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समलैंगिक विवाह को मान्यता देने से नष्ट हो जाएगा समाज…..VHP ने चीफ जस्टिस को लिखा पत्र


(शशि कोन्हेर) : विश्व हिंदू परिषद (विहिप) ने समलैंगिक विवाह की वैधता को लेकर दायर याचिका पर सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ की सुनवाई का विरोध किया है। VHP ने दावा किया कि अगर एससी ने इसे कानूनी मान्यता दे दी तो हिंदू समाज और विषम विवाह संस्कृति नष्ट हो जाएगी। विरोध के तौर पर विहिप ने पश्चिम त्रिपुरा जिला मजिस्ट्रेट के कार्यालय की ओर से CJI को सोमवार को पत्र लिखा। इसमें उनसे अपील की गई कि वे भारत में समलैंगिक विवाह पर तत्काल आधार पर फैसला न लें जबकि देश में अभी भी गरीबी, शिक्षा जैसे कई अहम मुद्दे हैं।

चीफ जस्टिस को लिखे पत्र में कहा गया, ‘गरीबी उन्मूलन, नागरिकों को बुनियादी सुविधाएं, मुफ्त शिक्षा, प्रदूषण मुक्त पर्यावरण, जनसंख्या नियंत्रण जैसी कई समस्याएं पूरी आबादी को प्रभावित कर रही हैं। ऐसे समय में समलैंगिक विवाह पर तत्परता दिखाने की जरूरत नहीं है।’ विहिप नेता सचिव शंकर रॉय ने कहा, ‘समलैंगिक विवाह की याचिका साजिशकर्ताओं के एक गुट ने सुप्रीम कोर्ट में दायर की है। अगर समान लिंग विवाह को कानूनी मान्यता मिल गई तो हिंदू समाज और विषम विवाह संस्कृति नष्ट हो जाएगी। विवाह की संस्था न केवल दो विषमलैंगिकों का मिलन है, बल्कि यह मानव जाति की उन्नति भी है। विभिन्न लिपियों, लेखनों और अधिनियमों में भी विवाह शब्द केवल विपरीत लिंग के दो व्यक्तियों के मिलन को दर्शाता है।


वीएचपी ने कहा कि SC ने पहले ही 2014 में नालसा के फैसले और 2018 में नवतेज सिंह के फैसले में समलैंगिकों व ट्रांसजेंडरों के अधिकारों की रक्षा की थी। उन्होंने CJI से अपील की कि अगर जरूरी हो तो इस मुद्दे पर सभी हितधारकों से परामर्श लें। यह सुनिश्चित हो कि कोर्ट की ओर से समलैंगिक विवाह को कानूनी मान्यता नहीं दी जाए क्योंकि यह मुद्दा विधायिका के क्षेत्र में आता है। इसमें कहा गया कि विवाह को पंजीकृत करने का अधिकार मौलिक अधिकार नहीं है, बल्कि यह वैधानिक अधिकार है। इसलिए इसे केवल उचित कानून के जरिए विधायिका की ओर से प्रोटेक्ट किया जा सकता है।

इससे पहले, गोवर्धन मठ पुरी पीठाधीश्वर शंकराचार्य स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने समलैंगिक विवाह को मानवता के लिए कलंक बताया था। उन्होंने कहा कि अगर सुप्रीम कोर्ट इसे कानूनी मान्यता देता भी है तो उसे फैसले को मानने की जरूरत नहीं है। शंकराचार्य ने कहा कि अगर ऐसा फैसला आता है तो प्रकृति न्यायाधीशों को दंडित करेगी। उन्होंने कहा कि यह मामला धार्माचार्यों के अधिकार क्षेत्र में आता है, यह अदालती फैसले का विषय नहीं है। स्वामी निश्चलानंद सरस्वती ने कहा, ‘समलैंगिक विवाह मानवता के लिए कलंक है। अगर एससी इसे कानूनी मान्यता देता भी है तो उसे फैसले को मानने की जरूरत नहीं है।’

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