SC ने दी नाबालिग रेप पीड़िता के 7 माह के गर्भ को हटाने की परमिशन..
रेप पीड़िता 14 साल की किशोरी के 29 सप्ताह के गर्भ को हटाने की मंजूरी दे दी है। अदालत ने कहा कि यदि रेप पीड़िता को इस प्रेगनेंसी को जारी रखने को कहा जाता है तो उसके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा। चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की बेंच ने नाबालिग के सुरक्षित गर्भपात की परमिशन देते हुए कहा, ‘ऐसे मामले अपवाद जैसे होता हैं.
जिसमें हमें बच्चों की सुरक्षा करनी होती है। नाबालिग बच्ची के लिए हर गुजरता घंटा अहम है।’ इससे पहले शुक्रवार को अदालत ने मुंबई के सियॉन अस्पताल से कहा था कि वह तत्काल इस संबंध में रिपोर्ट दे कि प्रेगनेंसी को जारी रखने से बच्ची के शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर क्या असर पड़ेगा।
इस मामले में बॉम्बे हाई कोर्ट ने 4 अप्रैल को बच्ची के गर्भपात की मंजूरी देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद पीड़िता की मां ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी दाखिल की थी। केंद्र सरकार का पक्ष रख रहीं अडिशनल सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने कहा कि अदालत को इस मामले में आर्टिकल 142 के तहत अपनी शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए न्याय करना चाहिए।
उन्होंने मेडिकल रिपोर्ट का हवाला देते हुए दलील दी थी कि यदि गर्भावस्था को जारी रखा गया तो इससे नाबालिग के स्वास्थ्य पर बेहद बुरा असर होगा।
केंद्र सरकार की दलील और रेप पीड़िता की मां की दलील को स्वीकार करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह आदेश सुनाया। इसके तहत अदालत ने कहा कि तत्काल नाबालिग रेप पीड़िता का गर्भ हटा दिया जाए। बेंच ने कहा कि बच्ची की उम्र और उसके साथ हुए अत्याचार को देखते हुए यह जरूरी है।
चीफ जस्टिस की अध्यक्षता वाली बेंच ने कहा, ‘नाबालिग बच्ची की स्थिति को ध्यान में रखते हुए हम बॉम्बे हाई कोर्ट के फैसले को खारिज करते हैं।’ हम सियॉन लोकमान्य तिलक अस्पताल को आदेश देते हैं कि तुरंत गर्भपात कराया जाए। यही नहीं इस पूरी प्रक्रिया का खर्च महाराष्ट्र की सरकार उठाएगी।
बता दें कि इससे पहले 4 अप्रैल को बॉम्बें हाई कोर्ट ने गर्भपात की परमिशन देने से इनकार कर दिया था। इसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा तो बेंच ने शुक्रवार को बच्ची की मेडिकर रिपोर्ट्स मांगी थी। इस रिपोर्ट के आधार पर ही उसने अब गर्भपात का आदेश दिया है। बेंच ने मानवीय पहलुओं का जिक्र करते हुए कहा कि ऐसी स्थिति प्रेगनेंसी को जारी रखने की परमिशन नहीं दी जा सकती।