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मुख्यमंत्री अशोक गहलोत से आलाकमान की अंधी मोहब्बत… और सचिन समर्थकों का कांग्रेस नेताओं को संदेश.. तुम हमें चाहो न चाहो तो कोई बात नहीं तुम किसी और को चाहोगे तो मुश्किल होगी..!

(शशि कोन्हेर) : राजस्थान में और खासकर राजस्थान कांग्रेस में समय गुटबाजी जिस तरह चरम पर है। और पार्टी आलाकमान मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की अंधी मोहब्बत में कैद है। उससे ऐसा लगता है कि कांग्रेस ने खुद ही पंजाब के बाद, राजस्थान की सत्ता से भी अपना डेरा डंडा हटाने का उखाड़ने का फैसला कर चुकी है। कांग्रेस को 5 साल पहले की सच्चाई याद रखनी चाहिए कि राजस्थान में पूर्व उपमुख्यमंत्री और तेजतर्रार युवा नेता सचिन पायलट की मेहनत के कारण ही पार्टी को विधानसभा चुनाव में पूर्ण बहुमत और सरकार बनाने का मौका मिला था।

लेकिन कांग्रेस आलाकमान ने युवाओं में लोकप्रिय सचिन पायलट की जगह अशोक गहलोत को मुख्यमंत्री बनाकर…”मेहनत करे मुर्गी, और अंडा खाए फकीर” जैसी पुरानी कहावत को एक बार फिर सार्थक साबित कर दिया। यह साफ दिखाई दे रहा है कि जिस तरह से लगातार बीते साढे चार साल से आलाकमान का वरदहस्त पाकर अशोक गहलोत के द्वारा पूर्व मुख्यमंत्री सचिन पायलट का “सियासी वजूद” खत्म करने की कोशिश की जा रही है। यह दांव उल्टे कांग्रेस के ही गले पड़ सकता है। कल 11 अप्रैल को राजस्थान की राजधानी जयपुर में शहीद स्मारक के सामने भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग को लेकर सचिन पायलट का प्रस्तावित एक दिवसीय धरना, बहुत से संकेतों की ओर इशारा कर रहा है। साफ दिखाई दे रहा है कि जिस तरह अशोक गहलोत ने आने वाले चुनाव के टिकट वितरण में सचिन पायलट के खेमे का सूपड़ा साफ करने की कसम खा ली है। ऐसे ही सचिन पायलट के समर्थकों ने भी कांग्रेस आलाकमान को यह संदेश भेज दिया है कि….तुम हमें चाहो न चाहो तो कोई बात नहीं तुम किसी गैर को चाहोगे तो मुश्किल होगी…आश्चर्य की बात यह है कि श्री अशोक गहलोत ने आलाकमान के कहने के बावजूद कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष का चुनाव लड़ने से इंकार कर सरासर हुक्म उदूली की थी। उसके बाद भी कांग्रेस आलाकमान के गहलोत से अंधी मोहब्बत की असली वजह समझ से परे है।

यह साफ दिखाई दे रहा है कि राजस्थान कांग्रेस में अशोक गहलोत, बार-बार सचिन पायलट को अपमानित कर रहे हैं। उनके खेमे के तमाम मजबूत लोगों की टिकट काटने की साजिश कर रहे हैं। उससे सचिन पायलट और उनके समर्थक आर-पार की लड़ाई के मूड में आ सकते हैं। और अगर ऐसा हुआ तो 6 माह बाद होने वाले विधानसभा चुनाव के दौरान राजस्थान में भी, कांग्रेस का वैसा ही बेहाल हो सकता है, जैसा पंजाब के विधानसभा चुनाव में हुआ था।

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