श्री राम मर्यादा तो कृष्ण है लीला पुरुषोत्तम : पं. बालकृष्ण शरण….. सोनकर निवास पाली में श्री मद कथा में मनाया गया श्री राम कृष्ण जन्मोत्सव
(कमल वैष्णव) : ‘पाली/कोरबा – भगवान विष्णु के राम और कृष्ण अवतार सभी अवतारों में परम विशिष्ट और पूर्णावतार हैं।राम बारह कलाओ तो कृष्ण सोलह कलाओ के अवतार है l जहा राम मर्यादा पुरुषोत्तम होने के कारण उनकी सभी लीलाएं अनुकरणीय है। जो जितना ही अधिक अनुकरण का प्रयास करेगा वह उतना ही महान बनता जाएगा। वही कृष्ण लीला पुरुषोत्तम है, जिनकी सभी रस से युक्त दिव्य लीलाएं है जिनके स्मरण मात्र से ही प्रेम, वात्सल्य भाव हृदय में प्रस्फुटित होने लगता है।’
श्री राम जन्म और श्री कृष्ण जन्म, लीला कथा प्रसंग के दौरान वृंदावन के खडेश्वरी महराज कथावाचक पं बालकृष्ण शरण ने सोनकर निवास पर पितर मोक्षार्थ व अपनी पूजनीया माताजी स्व श्रीमती रानी देवी सोनकर के वार्षिक श्राद्ध पर आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के चतुर्थ दिवस पर उक्त बातें कहीं। भगवान श्री राम और श्री कृष्ण जन्मोत्सव मनाते हुए मनोरम झांकी और कथा श्रवण कर श्रोता श्रद्धालु भावविभोर हो कर नाचने लगे। महाराज श्री ने बताया कि जीव के अनंत जन्म का जब पुण्य उदय होता है तब उसे सत्संग सुनने का फल मिलता है। सामान्यतः सम्पूर्ण विश्व जन्माष्टमी मनाने के लिए साल भर इंतजार करता है।
लेकिन जो व्यक्ति सत्संग में भागवत की कथा का श्रवण करता है उसके लिए हर भागवत का चौथा दिन जन्मोत्सव हो जाता है। जन्मोत्सव की कथा के उपरांत ठाकुर जी की सुंदर बाल लीलाओं का शब्दों के माध्यम से सभी श्रोता गणों ने दर्शन किया। भगवान श्री कृष्ण की बाल लीला का प्रसंग कथा में सुनाया और श्री गोवर्धन पूजन का अर्थ समझाया। श्री शरण महाराज ने बताया कि कई लोग वृंदावन जाकर के गिरिराज जी का पूजन और दर्शन करके आते हैं लेकिन वर्ष में एक दिन दीपावली पर्व पर श्री गोवर्धन हम सबके घर आते हैं और अपना पूजन करवाते हैं। गिरिराज जी के पूजन से सबकी मनोकामनाएं पूरी होती हैं।
कलयुग के प्रत्यक्ष सदैव है श्री गोवर्धन नाथ। कथा प्रसंग के उपरांत आरती से पूर्व भगवान गोवर्धन नाथ को छप्पन भोग अर्पण किया एवं सभी ने राधे राधे का कीर्तन करते हुए मानसिक रूप से गिरिराज परिक्रमा की। महाराज ने बताया कि गोवर्धन की परिक्रमा ही कृष्ण की परिक्रमा है और जिसने अपने मन के केंद्र में कृष्ण को बिठाकर के विचार के द्वारा उसकी परिक्रमा कर ली है, उसके विचार पवित्र हो जाते हैं उसके विचार में फिर संसार नहीं फिर वृंदावन बसने लगता है। इसीलिए कृष्ण को मन में बसा कर के वृंदावन का दर्शन जीव को करना चाहिए।
रुक्मिणी विवाह, प्रेम और आदर्श का प्रतीक
कथा में भगवान श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह प्रसंग आने पर श्रद्घालु झूम उठे और धूमधाम से विवाह संपन्न कराया। भजनों के बीच राधा-कृष्ण संग सखियों और भक्तों ने महारास का आनंद लिया। दोनों प्रसंगों के दौरान जय श्रीकृष्ण, राधे-कृष्ण के जयकारे से पंडाल भक्ति मय हो गया।कथा व्यास ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी का विवाह एक आदर्श विवाह है। रुक्मिणी साक्षात् लक्ष्मी और श्रीकृष्ण साक्षात् नारायण है।उन्होंने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण और माता रुक्मिणी का विवाह प्रेम और आदर्श का प्रतीक है और भगवान ने श्रीकृष्ण अवतार में जहां एक तरफ गोपियों का चीर चुराकर उन्हें भक्ति और प्रेम की शिक्षा दी, वहीं उन्होंने द्रोपदी का चीर बढ़ाकर उसकी लाज रखी थी।
वहीं श्रीकृष्ण और रुक्मिणी विवाह प्रसंग पर भक्त भी भजनों पर जमकर थिरके।चौथे दिन कथा मे श्रीकृष्ण जन्म की लीला का मनोहारी वर्णन किया। इस मौके पर पं शरण ने कहा कि राजा परीक्षित से शुकदेव कहते हैं, कि संसार का कल्याण करने के लिए जब-जब धर्म की हानि होती है, भगवान अवतार लेते हैं।भागवत कथा दोपहर 3.30 से 7 बजे तक कथा सुनाई जा रहीं है जिसका समापन 19 को पूर्णाहुति के साथ होगा। प्रत्येक दिन कथा समाप्ति के बाद आरती के साथ महाप्रसादी भंडारा भी अनवरत चल रहा है।