छत्तीसगढ़

गणेश चतुर्थी पर आज बन रहा है दुर्लभ योग, गणपति पूजा से जुड़ी इन बातों का रखे ध्यान…..देखिये शुभ मुहूर्त व पूजन विधि

बिलासपुर : गणेश चतुर्थी के पावन पर्व की शुरुआत 31 अगस्त यानि आज से हो रही है. हिंदू धर्म में सभी धार्मिक पर्व और त्योहारों का विशेष महत्व है. ठीक इसी तरह गणेश चतुर्थी का भी अपना महत्व है.

इस बार गणेशोत्सव की शुरुआत बहुत ही शुभ और विशेष योग में हो रही है। बुधवार से गणेश उत्सव प्रारंभ है और बुधवार का दिन भगवान गणेश की पूजा-अर्चना के लिए विशेष महत्व रखता है। बुधवार के देवता भगवान गणेश जी को माना गया है और इस दिन के ऊपर बुध ग्रह का स्वामित्व प्राप्त है।

हिंदू पंचांग के अनुसार भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी तिथि और स्वाति नक्षत्र में दोपहर के समय भगवान गणपति का जन्म हुआ था। इस कारण से हर वर्ष गणेश जन्मोत्सव का त्योहार उत्साह के साथ मनाया जाता है।

आज गणेश चतुर्थी पर स्थापना और पूजा के लिए दिनभर में कुल 5 शुभ मुहूर्त रहेंगे। सुबह 11.20 बजे से दोपहर 01.20 बजे तक का समय सबसे अच्छा रहेगा, क्योंकि इस वक्त मध्याह्न काल होगा, जिसमें गणेश जी का जन्म हुआ था।

ज्योतिषाचार्यों के मुताबिक, वैसे तो दोपहर में ही गणेश जी की स्थापना और पूजा करनी चाहिए। समय नहीं मिल पाए तो किसी भी शुभ लग्न या चौघड़िया मुहूर्त में भी गणपति स्थापना की जा सकती है। वैसे भी इस बार गणेश चतुर्थी पर 300 साल बाद ग्रहों की शुभ स्थिति बन रही और लंबोदर योग भी है।

इतनी सारी चीजों से पूजन न कर पाएं तो इसके लिए छोटी पूजा विधि

चौकी पर स्वस्तिक बनाकर एक चुटकी चावल रखें।

उस पर मौली लपेटी हुई सुपारी रखें। इन सुपारी गणेश की पूजा करें।
इतना भी न हो पाए तो श्रद्धा से सिर्फ मोदक और दूर्वा चढ़ाकर प्रणाम करने से भी भगवान की कृपा मिलती है।
किसी वजह से गणेश स्थापना और पूजा न कर पाएं तो क्या कर सकते हैं…
पूरे गणेशोत्सव में हर दिन गणपति के सिर्फ तीन मंत्र का जाप करने से भी पुण्य मिलता है। सुबह नहाने के बाद गणेशजी के मंत्रों को पढ़कर प्रणाम कर के ऑफिस-दुकान या किसी भी काम के लिए निकलना चाहिए।

गणपति पूजा से जुड़ी ध्यान रखने वाली बातें

गणेश जी की मूर्ति पर तुलसी और शंख से जल नहीं चढ़ाना चाहिए।


दूर्वा और मोदक के बिना पूजा अधूरी रहती है।
गणपति के पसंदीदा फूल: जाती, मल्लिका, कनेर, कमल, चम्पा, मौलश्री (बकुल), गेंदा, गुलाब गणपति के पसंदीदा पत्ते: शमी, दूर्वा, धतूरा, कनेर, केला, बेर, मदार और बिल्व पत्र पूजा में नीले और काले रंग के कपड़े न पहनें। चमड़े की चीजें बाहर रखकर पूजा करें और भगवान को अकेले कभी न छोड़ें।


स्थापना के बाद मूर्ति को इधर-उधर न रखें, यानी हिलाएं नहीं।

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