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राजीव गांधी के हत्यारों को रिहा करना आत्मघाती फैसला, कल किसी अन्य अपराधी की रिहाई की भी उठ सकती है मांग

(शशि कोन्हेर) : द्रमुक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जिस तरह प्रसन्नता जताने में लगी हुई है उससे न केवल दोषियों का महिमामंडन होने की आशंका उभर आई है बल्कि इसकी भी कि अन्य जघन्य कांडों में दोषी करार दिए गए लोगों की रिहाई की मांग उठ सकती है।

उम्रकैद की सजा काट रहे राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों को समय से पहले रिहा करने का सुप्रीम कोर्ट का निर्णय बेहद आघातकारी है। यह फैसला जघन्य हत्याकांड के दोषियों और उनके समर्थकों के साथ क्षेत्रवाद की सस्ती राजनीति करने वालों का दुस्साहस बढ़ाने वाला है। इस फैसले की व्यापक आलोचना हो रही है तो इसीलिए कि यह इसी लायक है।

राजीव गांधी केवल कांग्रेस के नेता ही नहीं, देश के पूर्व प्रधानमंत्री भी थे। तथ्य यह भी है कि उनके साथ 14 अन्य लोग भी मारे गए थे। मद्रास हाई कोर्ट के फैसले एवं केंद्र सरकार की राय के विरुद्ध जाकर सुप्रीम कोर्ट ने एक खराब उदाहरण पेश किया है। इससे एक गलत परंपरा स्थापित होने की आशंका है।

समझना कठिन है कि पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी समेत 14 अन्य लोगों की हत्या में शामिल लोगों पर दया दिखाकर सुप्रीम कोर्ट ने समाज को क्या संदेश देने की कोशिश की है? निश्चित रूप से यह किसी भी तरह से वैसा मामला नहीं, जिसमें सुप्रीम कोर्ट को अपने विशेषाधिकार का इस्तेमाल करने की जरूरत पड़ती।

सुप्रीम कोर्ट की इस दलील में कोई दम नहीं दिखता कि राजीव गांधी हत्याकांड में सजा काट रहे दोषियों का चाल-चलन अच्छा था और जेल में रहकर उन्होंने पढ़ाई भी की थी। क्या इन सब कारणों से किसी को भी समय से पहले रिहा किया जा सकता है, भले ही वह कितने ही संगीन अपराध में लिप्त रहा हो? इस तरह दोषियों पर दया दिखाना एक तरह से न्याय का उपहास उड़ाना ही है।

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर कांग्रेस की आपत्ति सर्वथा उचित है, लेकिन आखिर क्या कारण रहा कि एक समय सोनिया गांधी और प्रियंका गांधी ने राजीव गांधी के हत्यारों के प्रति न केवल सहानुभूति जताई थी, बल्कि उन्हें माफ करने की भी बात कही थी? प्रियंका गांधी तो एक दोषी से जाकर जेल में भी मिली थीं।

आखिर इस सबकी क्या आवश्यकता थी? प्रश्न यह भी है कि कांग्रेस तमिलनाडु में अपने सहयोगी दल द्रमुक को इसके लिए क्यों राजी नहीं कर पाई कि वह राजीव गांधी हत्याकांड के दोषियों की रिहाई की पैरवी करने से बाज आए?

द्रमुक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर जिस तरह प्रसन्नता जताने में लगी हुई है, उससे न केवल दोषियों का महिमामंडन होने की आशंका उभर आई है, बल्कि इसकी भी कि अन्य जघन्य कांडों में दोषी करार दिए गए लोगों की रिहाई की मांग उठ सकती है।

इसकी अनदेखी नहीं की जा सकती कि पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री बेअंत सिंह के हत्यारे की फांसी की सजा को उम्रकैद में बदलने की मांग उठती रही है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि संकीर्ण क्षेत्रवाद के चलते इस तरह की मांगों को कुछ राजनीतिक दल अपना समर्थन देने के लिए आगे आ जाते हैं।

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