बही होली की बयार! लोगों दिलों में उत्साह बाजार में सजी रंग गुलाल की दुकाने
(मुन्ना पांडेय) : लखनपुर+ (सरगुजा) – आदिकाल से भारतीय संस्कृति में उत्सव त्योहरों का महत्व रहा है। होली भारतीय समाज का प्रमुख त्योहारों में से हैं। होली के आने का लोग बेसब्री से इंतजार करते हैं। भारत के विभिन्न क्षेत्रों में होली अलग अलग तरीके से मनाईं जाती है। इसी फेहरिस्त में सरगुजा जिले के नगर लखनपुर में परम्परानुसार होलिका दहन के दूसरे दिन फाग गीतों तथा रंग गुलाल से सराबोर पावन पर्व होलीउल्लास के साथ मनाया जाता है। रियासत काल में किसी भी त्योहार को मनाने कोटवार से मुनादी करा दी जाती थी। कालांतर में आधुनिकता ने अपना असर दिखाने लगा है पुराने सभी चलन तकरीबन खत्म से होने लगे है । लेकिन नगर में कुछ पुराने रिवाज आज़ भी जिंदा है । प्रथा अनुसार आज भी लखनपुर राजमहल के सामने बेलबाडी में होलिका दहन किया जाता है। आबादी बढ़ने कारण बस स्टैंड जूना लखनपुर में में भी होलिकादहन किया जाता है इन दोनों स्थानों पर ग्राम बैगा द्वारा सवत खूंटा अर्थात सेमल पेड़ का डंगाल होली से दो चार दिन पहले गाड़ दिया जाता है। जहां नगरवासियों द्वारा होलिका दहन की रस्म अदा की जाती है इस साल भी होलिका दहन की रस्म अदा की जायेगी ।
प्राचीन मान्यता रही है कि ग्राम बैगा सेमल पेड़ के डंगाल को सवत खूंटा के रूप में दोनों स्थानों पर गाड़ देता है जहां पुरवासी महिलाएं होलिका की पूजा अर्चना करती है बाद में होलिका दहन पंडित पुजारियों द्वारा बनाये समयानुसार किया जाता है। सेमल पेड़ के डंगाल गाड़ने के भी अपने रहस्य है। बताया जाता है इस सेमल पेड़ के डंगाल को होलिका के धधकते आग के बीच से बैगा द्वारा फरसे से काटा जाता है दरअसल कटे डंगाल के गिरने के दिशा से यह अनुमान लगाया जाता है कि आने वाले नये सवत साल में बारिश की हालत कैसी रहेगी। आस्था से जुड़ी पहलू है। फिलहाल चंद दिनों बाद होने वाली होलिका दहन में भद्रा काल की स्थिति निर्मित होने से होलिका दहन के समय को लेकर संशय की स्थिति बनी हुई है। संभवतः सोमवार को होलिका दहन की जायेगी तथा बुधवार को धूल उड़ानें के साथ होली का त्योहार मनाया जायेगा। बहरहाल भारतीय समाज में होली फागुन मास के शुक्ल पक्ष पूर्णिमा तिथि को ही मनाया जाता है। पौराणिक मान्यतानुसारमहाराजा हिरण्यकश्यप के पुत्र प्रह्लाद को तरह तरह की यातना दी गई थी जिसमें हिरण्यकश्यप के बहन होलिका को आग में नहीं जलने का वरदान प्राप्त था जो अपने भतीजे प्रहलाद को गोद में लेकर बैठ गई परंतु अग्नि देव के प्रभाव से होलिका जल कर राख हो गई वहीं भक्त प्रहलाद अपने ईश्वर भक्ति के कारण आग में जलने से बच गया। जिसके खुशी में लोगों ने होलिका के जले राख को उड़ाते हुए होली मनाया था वह दिन भी फागुन मास की पूर्णिमा तिथि थी।यह कथा सर्व विदित है। इस तरह होली से जुड़ी अनेकों किस्से कहानियां धर्म ग्रंथों में मिलता है। और उसी को आधार मानकर क्षेत्र विशेष में होली का त्योहार मनाया जाता है।
फिलहाल नगर में होली (फागुन) मनाने की तैयारी जोरों पर है बाजारों में अबीर रंग गुलाल पिचकारी मुखौटे से दुकान सजे नज़र आने लगे हैं। तथा होली सामाग्री खरीदारी करने लोगों की भीड़ उमड़ने लगी है। शासन प्रशासन ने होली त्योहार तथा इस्लाम धर्म से जुड़े शबे बारात दोनों त्योहारों को लेकर एहतियात बरतते हुए नियम के दायरे में रहकर शांतिप्रिय ढंग से त्योहार मनाने दोनों समुदाय के लोगों से अपील की है ताकि कोई अप्रिय घटना न हो। बहरहाल होली त्योहार मनाये जाने को लेकर लोगों के दिलों में उमंग उत्साह की कोलाहल मची हुई है।