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राणा दंपत्ति की जमानत को संजय राउत ने कहा..राहत घोटाला

(शशि कोन्हेर) : मुंबई – शिवसेना नेता संजय राउत ने सांसद नवनीत राणा और उनके विधायक पति रवि राणा को जमानत देते समय यहां की एक विशेष अदालत की टिप्पणी को शुक्रवार को ‘राहत घोटाला’ करार दिया। कोर्ट ने जमानत देते हुए कहा कि एफआइआर में राणा दंपती के खिलाफ कोई ठोस आधार नहीं है। वहीं, संजय राउत ने राणा दंपती की जमानत को राहत घोटाला करार दिया। भाजपा पर निशाना साधते हुए शिवसेना सांसद ने कहा कि केंद्र को देखकर लगता है कि इससे ब्रिटिश शासन अच्छा था। देश में जो राहत घोटाला चल रहा है, उसके कई पहलू हैं। अपराध और आरोप केवल हमारे खिलाफ साबित होते हैं, लेकिन दूसरों के खिलाफ वही आरोप साबित क्यों नहीं होते? यह शोध का विषय है।

विशेष अदालत के न्यायाधीश आरएन रोकाडे ने बुधवार को राणा दंपती को जमानत देते हुए कहा कि इस स्तर पर प्रथम दृष्टया भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 124 (ए) (देशद्रोह) के तहत आरोप नहीं बनता है। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि राणा दंपती ने संविधान के तहत अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सीमा को पार कर लिया है, लेकिन अपमानजनक या आपत्तिजनक शब्दों की अभिव्यक्ति उनके खिलाफ राजद्रोह का आरोप लगाने के लिए पर्याप्त आधार नहीं हो सकती है। राणा दंपती को गत 23 अप्रैल को खार पुलिस ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 (ए) और 153 (ए) (विभिन्न समूहों के बीच दुश्मनी को बढ़ावा देना) के तहत गिरफ्तार किया था। राणा दंपती ने घोषणा की थी कि वे यहां महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के निजी आवास ‘मातोश्री’ के बाहर हनुमान चालीसा का पाठ करेंगे, जिससे शिवसेना, ठाकरे की पार्टी के कार्यकर्ता नाराज हो गए, जिससे तनाव बढ़ गया। बाद में दंपती ने अपना एलान वापस ले लिया था। जमानत मिलने के एक दिन बाद गुरुवार को राणा दंपती जेल से बाहर आए।

पिछले महीने भी संजय राउत ने सेवामुक्त युद्धपोत आइएनएस विक्रांत को नष्ट होने से बचाने के लिए एकत्र किए गए धन के कथित दुरुपयोग से संबंधित धोखाधड़ी के मामले में महाराष्ट्र भाजपा नेता किरीट सोमैया को गिरफ्तारी से अंतरिम संरक्षण देने के बंबई उच्च न्यायालय के आदेश को राहत घोटाला करार दिया था। राउत ने तब पूछा था कि कैसे केवल एक पार्टी के लोग अदालतों द्वारा दी गई राहत के लाभार्थी हैं। उनकी टिप्पणियों के बाद इंडियन बार एसोसिएशन ने पिछले महीने बांबे हाईकोर्ट में एक अवमानना ​​​​याचिका दायर की थी, जिसमें दावा किया गया था कि प्रतिवादियों ने उच्च न्यायालय के न्यायाधीशों और पूरी न्यायिक प्रणाली के खिलाफ कई झूठे, निंदनीय और अवमाननापूर्ण आरोप लगाए हैं।

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