंड से गुजरते जामामस्जिद पैलेस मार्ग होते हुए रियासत कालीन रिवाज के मुताबिक राजमहल के सामने पहुंचा जहां राजपरिवार प्रमुख लाल अजीत प्रसाद सिंह देव तथा कुंवर अमित सिंह देव सुमीत सिंह देव ने ताजिया एवं दुल्ला बाबा के सवारी का स्वागत फूल मालाओं तथा इत्र गुलाब जल से किया।
दुल्ला बाबा के सवारी को देखने लोगों की भीड़ लगी रही। नगर लखनपुर में रियासत काल से मुहर्रम मनाने तथा दुल्ला बाबा सवारी आने की रवायत रही है। इस्लाम के जानकारों की मानें तो हज़रत इमाम हुसैन के घोड़े का नाम दुलदुला था। उसी का अपभ्रंश है दुल्ला बाबा जो सवारी के रूप में आती है। ऐसी मान्यता है कि उसी को दुल्ला बाबा की सवारी कहते हैं।
मौजूदा वक्त में यह सवारी नाले हैदर, नाले अरधात के नाम से जाकिर हुसैन एवं फरीद खान को आती है पुराने जमाने में यह सवारी मुस्लिम समुदाय के अन्य दूसरे लोगों को आती थी।जलते आग के अवाले से खेलना टोना-टोटका की झाड़ फूंक करना दुल्ला बाबा की खासियत रही है। मन्नतें मानने वाले लोग भी बाबा के दरबार में दूर-दर से पहुंचते हैं। बाबा के करम से सबकी मुरादें पूरी होती है।
इनके दरगाह से कोई भी दरपेश सवाली मायूस नहीं लौटता। बाबा के सवारी में एक अजीब कशिश होती है। कुदरती करिश्मा माना जाता है। दुल्ला बाबा के सवारी आने तथा उनके हैरतअंगेज कारनामे के अनेकों दिलचस्प किस्से कहानियां आज भी कहे सुने जाते हैं। मुस्लिम समुदाय के जानकारों की मानें तो।
मुहर्रम इस्लाम धर्म का मातमी पर्व है। तथा इस्लामी साल का पहला महीना होता है ।इसे हिजरी भी कहा जाता है। मुहर्रम का ऐतिहासिक पहलू यह भी माना जाता है कि बहुत समय पहले इराक में यजीद नाम का एक क्रूर जालिम हुक्मरान हुआ करता था। जो इंसानियत का दुश्मन था हजरत इमाम हुसैन ने जालिम बादशाह यजीद के खिलाफ जंग का ऐलान किया ।
हजरत इमाम हुसैन के बग़ावत से नाराज़ बादशाह ने इमाम हुसैन को कर्बला नाम की जगह पर उनके परिवार व दोस्तों के साथ शहीद कर दिया। जिस महीने में हुसैन और उनके परिवार को बर्बरता के साथ शहीद किया गया वह मोहर्रम का महीना एवं 10 तारीख थी यही से मातमी पर्व का आगाज हुआ।कहा जाता है इमाम हुसैन के साथ जो लोग कर्बला में शहीद हुए थे उन्हें याद किया जाता है और उनके रूह की शांति के लिए दुआ की जाती है।
हजरत इमाम हुसैन की शहादत की याद में मनाये जाने वाले मुहर्रम के दसवें पहलाम के दिन मुस्लिम समुदाय द्वारा बांस लकड़ी तथा रंग बिरंगी कागजों से सुसज्जित ताजिया निकाले जाते हैं। यह ताजिया हजरत इमाम हुसैन के मकबरे के प्रतिक के रूप में निकाले जाते हैं। जुलूस में हज़रत इमाम हुसैन के सैन्य बल के शक्ल में मुस्लिम समाज के लोग युद्ध कला बाजी दिखाते हुए चलते हैं।
मुहर्रम के जुलूस में शरीक लोग इमाम हुसैन के लिए अपनी संवेदना दर्शाने के लिए बाजों पर शोक धुन बजाते हैं और मर्सिया गाते हैं। लिहाज़ा कही कही मुस्लिम समुदाय के लोग शोकाकुल होकर विलाप करते हैं और अपनी छाती पीटते हैं इस तरह से इमाम हुसैन के शहादत को याद किया जाता है ।
बहरहाल नगर लखनपुर में मुस्लिम समुदाय के लोग ढोल नगाड़ों तथा डीजे साउण्ड सिस्टम के धुन पर मर्सिया पढ़ते हुए शहीदे कर्बला की ओर बढ़ते रहे देर शाम नगर के वार्ड क्रमांक 15 शिवपुर स्थित कर्बला में जाकर फातिहा पढ़ी गई ताजिया को विसर्जित एवं दुल्ला बाबा के सवारी को ठंडा किया गया। इस तरह से दस दिनों तक चलने वाले इस्लामिक मातमी पर्व मुहर्रम का सिलसिला मुकम्मल हुई। इस मौके पर अंजूमन गौसिया कमेटी के ओर से लोगों को लंगर भी खिलाया गया।