10 साल की बच्ची को रस्सी पर चलते देख थम जाते हर किसी के पैर, परिवार का पेट पालने मासूम दिखाती है करतब….
(आशीष मौर्य के साथ सुशांत सिंह ठाकुर) : बिलासपुर – खेलने-कूदने और पढ़ाई-लिखाई की छोटी सी उम्र में बच्चियां 8 से 10 फीट की ऊंची रस्सी पर चलकर मौत के खेल का करतब दिखा रही हैं.यह खेल दिखाना उन्हें विरासत मे मिला है. बच्चियां पामगढ से हैं. तालापारा मे बच्चियों के करतब को देखकर हर कोई दांतों तले उंगली दबाने मजबूर है.
भाई बाजा बजा रहा है ताकि लोग बॉक्स की आवाज सुनकर उनके पास पहुंचे,वही 10 साल की बच्ची एक इंच मोटी रस्सी पर बिना किसी सहारे करतब दिखा रही है.पामगढ की बच्ची को रस्सी पर चलते हुए देखकर हर किसी के पैर वहीं थम गए।दस साल की माया कभी खुले पैर, कभी चप्पल पहनकर तो कहीं रिंग पर पैर चलाते हुए रस्सी पर चलती है। इस दौरान सिर पर सामान भी रखी रहती है और दोनों हाथ से एक बांस को पकड़े रहती है। बच्ची के करतब देखकर हर किसी के पैर ठहर से जाते हैं।बच्ची का यह करतब इन दिनों तालापारा में दिखाई दे रहा है।
10 साल के बच्चे तो अपने आपको नहीं संभाल पाते, लेकिन माया अपने परिवार का पेट पाल रही है।यह करतब दिखाकर अपने परिवार के लिए पैसे जुटाती है ताकि दो वक्त की रोटी नसीब हो सके।सरकार बेटी पढ़ाओ-बेटी बचाओ का नारा देते हुए बेटियों के संरक्षण, संवर्धन और शिक्षा के लिए लगातार अभियान चला रही है। इसका असर भी पड़ा है, बेटियां पढ़ रही है, नया इतिहास गढ़ रही है लेकिन इन सबके बीच कुछ ऐसी भी बेटियां है जो 8-10 साल के खेलने की उम्र से खेल दिखा कर अपने परिवार को आत्मनिर्भर बनाती है। इसके लिए उन्हें घर से कई किलोमीटर दूर का चक्कर भी लगाना पड़ता है। इस उम्र में जब बच्चों को पढ़ाई करनी चाहिए, वहां माया जैसी बेटी अपने जान को जोखिम में डालकर रस्सी का खेल दिखाकर परिवार के लिए रोजगार जुटा रही है।
माया के इस करतब में थोड़ी सी चूक होने पर हमेशा जान पर बड़ा खतरा बना रहता है।यह लोग एक इलाके में चार-पांच दिन करतब दिखाने के बाद किसी दूसरे इलाके में रोजगार की तलाश में निकल जाते है। माया के परिजनों का कहना है की छोटी बच्ची को लेकर खेल दिखाना अच्छा नहीं लगता है, लेकिन पेट की भूख को शांत करने के लिए मजबूरी में ऐसा करना पड़ता है।माया को रस्सी पर करतब दिखाने की कला विरासत मे मिली है जो पीढ़ी दर पीढ़ी ऐसा ही चलता है.