स्वच्छता की दौड़ में कोई फर्स्ट आ रहा है तो कोई सेकंड.. बिलासपुर का कोई अता-पता नहीं
(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर – स्वच्छता की प्रतिस्पर्धा में पाटन और अंबिकापुर जैसे शहर टॉप पर आ रहे हैं। वही बिलासपुर को इस बार भी मेरिट लिस्ट में जगह नहीं मिल पाई। बिलासपुर की हालत दर्शक दीर्घा में बैठे उस दर्शक की तरह है जो स्वच्छता दौड़ को देखकर ताली और सिटी तो बजा सकता है, लेकिन दौड़ में शामिल नहीं हो सकता। मुझे तो शक है कि देश के सभी शहरों की इस स्वच्छता दौड़ का क्वालीफाइंग मैच भी बिलासपुर जीत पाएगा या नहीं।
हमारे पड़ोसियों,कोरबा और रायपुर ने भी स्वच्छता की मेरिट लिस्ट में अपना दावा यथावत बनाए रखा है। लेकिन बिलासपुर की फूटी किस्मत यहां भी उसकी उम्मीदों को चौपट कर चुकी है। यहां शहर की सफाई के नाम पर जो प्रयोग चल रहे हैं। उनको बंद किए बिना इस दौड़ में बिलासपुर के शामिल होने की कोई गुंजाइश नहीं दिखती।
एक तो नगर निगम का सफाई विभाग और ठेका कंपनी शहर की साफ सफाई की बजाय अपनी-अपनी समस्याओं को सुलझाने में ही पूरी ऊर्जा खपा रहे हैं। वैसे हमें इस बात पर शर्म भी नहीं आती की इतनी महत्वपूर्ण स्वच्छता दौड़ में हमारा कोई वजूद ही नहीं है। जैसे हम को इस बात पर भी शर्म नहीं आती कि 375 करोड रुपए खर्च करने के बाद भी भूमिगत नाली और करोडों रुपए खर्च करने के बाद भी अमृत मिशन का काम पूरा नहीं हो पा रहा है।
स्वच्छता अथवा साफ-सफाई का मोर्चा केवल नगर निगम के भरोसे कभी नहीं जीता जा सकता। इसमें जन भागीदारी के साथ बिलासपुर में रहने वाले एक-एक नागरिकों यह शपथ देनी होगी कि हम अपने घर की तरह अपने पास परिवेश को भी साफ सुथरा बनाए रखेंगे। रायपुर इंदौर और अंबिकापुर में वहां के लोगों ने स्वच्छता अभियान के सिलसिले में नगर निगमों को काफी सहयोग किया है। और जब तक बिलासपुर में भी जनता का ऐसा ही सहयोग नगर निगम को प्राप्त नहीं होगा हम स्वच्छता दौड़ में शामिल होने की बजाय दर्शक दीर्घा में बैठकर अपनी किस्मत को कोसते रहेंगे।