एक तस्वीर, 3 मुलाकातें और कई संकेत; क्यों शरद पवार और अजित पवार के अंदरखाने एक होने की चर्चा
(शशि कोन्हेर) : महाराष्ट्र की राजनीति में शरद पवार एक ऐसे नेता हैं, जिनके दांव आसानी से समझ नहीं आते। कई बार करीबी भी उनके अगले कदम से अनजान रहते हैं। एनसीपी में इन दिनों जो चल रहा है, उसे लेकर भी कयासों का दौर जारी है। अजित पवार की बगावत को करीब 4 सप्ताह हो चुके हैं।
अजित पवार और उनके 8 समर्थक नेताओं को मंत्री पद मिल गया है। एनसीपी दो धड़ों में बंटी दिख रही है, लेकिन जिस तरह से दोनों गुटों में सीजफायर जैसी स्थिति है, उससे चर्चाएं तेज हैं। कोई कह रहा है कि शायद यह शरद पवार का ही गेमप्लान तो नहीं है। इसे कुछ घटनाओं से बल भी मिला है।
एक वजह यह है कि अब तक किसी भी गुट ने 36 विधायकों का समर्थन दिखाने की हड़बड़ी नहीं दिखाई है, जो पार्टी पर दावे के लिए जरूरी है। एनसीपी के कुल 53 विधायक हैं और उसके दो तिहाई यानी 36 या उससे ज्यादा जरूरी हैं ताकि पार्टी पर दावा किया जा सके।
चुनाव आयोग में शुरुआती दौड़ के बाद फिलहाल दोनों गुट शांत हैं। इसके अलावा दोनों तरफ से एक-दूसरे पर तीखे हमले नहीं हो रहे हैं। कम से कम निजी हमलों से तो परहेज किया ही जा रहा है। इससे यह माना जा रहा है कि दोनों ने दरवाजे खोल रखे हैं।
मुलाकातों के बाद क्यों नरम हैं चाचा और भतीजा
विधानसभा की कार्यवाही में भी दोनों गुटों के विधायक पूरी संख्या में नहीं पहुंच रहे हैं। इसे भी टकराव को टालने की एक कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। पिछले दिनों अजित पवार और शरद पवार की तीन मुलाकातें भी हुई थीं। इसके बाद से चाचा और भतीजा के बीच कोई तीखी बात सामने नहीं आई है।
इस बीच एक फोटो वायरल हो रही है, जिसने अंदरखाने किसी गेम की चर्चा को और तेज किया है। दरअसल अजित पवार और महाराष्ट्र एनसीपी के अध्यक्ष जयंत पाटिल को प्रतिद्वंद्वी माना जाता है। पाटिल को शरद पवार के सबसे भरोसेमंद लोगों में शुमार किया जाता है।
जब गले मिले जयंत पाटिल और सुनील तटकरे
कुछ दिन पहले ही जयंत पाटिल और अजित पवार ग्रुप के नेता सुनील तटकरे की विधानसभा में मुलाकात हुई थी। दोनों इस दौरान गले मिले और खूब हंसकर बात करते रहे। दो प्रतिद्वंद्वियों के ऐसे मिलन की तस्वीरें वायरल हैं। इसके अलावा अजित पवार जो वित्त मंत्रालय संभाल रहे हैं, उन्होंने एनसीपी के दोनों गुटों के विधायकों के क्षेत्र के लिए बड़े पैमाने पर फंड जारी किया है।
साफ है कि वह शरद पवार खेमे के कहे जा रहे विधायकों के लिए रास्ता खोले हुए हैं। पर चर्चा सबसे ज्यादा यही है कि शरद पवार की राजी से ही यह सब कुछ हो रहा है। वह शायद देखो और इंतजार करो की रणनीति पर काम कर रहे हैं। 2024 से कुछ महीने पहले वह बड़ा फैसला ले सकते हैं।