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उत्तर प्रदेश के मैनपुरी उपचुनाव में कांग्रेस का हाल “बेगानी शादी में अब्दुल्ला दीवाना'” जैसा.. मजबूरी में सपा की ओर बढ़ाया रिश्ते का हाथ

(शशि कोन्हेर) : उत्तर प्रदेश में 2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा से गठबंधन के निराशाजनक परिणाम से हताश सपा मुखिया अखिलेश यादव ने बेशक दो टूक कहा हो कि अब वह किसी बड़े दल से गठबंधन नहीं करेंगे, लेकिन शायद कांग्रेस समझौते की मेज सजाए रखना चाहती है। हाल ही में छह राज्यों की सात सीटों पर उपचुनाव लड़ने वाली कांग्रेस ने यूपी में यह कहते हुए तीन सीटों के उपचुनाव से किनारा किया है कि वह समय बर्बाद नहीं करना चाहती। मगर, खास तौर पर सपा की प्रतिष्ठा से जुड़ी मैनपुरी लोकसभा और रामपुर विधानसभा सीट पर अपना प्रत्याशी न उतारकर एक तरह से सपा की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया है।

अब न डिंपल के सामने प्रत्याशी और न रामपुर-खतौली में दांव
माना जा रहा है कि सुलह का यह अघोषित प्रस्ताव आगामी लोकसभा चुनाव के लिए हो। सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के निधन के बाद जैसे ही मैनपुरी लोकसभा सीट पर उपचुनाव की घोषणा हुई तो यह चर्चा भी शुरू हो गई थी कि मुलायम सिंह के सम्मान में इस सीट से अपना प्रत्याशी न उतारने वाली कांग्रेस का रुख अब क्या होगा? माना जा रहा था कि जिस तरह से अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनाव के निराशाजनक परिणाम के बाद कांग्रेस को बोझ बताते हुए अलग किया था, अब कांग्रेस मैनपुरी में सपा के खिलाफ उपचुनाव में ताल जरूर ठोंकेगी।

जिला स्तर से कार्यकर्ताओं ने नेतृत्व को प्रस्ताव भेजा है रामपुर में चुनाव लड़ने का प्रस्ताव
मगर, कांग्रेस नेतृत्व ने निर्णय किया है कि वह मैनपुरी में अपना प्रत्याशी नहीं उतारेगी। सिर्फ मामला मैनपुरी का होता तो यह माना जा सकता था कि कांग्रेस नेतृत्व डिंपल यादव के खिलाफ भी प्रत्याशी शायद दिवंगत मुलायम सिंह के सम्मान में नहीं उतार रही, लेकिन चौंकाता है कि सपा के वरिष्ठ नेता आजम खां की सदस्यता रद होने से रिक्त हुई रामपुर विधानसभा सीट पर भी प्रत्याशी उतारने से कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष बृजलाल खाबरी इन्कार कर चुके हैं, जबकि जिला स्तर से कार्यकर्ताओं ने नेतृत्व को प्रस्ताव भेजा है कि उपचुनाव लड़ा जाए।

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