बिलासपुर

“अस्मितामूलक विकलांग-विमर्श विषयक ” राष्ट्रीय संगोष्ठी संपन्न



बिलासपुर। जमुना प्रसाद वर्मा शासकीय स्नातकोत्तर कला एवं वाणिज्य महाविद्यालय बिलासपुर में इक्कीसवीं सदी का”अस्मितामूलक विकलांग-विमर्श” विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन प्रख्यात समीक्षक डा.सुंधाशु शुक्ला प्राध्यापक हंसराज कालेज दिल्ली विश्वविद्यालय के मुख्य आतिथ्य, डा.श्याम लाल निराला प्राचार्य निराला की अध्यक्षता तथा डा.विनयकुमार पाठक कुलपति, थावे विद्यापीठ गोपालगंज ( बिहार), डा.सुरेश महेश्वरी व्यंगालोचक( महाराष्ट्र), डा.रामशंकर भारती समीक्षक व कथाकार (झाँसी) के विशेष आतिथ्य में उद्घाटन समारोह संपन्न हुआ।

इस अवसर पर डा. ए.के.यदु द्वारा संपादित “विकलांग-विमर्श:मानवता का उत्कर्ष”, डा.अनिता सिंह द्वारा लिखित विकलांगतापरक उपन्यास “स्वीकरण”, डा.विनयकुमार पाठक कृत “विकलांग विमर्शः दशा और दिशा” का डा.गीता दोड़मणी का मराठी में अनुवादित ग्रंथ तथा डा.रामशंकर भारती द्वारा लिखित “डा. विनय कुमार पाठक और इक्कीसवीं सदी के विमर्श” का विमोचन किया गया। अपना बीज वक्तव्य देते हुए प्रख्यात विमर्शकार डा.विनयकुमार पाठक ने कहा कि आज अस्मितामूलक विकलांग-विमर्श राष्ट्रीय चिंतन और चेतना का मूल विषय बन गया है। जिसके चलते इक्कीसवीं सदी में विकलांगतापरक चिंतन विशुद्धमानवतावादी दृष्टिकोण के रूप में स्थापित हो रहा है। समारोह के मुख्य अतिथि डा. सुधाँशु
कुमार शुक्ला ने अपने सारगर्भित उद्बोधन में कहा कि यह सुखद स्थिति है कि अब भारत के उत्कृष्ट पुनर्निर्माण में अस्मितामूलक विकलांग-विमर्श समाहित है। विशिष्ट अतिथि समीक्षक डा.सुरेश महेश्वरी ने अस्मितामूलक अवधारणा पर चर्चा की। डा.रामशंकर भारती ने समाज में विकलांगों को स्वावलंबी बनाने पर जोर दिया। सभा की अध्यक्षता कर रहे प्राचार्य डा.एस.एल.निराला ने अस्मितामूलक विकलांग-विमर्श को पाठ्यक्रम में समाहित करने आवश्यकता बताई। पं.सुंदरलाल शर्मा मुक्त विश्वविद्यालय के पूर्व कुलपति डा.
राजकुमार सत्यदेव ने कहा कि अस्मितामूलक विकलांग – विमर्श समाज के सहयोग से ही संभव है। संगोष्ठी के द्वितीय तकनीकी सत्र के मुख्य वक्ता न्यायमूर्ति चंद्रभूषण वाजपेयी ने
कहा कि विकलांगता के प्रति प्रचलित भ्रांतियों दैवी अभिशाप, अंधविश्वास आदि को नष्ट करने के लिए सामाजिक चेतना जाग्रत करने की आवश्यकता है। डा.मंजुश्री वेदुला ने कहा विकलांगता अभिशाप नहीं चुनौती है।डा. ए.के. यदु ने विकलांगों को समान अधिकार मिलने की आवश्यकता बताई।विकलांगतापरकपरक उपन्यासों की लेखिका डा.अनिता सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि विकलांगों के लिए सामाजिक सौहार्द की दरकार है। इसके अतिरिक्त अन्य वक्ताओं व शोधकर्ताओं में संगीता टंडन, कृष्णा यादव, डा.आभा गुप्ता, डा, संगीता बनाफर, डा.राघवेंद्र कुमार दुबे, आशीष श्रीवास आदि ने अपने विचार व्यक्त किए। संगोष्ठी में अनेक प्रदेशों आए शोधार्थियों ने शोधपत्र वाचन किये।
राष्ट्रीय संगोष्ठी का शुभारंभ सरस्वती पूजन व अतिथियों के सम्मान अलंकरण से हुआ। विदुषी डा.जयश्री शुक्ल ने अतिथियों का परिचय कराते हुए संगोष्ठी के औचित्य पर प्रकाश डाला। अखिल भारतीय चेतना परिषद बिलासपुर के महामंत्री मदनमोहन अग्रवाल ने परिषद की विकलांगता के क्षेत्र में की जा रही गतिविधियों पर प्रकाश डाला।
संगोष्ठी का सफल संचालन डा. फेदोरा बरवा ने किया तथा डा. परमजीत पाण्डेय ने संगोष्ठी में पधारे अतिथियों व विद्वानों का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डी.पी.गुप्ता,
बालगोविंद अग्रवाल, नित्यानंद अग्रवाल, बजरंग लाल अग्रवाल, यस.विश्वनाथ राव, के.के.भण्डारी, डा.मंजुला पाण्डेय, श्रीमती चैफाली तलुजा सहित महाविद्यालय के प्राध्यापकगण, विधार्थी तथा शोधकर्ता उपस्थित रहे।

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