(नीरज शर्मा) : जिस सोच जिस मंशा के साथ प्रधानमंत्री ने देश मे जेनेरिक दवा केंद्रों की शुरुआत कराई है उसमें अब स्वास्थ्य विभाग पलीता लगाने में जुटा हुआ है।है ये सच है कि अब बीमारी बढ़ गई है, मगर उन बीमारियों की दवाओ की पूर्ति के लिए खोले गए ये जेनेरिक दवा केंद्र मरीजों को बैरंग लौटा रहे है।प्रधानमंत्री की जन औषधि को अब संजीवनी की आवश्यकता पड़ गई है। स्वास्थ्य महकमा भी इसकी अनदेखी कर चुका है।
तमाम प्रयासों के बाद भी डाक्टर जेनरिक दवा नहीं लिख रहे हैं। यदि कोई डाक्टर इन दवाओं को लिख भी रहा है तो यह जेनरिक मेडिकल स्टोर में ही उपलब्ध नहीं है। ज्यादातर डाक्टर के लिखे पर्चे में ब्रांडेड दवा ही होती है। ऐसे में जेनरिक दवाओं का स्टाक ही नहीं मंगाया जाता। अनदेखी की वजह से जन औषधि दुकान अंतिम सांस ले रही है।
सिम्स सहित जिला अस्पताल परिसर में लगभग 4 मेडिकल स्टोर खोल दिये गए हैं।इसके बाद भी मरीजों को इन दुकानों को छोड़ कर बाहर के दवा दुकानों से ही दवाइयां लेनी पड़ रही है।अगर यही हाल रहा तो आने वाले दिनों में इन केंद्रों में ताला लटकता नज़र आएगा।