होली पर नंगाड़े जरूर, पहले की तुलना में कई गुना अधिक बिकते हैं, लेकिन लुप्त होती जा रही है फाग की पुरातन परंपरा..शराब में डूब कर दम तोड़ता जा रहा है होली का रंग
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर। होली के नजदीक आते ही खैरागढ़ से और आसपास से ट्रकों में र भरकर नंगाड़े लेकर बिलासपुर पहुंचने वाले नगाड़ा विक्रेताओं ने अपनी दुकानें सजाने शुरू कर दी हैं।इन दुकानों में 200 से लेकर ₹2000 प्रति जोड़ी तक कीमत पर नंगाड़े उपलब्ध है। बिलासपुर में शनिचरी रपटा के पास और रेलवे क्षेत्र में बुधवारी के पास बिकने के लिए दुकानों में जितने नगाड़े आते हैं। उतने नगाड़े पहले देखने को नहीं मिलते थे। बिलासपुर में पहले मगरपारा या फिर रतनपुर से ही नंगाडा खरीद कर लाना होता था।
अब वे बिलासपुर में ही आसानी से उपलब्ध है। लेकिन नगाड़े की तान पर पारंपरिक फाग गीत को गाने वालों का अब टोटा पड़ता जा रहा है। पुरानी पीढ़ी पारंपरिक छत्तीसगढ़िया फाग और ब्रज की होली का जितना सुंदर गायन किया करते थे वह अब केवल सुखद याद बनकर रह गया है। अभी भी मात्र कुछ मोहल्लों में होली और फाग दोनों को एक साथ देखने सुनने का आनंद उपलब्ध होता है। बाकी शहर के तीन चौथाई मुहल्लों में होली क्यों मनाई जाती है लेकिन फाग और फाग का राग गायब रहता है।
पहले होली पर्व के 15- 20 दिन पहले से नगाड़ों की आवाज रात के समय शहर की फिजा में गूंजने लगती थी। लेकिन अब नंगाडों को बेसुरे ढंग से बजाने की आवाज अधिक सुनाई देती है। सिस्टमैटिक ढंग से फाग का गायन अब धीरे-धीरे खत्म होता जा रहा है। जिन कुछ जगहों पर फाग के प्रेमी अपना राग रंग जमाते हैं वहां भी शराब के नशे में चूर लोग बीच-बीच में जबरिया दोहा पाडकर फाग के राग को भंग कर देते हैं। दरअसल अब बिलासपुर में होली का मतलब ना तो नगाड़ा रह गया है और ना ही फाग। अब होली बेरोकटोक शराब खोरी और नशे में की जाने वाली उच्छृंखलता तथा कानून व्यवस्था की समस्या और जोखिम भरा पर्व बन कर रह गया है।
अब होली आते ही पुलिस को अपनी पूरी ताकत अप्रिय वारदातों को रोकने, अमन चैन बनाए रखने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंकने और असामाजिक तत्वों को समाज से उठाकर जेल भेजने में लगानी पड़ती है। इस बिगड़े स्वरूप के कारण होली का फाग और नंगाडों का राग दोनों ही विलुप्त होता जा रहा है। शहर में नगाड़े तो खूब बिका करतेए हैं लेकिन तरीके से फाग गायन सपना बनता जा रहा है।। इसके पुराने जानकार लोगों को फाग गायन का अपना ज्ञान नई पीढ़ी को ट्रांसफर करना चाहिए। ऐसा करने पर ही यह विधा जीवित बच पाएगी। अन्यथा होली का त्यौहार केवल शराबियों और शराब खोरी करने वालों का पर्व बनकर रह जाएगा।