कागजों में वो शख्स पहले ही मर चुका था.. लंबी लड़ाई के बाद जीवित होने का दिन आया, तो कोर्ट में ही तोड़ दिया दम
(शशि कोन्हेर) : करीब छह वर्ष पूर्व कागज में मार दिए गए खेलई बुधवार को वास्तव में मर गए। वह अपने जिंदा होने की गवाही देने तहसील में पहुंचे थे। अधिकारियों के सामने प्रस्तुत हुए लेकिन अपनी बात नहीं रख पाए और दुनिया छोड़ दी। वर्ष 2016 में उनके बड़े भाई फेरई मरे थे लेकिन उनकी जगह जीवित खेलई को कागज में मार डाला गया था। खेलई की संपत्ति का वरासत फेरई की पत्नी और उनके तीन बेटों के नाम से कर दिया गया था। जानकारी होने के बाद से ही वह खुद के जिंदा होने का सबूत दे रहे थे। इसी क्रम में एक बार फिर बुधवार को चकबंदी न्यायालय में खेलई को बयान दर्ज कराने के लिए बुलाया गया था।
यह है मामला
धनघटा तहसील क्षेत्र के कोड़रा गांव निवासी 90 वर्षीय फेरई पुत्र बालकिशुन की वर्ष 2016 में मृत्यु हो गयी थी। तहसील कर्मियों ने फेरई की जगह उनके छोटे भाई खेलई को मृतक दर्शा दिया। कागज में मरे पर वास्तव में जिंदा चल रहे खेलई की संपत्ति का वरासत फेरई की पत्नी सोमारी देवी, उनके बेटे छोटेलाल, चालूराम और हरकनाथ के नाम से कर दिया। इसकी जानकारी जब खेलई को हुई तो वह अवाक हो गये। तभी से वह एसडीएम, तहसीलदार, नायब तहसीलदार के पास प्रार्थना पत्र देकर खुद के जिंदा होने का सबूत दे रहे थे।
न्यायलय में सुनवाई के समय ही तोड़ा दम
इसी बीच गांव में चकबंदी की प्रक्रिया शुरू हो गयी। उसके बाद वह चकबंदी न्यायालय में वाद दाखिल किये। वहां भी उनकी संपत्ति उनके नाम से नहीं हो पायी। चकबंदी अधिकारी ने बुधवार को उन्हें बयान देने के लिए तहसील में बुलाया। इस पर खेलई के साथ उनके बेटे हीरालाल पहुंचे। अधिकारियों, कर्मचारियों की लापरवाही की मार झेल रहे खेलई की अचानक तबीयत बिगड़ गयी। चकबंदी न्यायालय के पास दिन में करीब ग्यारह बजे उनकी मृत्यु हो गयी।
जीते जी नहीं मिला न्याय
बेटे हीरालाल ने आंसू पोछते हुए कहा कि उनकी मां का निधन हो गया है, उनके अलावा पन्नालाल, अमृतलाल,अमरजीत व रंजीत आदि पांच भाई हैं। वह पिता जी को लेकर मंगलवार को भी यहां पर बयान दर्ज कराने के लिए आए थे। चकबंदी अधिकारी ने बुधवार को आने के लिए कहा था। उनके पिता अपनी संपत्ति को पाने के लिए छह साल से तहसील का चक्कर काटते रहे लेकिन उन्हें न्याय नहीं मिला। सदमे के चलते उनकी मृत्यु हो गयी।