लखनपुर के प्राचीन तालाबों का इतिहास नहीं खुद इतिहास हैं तालाब
(मुन्ना पाण्डेय) : लखनपुर –(सरगुजा) आज भी प्राचीन तालाबों का क्षेत्र में अपना अलग पहचान रहा है लखनपुर रियासत में पुर्व के राजाओं एवं जागीरदारो ने एक से बढ़कर एक खूबसूरत नायाब तालाबों का निर्माण अपने शासनकाल में कराया था कुछ तालाब वक्त के साथ मिट गए या मिटा दिए गए तालाबों के स्थान पर खेत बना दिया गया तालाबों का इतिहास होते हुए भी कोई इतिहास लिखित नहीं मिलता इन तालाबों का निर्माण किन हुक्मरानों ने कराया था और कब कराया था ।
तालाबों की निर्माण में किन मेहनतकश कामगारों ने पसीना बहाया होगा उसका कोई ऐतिहासिक दस्तावेज नहीं मिलता। आज के तारीख में ओ हुकमरान रहे ना कामगार मजदूर जिन्होंने तालाबों के निर्माण में अपना योगदान दिया था। उन मेहनतकश लोगों का दास्तां नगर में मौजूद तालाबो के सीने में जज्ब है। तालाबों का निर्माण किन हालातो में कराया गया रहा होगा मजदूरी राशि दर क्या रहा होगा अपने आप में सवाल है कोई नहीं जानता ।
कुछ उम्रदराज लोगों का कहना था कि उस काल में सूखा अकाल भुखमरी पढ़ने के कारण बेगार में सताधारीयो द्वारा तालाबों का उत्खनन कराया गया रहा होगा। तालाबों की खुदाई कार्य में लगे मजदूरों को केवल पेट भरने के लिए अनाज दिया जाता रहा होगा सूखे अकाल से तंग हाल लोग तालाब खुदाई में कार्यरत रहे होंगे। ताकि वर्षा काल के पानी को संग्रहित करके आम जनजीवन को पेयजल संकट से बचाया जा सके।
शायद इसी मकसद को लेकर बहुत सारे तालाबों का निर्माण कराया गया रहा होगा जो आज भी नगर में विद्यमान है। दरअसल रियासत लखनपुर पुराने जमाने में तालाबों के लिए मशहूर था और आज भी है। तालाबों को लेकर अनेको किंवदंतियां आज भी प्रचलित है । बताया जाता है लखनपुर क्षेत्र में तकरीबन 365 तालाबों का निर्माण उस जमाने के राजाओं ने करवाया था।
तालाब निर्माणकर्ता राजाओं का इतिहास तो नहीं मिलता परन्तु तालाब अपने आप में खुद इतिहास है। यदि लखनपुर के प्राचीन तालाबों का जिक्र किया जाये तो (१) बोहीता तालाब,(२)मगर तालाब,(३) निर्मोही तालाब,(४)दलदली,(५) दशहरा,(६) थाना तालाब (७) सिगरा (८) बाघेन (९) नावाडागर
(१०) खजरी(११) पडरी(१२) बसनी(१३) टटेगाडबरी(१४) तेदूपखना(१५) खरिका (१६) कदम डबरी (१७) सिंगार (१८) धनना (१९) बैगाई डबरी(२०) बमबूरी मुंडा (२१) बाजार तालाब (२२) बिजली आफिस तालाब (२३) भूईया पारा तालाब (२४) ढोढिहातालाब (२५) चमबोथी (२६)मटकोडन बबली (२७) भावा ढोढगा (२८) बस स्टैंड तालाब के अलावा अन्य बहुत सारे तालाब लखनपुर सहित आसपास में बिखरे पड़े हैं तथा अपने होने की गवाही दे रहे हैं। मौजूद तालाब इस बात की साक्षी रहे है कि बीते समय में उन्हें पूरे लगन उत्साह के साथ बनवाया गया रहा होगा।
मौजूदा वक्त में मत्स्य विभाग के दस्तावेज के मुताबिक अभी तक लखनपुर नगर सहित आस-पास के गांव में तकरीबन 201 तालाब मौजूद है परंतु कुछ ऐसे तालाब हैं जिनका राजस्व दस्तावेजों में जिक्र नहीं आया है दरअसल लखनपुर में लाख पोखरा होने की दंत कथाएं आज भी प्रचलित है यह प्राचीन तालाब अपने होने की गवाही आज भी दे रहे हैं कालांतर में कुछ तालाब खेतों में तब्दील हो गए निशान बाकी है। तथा कुछ खेतो के शक्ल में निजी मिल्कियत बनकर रह गए इन तालाबों के अस्तित्व में आने का दिलचस्प वाकिया रहा है।
कुछ पुराने लोगों द्वारा बताया जाता था कि पूर्व के राजाओं में राजा लाखन के वंशजों में किसी राजा का (जिनका नाम स्पष्ट नहीं है )कोई संतान उत्पन्न नहीं हुआ तो किसी सिद्ध साधु फ़कीर ने उन्हें बताया कि यदि साल के प्रत्येक दिन एक तालाब के पानी का उपयोग किया जाए तो संतान उत्पत्ति की योग बन सकती है। इसी मश्वरा पर उस राजा ने 365 तालाबों का निर्माण कराया उन्होंने यह प्रण लिया कि जब तक कोई संतान की उत्पत्ति नहीं होती वह प्रत्येक रोज एक तालाब के पानी का सेवन करेंगे इस तरह से उन्होंने 365 तालाबों का निर्माण लखनपुर एवं आसपास गांव में करा रखा था रोज एक तालाब के पानी का सेवन करते रहे बाद में उनको संतानोत्पत्ति नहीं होने की स्थिति में वह अपने मूल प्रान्त जहां से आये थे वहां लौट गए ।
लखनपुर रियासत में बाद की राजाओं ने तथा जमीदारों ने इन तालाबों का उपयोग किया ।इसी कड़ी में ठाकुरबाड़ी (राम मंदिर) तालाब एवं देवी सागर तालाब का निर्माण वर्तमान लाल साहब अजीत प्रताप सिंह देव के पूर्वजों में लाल बहादुर महेश्वरी प्रसाद सिंह देव तथा लालबहादुर हरप्रसाद सिंह देव के शासनकाल में मंदिर निर्माण के साथ कराया गया था। बताया यह भी जाता है कि लाखन राजा के नाम पर ही नगर लखनपुर का नाम पड़ा है । इतिहास गवाह है।
वक्त के साथ नगर लखनपुर मैं बहुत सारे बदलाव आए। राजतंत्र के साथ जमींदारों की जमींदारी प्रथा का अंत भले ही हो गया परंतु तालाबों की अस्मिता आज भी बरकरार है।
तालाबों को लेकर क्षेत्र में कई प्रचलित किस्से कहानियां कहे सुने जाते रहे परंतु तालाबों के निर्माण में कलचुरी हुकुमरानों का योगदान था या बाद के ताजदारों का स्पष्ट नहीं है। राजतंत्र शासन सता के बाद इन तालाबों पर आज प्रजातंत्र का आधिपत्य है । वक्त ने खामोशी से तालाबों के बनने का मंजर देखा है। और आज भी इन तालाबों के बदलते सूरत देख रहा है। कुछ प्राचीन तालाब राज घराने की तथा कुछ आम लोगों की मिल्कियत है। कुछ तालाब शासन की परिसंपत्ति है, उन तालाबों के संरक्षण संवर्धन में नगर लखनपुर लगा हुआ है।इन धरोहरों को सहेज कर रखना भी जरूरी है।