छत्तीसगढ़

शोभा टाह फाउन्डेशन द्वारा सिकल सहायता केम्प व आँख की जाँच व चश्मा वितरण….

(शशि कोंन्हेर) : बिलासपुर। चौदह जनवरी को शोभा टाह फाउन्डेशन के तत्वावधान में विशाल सिकल सेल कैम्प का आयोजन जगन्नाथ मंगलम् आनन्द हॉटल के बाजू में शिव टाकीज् रोड बिलासपुर में किया जा रहा है। सुबह दस बजे से शाम पाँच बजे तक चलने वाले इस कैम्प में गौर बोस मेमोरियल सिकल केयर सेन्टर, सिहारे चिल्ड्रन हॉस्पिटल एवम् डॉ. प्रदीप पात्रा, सी एस आई आर रायपुर के विशेषज्ञो व टेक्नीशियनों की सहायता से सिकल के मरीजो की पहचान कर इलाज किया जायेगा।

ये जानकारी समाजसेवी अनिल टाह ने बिलासपुर प्रेस क्लब में पत्रकारों से चर्चा करते हुए दी।श्री टाह ने बताया कि पिछले सत्रह वर्षों से शोभा टाह फाउन्डेशन के जरिए प्रति वर्ष निशुल्क स्वास्थ शिविर का आयोजन किया जा रहा है।इन शिविरों में हजारों मरीजो को विशेषज्ञों द्वारा निशुल्क स्वास्थ परामर्श, नेत्र परीक्षणकर चश्मा वितरण, हियरिंग की मशीन, हेन्डीकेप जनों को व्हीलचेयर व अन्य उपकरण बाँटे जा चुके है।उन्होंने बताया कि छत्तीसगढ में सिकल की समस्या बढती ही जा रही है इसके मरीजो को सही मार्गदर्शन, डायग्नोसिस और जरूरी परामर्श नहीं मिल रहा है।

अब सिकल का नया इलाज काम्प्रीहेन्सिव केयर आ गया है जिसके सहारे सिकल के मरीज पहले से अधिक स्वस्थ रहकर बेहतर जिन्दगी जी रहे हैं। इसे देखते हुये शोभा टाह फाउन्डेशन ने इस वर्ष सिकल कैम्प का आयोजन किया है। इस कैम्प में सिकल की जाँच निशुल्क की जायेगी, पॉसीटिव आने पर हीमोग्लोबिन इलेक्ट्रोफोरेसिस वहीं पर की जायेगी और जरूरी ब्लड टेस्ट करके सिकल के मरीजो की विषेशज्ञों द्वारा जाँच व परामर्श देने के उपरान्त निशुल्क दवा बांटी जाएगी।

इस वर्ष कैम्प में जनरल मरीजों का इलाज नहीं होगा परन्तु आँख की जाँच व चश्मा वितरण जरूर होगा।डॉ. राजीव शिवहरे ने बतलाया कि मध्यभारत खासकर छत्तीसगड, मध्यप्रदेश, उडीसा व विदर्भ में रक्त की अनुवांशिक बीमारी “सिकल” अधिकता में पाई जाती है। सिकल की बीमारी खासकर अनुसूचित जाति, अल्पसंख्यक व गरीब तबकों में है। सिकल एक अनुवांशिक बीमारी है जिसमें रोगी के लाल रक्त कण ऑक्सिजन की कमी से हँसिए के आकार में बदल जाती है।

अंग्रेजी में हँसिए को सिकल कहते हैं इसलिए इसे सिकल सेल या सिकलिंग की बीमारी कहा जाता है। इन लाल रक्त कणो की उम्र बहुत कम होती है, ये पहले ही नष्ट हो जाती है व हँसिए के आकार लिये ये कण खून के प्रवाह में रुकावट पहुँचाते हैं । सिकल के मरीज को को हाथ पैर में दर्द, संक्रमण से लडने की क्षमता में कमी , फिर धीरे धीरे शरीर का हर अंग खराब होता जाता है। इस बीमारी में हाथ पैर में सूजन, खून की कमी, ज् यादा इन्फेक्शन व लगातार कमजोरी बनी रहती है और पूरा परिवार ही डिस्टर्ब हो जाता है और 15 से 20 की उम्र तक उसकी अकाल मृत्यु हो जाती है। प्राय बीमारी की पहचान नहीं हो पाती और होती भी है तो समुचित इलाज भी नहीं होता है। छत्तीसगढ में सिकल सेल की बिमारी के  मरीज बहुत ज्यादा है।


डॉ. बी आर होतचन्दानी ने इस बात पर जोर दिया की सिकल की बीमारी डायबिटीज से भी ज्यादा घातक है।डायबिटीज तो वयस्क लोगों की बीमारी है और इसमें शुगर कन्ट्रोल न करने पर खून की नलिकायें धीरे धीरे सुकडती जाती हैं और वृदधावस्था तक शरीर के सभी अंग धीरे धीरे खराब होते जाते है जैसे कि गुर्दे, लिवर, दिल, आँखें, फेफडे, व खून की नलिकायें इत्यादि।

परन्तु सिकल में तो छै महीने की उम्र से ही सभी अंग खराब होना प्रारम्भ हो जाते है और योवनावस्था तक आते आते शरीर के सारे अंग जैसे कि तिल्ली, कूल्हे की हडिडयाँ, ब्रेन, लिवर, फेफडे, गुर्दे, दिल, आँख व कान इत्यादि, खून की नलिकाओं में सुकडन व खून की कमी होने से खराब होते जाते है। सिकल से पीडित व्यक्ति भरी जवानी में कमाने व परिवार को सहायता करने की बजाय परिवार पर निर्भर हो जाता है। हमेशा थका थका रहता है और ज्यादातर मरीज डिप्रेरेशन में चले जाते हैं। इनकी उम्र भी बहुत कम होती है, भारतवर्ष में सिकल के मरीजो की औसतन उम्र तेइस वर्ष ही है।

वार्ता के दौरान डॉ प्रदीप सिहारे ने कहा की अब सिकल के मरीजो की काम्प्रिहेन्सिव केयर जन्म के तुरन्त बाद शुरू कर दी जाती है, वहाँ सिकल के मरीजो की औसतन उम्र पचास के ऊपर हो रही है। वे अपनी जिन्दगी आत्मविश्वास से जीते हैं और परिवार को सहारा भी देते हैं। हम अभी भी पिछडे हुये है और वास्तिकता को छोड यह सोच बैठे है कि सिकल का कोई इलाज नहीं है वह तो अनुवांशिक बीमारी है। और किसी जादुई पल का इन्तजार करते रहते है।

डॉ विनोद अग्रवाल ने कहा कि हम भी काम्प्रिहेन्सिव केयर करें जोकि सरल व सस्ती है। ज्यादा संसाधन की भी जरूरत नहीं केवल सजकता चाहिये जैसे कि जन्म के तुरन्त बाद या जल्द से जल्द डायगनोसिस हो जाये, पेनिसिलीन की गोली दो महीने के बाद शुरू करें, पूर्ण टीकाकरण करें खासकर के न्यूमोकाकल, एच इन्फ्लुएन्जी और टायफाइड। खून • की कमी होने पर या सिकल क्राइसिस होने पर त्वरित इलाज करें, हाईड्राक्सी युरिया जादुई दवा है सिकलिंग को कम करती है और परेशानियों से बचाती है, इसका तरीके से उपयोग करने से बार बार होने वाली परेशानियों व ब्लड चढाने से बचत होती है। सजग रहे जाँच करते रहे कि शरीर का कोई अंग खराब तो नहीं हो रहा है।

अगर परिवार या खानदान में कोई सिकल का मरीज हो तो परिवार के सभी सदस्य सिकल का टेस्ट करायें कि वे वाहक या धारक तो नहीं है। पैदा होने वाले प्रत्येक बच्चे का तुरन्त सिकल का टेस्ट करायें।

अगर पति पत्नी दौनो सिकल के वाहक हैं तो उनके होने वाले बच्चे मैं हर वार सिकल बच्चा होने की पच्चीस परसेन्ट सम्भावना रहेगी ऐसे में गर्भ के ढाई महीने और चार महीने में गर्वस्थ शिशु की जाँच करके यह पता लगाया जा सकता है कि उसे सिकल की बीमारी तो नहीं है, और चुनकर स्वस्थ बच्चा ही पैदा करें। यह जाँच पहले महानगरों में ही उपलब्ध थी और अत्यधिक मँहगी थी, परन्तु अब बिलासपुर में ही किफाइती दरों पर उपलब्ध है।

सिकल के प्रकार

1. सिकल की बीमारी (सिकल सेल डिसीज) – सिकल अनुवांशिक

बीमारी है, इसमें सिकल का एक जीन पिता से और एक जीन माता से मिलकर जब दो जीन एक साथ हो जाते है तो उस बच्चे को सिकल की बीमारी रहती है. इसे सिकल धारक भी कहते है.

2. सिकल ट्रेट – जब सिकल का केवल एक जीन पिता या माता से मिला हो और व्यक्ति के पास केवल एक ही जीन हो इसे “सिकल ट्रेट या वाहक” कहते है। इन्हें सिकल सम्बंधी तकलीफें या बीमारी नहीं होती हैं और ये सामान्य जिन्दगी जीते हैं। इन्हें इलाज की जरूरत नहीं होती है। ये पूरी जिन्दगी जीते हैं। परन्तु ये सिकल के जीन को अपने बच्चे को दे सकते है।

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