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सोनिया गांधी और ममता बनर्जी के संबंधों में, सुष्मिता देव के इस्तीफे से दरार..!

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(शशि कोन्हेर) : महिला कांग्रेस की राष्ट्रीय अध्यक्ष (अब पूर्व) सुष्मिता देव के द्वारा कांग्रेस पार्टी से इस्तीफा देकर तृणमूल कांग्रेस में शामिल होने की घटना, कांग्रेस पार्टी के लिए एक बड़ा झटका माना जा रहा है। कांग्रेस के नेता हैरत में है कि, कुछ दिनों पहले ही दिल्ली आकर सोनिया गांधी से भेंट करने वाली ममता बनर्जी ने आखिर ऐसा क्यों किया।

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सोनिया और ममता की भेंट के बाद लोग यह अनुमान लगा रहे थे कि केंद्र में भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ विपक्ष को एकजुट करने की मुहिम खासी तेज होगी। इस भेंट के बाद मीडिया में एक साथ छपी सोनिया गांधी और ममता बनर्जी की फोटो के साथ कई अखबारों में यह फोटो कैप्शन भी लगा था कि प बंगाल के बाद अब दिल्ली में खेला होबे..! लेकिन यह क्या..?नरेंद्र मोदी के खिलाफ केंद्र में “खेला होबे” का शंखनाद करने वाली ममता बनर्जी ने सुष्मिता सेन जैसे बड़े नाम को झटक कर कांग्रेस के साथ ही “खेला होबे” कर दिया। कांग्रेसी नेताओं का एक वर्ग इसे ममता बनर्जी द्वारा कांग्रेस की पीठ में छूरा घोंपना भी बता रहा है। जिस समय ममता बनर्जी एकजुट विपक्ष के अपने सपनों को लेकर दिल्ली पहुंचीं और तमाम दलों के नेताओं के साथ हीश्रीमती सोनिया गांधी से भी मिली। उसी समय से राजनीति के जानकार यह शक-शुबहा करने लगे थे कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के खिलाफ विपक्षी एकता का नेतृत्व आखिर कौन करेगा..? और राजनीतिक टीकाकार उसी समय से विपक्षी एकता के नेता को लेकर, उठने वाले सवाल को, विपक्षी एकता के लिए सबसे बड़ा खतरा बता रहे थे। बंगाल चुनावों में भारतीय जनता पार्टी को धूल चटाने के बाद मुख्यमंत्री ममता बनर्जी अपने आप को देश विपक्ष की सबसे बड़ी नेता मांगने का भ्रम पाले बैठी है। जबकि उनकी पार्टी तृणमूल कांग्रेस का जनाधार अभी पश्चिम बंगाल के अलावा और कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। जबकि ऐसे किसी भी विपक्षी एका के नेतृत्व का पद पारंपरिक रूप से कांग्रेस के नेता अपना मानते रहे हैं। और यह बात सही भी है कि भारतीय जनता पार्टी की तरह, केवल कांग्रेस ही एक ऐसी अकेली पार्टी है, जिसका देश के अधिकांशत सभी प्रदेशों में अपना मजबूत जनाधार है। इसलिए विपक्षी एकता अथवा विपक्ष के संभावित प्रधानमंत्री के रूप में कांग्रेसी अपने ही नेता का दावा मजबूत देखते हैं। लेकिन ममता बनर्जी और उनसे भी पहले एनसीपी के नेता श्री शरद पवार भी अपने को प्रधानमंत्री पद का दावेदार मानने लगे हैं।
दरअसल ममता बनर्जी को अपनी पार्टी की यह कमजोरी पता है कि बंगाल के बाहर उसका जनाधार कहीं भी नहीं है। लेकिन प्रधानमंत्री बनने के लिए उन्होंने दो काम शुरू किए..! पहला यह कि उन्होंने बार-बार दिल्ली आने और हिंदी सीखने का सिलसिला चालू किया। और दूसरा बंगाल के बाहर पार्टी के विस्तार की कोशिशें भी शुरू कर दीं।। देश में असम और त्रिपुरा ये ऐसे दो प्रदेश हैं जहां, तृणमूल कांग्रेस को बंगाल के बाद अपने लिए सियासी जमीन अधिक माकूल दिखाई दे रही है। इसलिए ही तृणमूल कांग्रेस असम और त्रिपुरा में अपना जनाधार खड़ा करने के लिए कांग्रेस के किले में सेंध मारना शुरू कर चुकी है।

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ऐसा करने के लिए उन्होंने बंगाल के बाहर असम में अपनी पार्टी की जड़ों को खाद पानी देने के लिए सुष्मिता देव को कांग्रेस से झटक लिया। कुछ ऐसा ही वे त्रिपुरा में भी करने जा रही है।

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लेकिन राजनीति की कड़वी सच्चाई है कि, ऐसा कर ममता बनर्जी अपनी पार्टी की जड़ें, असम और त्रिपुरा में कितनी मजबूत कर पाएंगी या नहीं,, यह तो भविष्य के गर्त में है..लेकिन सुष्मिता देव के कांग्रेस छोड एकाएक तृणमूल कांग्रेस में जाने से कांग्रेस हाईकमान, ममता बनर्जी के इरादों को लेकर सशंकित हो गया है।
कुछ ऐसी ही शंका कांग्रेस के सर्वोच्च नेतृत्व को शरद पवार को लेकर भी है। और केंद्र में सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी के खिलाफ राष्ट्रीय स्तर पर एक मजबूत विपक्षी मोर्चा खड़ा करने में ऐसी ही कुछ दलीय आशंकाएं ही सबसे बड़ी बाधा बनी हुई हैं।

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