लोग प्रसन्न रहना तो भूल ही रहे हैं, हद तो यह है कि वे रोना भी भूल रहे हैं-मोरारी बापू
(शशि कोन्हेर).: ओंकारेश्वर । विश्व प्रसिद्ध राम कथा वक्ता संत मोरारी बापू ने कहा कि अगर समृद्धि हमें भावशून्य कर दे, यह घाटे का सौदा होगा। ऐसी प्रगति, ऐसी भौतिक उन्नति किसी काम की नहीं है जो हमारे भगवत स्मरण को घटा दे और हमारे आंसुओं को सुखा दे। द्वादश ज्योतिर्लिंग राम कथा यात्रा के दसवें पड़ाव पर ओंकारेश्वर ज्योतिर्लिंग का वाणी अभिषेक करते हुए शुक्रवार को मोरारी बापू ने कहा कि आपाधापी में लोग प्रसन्न रहना तो भूल ही रहे हैं।
हद तो यह है कि वे रोना भी भूल रहे हैं। कई लोग खुद मुझसे कहते हैं कि धन संपत्ति तो खूब कमा ली मगर अब किसी भी बात पर आंखें नम नहीं होतीं। शनिवार को भगवान महाकाल के अभिषेक के बाद उज्जैन में श्रीराम कथा सुनाएंगे मोरारी बापू।
उन्होंने कहा कि मेरा स्पष्ट कहना है कि यह घाटे का सौदा है। कुछ भी कमा लो और संवेदनाओं को गंवा दो तो नुकसान की बात है। बापू ने कहा कि आदमी जितना बड़ा होता है, उसकी उदासी, उसकी पीड़ा भी उतनी ही गहरी होती है।उन्होंने कहा कि उनकी जीवन यात्रा में भी कई ऐसे लोग आए जिनके हाथों में उन्होंने श्रीरामचरितमानस थमाई मगर एक वक्त के बाद उन्हीं लोगों ने अपशब्द कहे।
बापू ने कहा कि मैंने मुस्कुराते हुए बहुत कुछ सहन किया है। अगर कहीं अच्छाई है तो उसके विरोध में बुराइयां संगठित होंगी ही।बापू ने कहा कि कलियुग में मुस्कराते हुए हर विपरीत स्थिति का सामना करते हुए उसे सहन करना भी तप है। विष पीने पर ही शिव तत्व की प्राप्ति होती है। कष्ट सहने पर ही ईष्ट मिलते हैं। जब ईष्ट मिलते हैं तो हर प्रहार शंभू का प्रसाद बन जाता है।
बापू ने युवाओं से अपील की कि वो श्रीरामचरितमानस और अन्य ग्रंथों का महत्व समझें। आज के इस दौर में इंटरनेट के जरिये भी बहुत से ग्रंथ पढ़ सकते हैं।मोरारी बापू ने कहा कि उनकी इस द्वादश ज्योतिर्लिंग राम कथा यात्रा की बहुत चर्चा हो रही है। कुछ लोग कह रहे हैं एक नया कीर्तिमान बनाया जा रहा है लेकिन यह विशुद्ध रूप से आध्यात्मिक यात्रा है। कुछ लोगों ने ये राय भी दी है कि बापू अब आप पद यात्रा भी करना। मेरा यही कहना है कि आजकल पद यात्रा तो पद पाने के लिए निकाली जा रही हैं।
बापू ने कहा कि उनकी ये राम कथा यात्रा अंधेरे से प्रकाश की यात्रा है। मोरारी बापू ने द्वादश ज्योतिर्लिंग राम कथा यात्रा को समन्वय की यात्रा भी बताया। बापू ने ओंकारेश्वर और ममलेश्वर के इतिहास के बारे में बताते हुए कहा कि ये कर्मयोग, ज्ञानयोग और भक्तियोग के समन्वय की भी भूमि है। उन्होंने कहा कि आदि जगद्गुरु भगवान शंकराचार्य भी यहां आए थे। जगद्गुरु भी यहां की जीवंतता को महसूस कर नदी के किनारे नृत्य करने लगे थे। उन्होंने श्रद्धालुओं से अपील की कि नदियों को और तीर्थों को साफ-सुथरा रखें।