वहां… पटरी और जैक की मदद से रेल की तरह चल रहे हैं दो मंजिले मकान
(शशि कोन्हेर) : लोग पटरी पर आज तक रेलगाड़ी को दौड़ते हुए देखते रहे हैं , लेकिन कोई मकान चलता हुआ शायद ही किसी ने देखा होगा। यहांं पटरी पर गाड़ी के जैकों की मदद से मकान को चलाए जाने का मामला सामने आया है।
संगरूर के ब्लाक भवानीगढ़ के नजदीकी गांव रोशनवाला में यह नजारा दिख रहा है। यहां कारीगरों ने एक दो मंजिला मकान को पटरी पर चला दिया है। इस मकान को इसकी मौजूदा जगह से 500 फीट पीछे हटाया जा रहा है। इसके बाद इसे मोड़कर 60 फीट वितरीत दिशा में घुमाया जाएगा।
दिल्ली-कटरा एक्सप्रेस वे के मध्य में आई कोठी को बचाने को लिया ‘देसी इंजीनियरिंग’ का सहारा
कोठ को अब तक करीब 250 फीट की दूरी पूतक ले जाया गया है और आगे का काम जारी है। दरअसल भवानीगढ़ के बीज कारोबारी सुखविंदर सिंह सुक्खी की कोठी दिल्ली-जम्मू-कटरा एक्सप्रेस वे के बीच आ गई। करीब दो वर्ष पहले ही बनाई इस कोठी को वह अपनी आंखों के सामने टूटता हुआ नहीं देखना चाहते, क्योंकि इस पर करीब सवा करोड़ रुपये खर्च किए गए हैं।
इसलिए अपने सपनों के मकान को सुरक्षित रखने की खातिर उन्होंने ‘देसी इंजीनियरिंग’ यानि जुगाड़ तरीके का सहारा लिया है, जिसकी मदद से कोठी को मौजूदा जगह से 500 फीट दूर ले जाया जा रहा
500 फीट पीछे, 60 फीट साइड में शिफ्ट की जानी है कोठी
कोठी के मालिक मनजीत सिंह टीवाना व सुखविंदर सिंह सुक्खी ने बताया कि वे दो भाई हैं। उनका परिवार रोशनवाला गांव में खेत के मध्य में मौजूद कोठी में रहता है। कुछ वर्ष पहले ही उन्होंने इस कोठी का निर्माण करवाया था और यह वर्ष 2019 में तैयार हुआ था। कोठी के समीप ही उनकी गेहूं व धान के बीज तैयार करने वाली छोटी फैक्ट्री भी मौजूद थी, किंतु यह जगह दिल्ली-जम्मू-कटरा एक्सप्रेस वे के लिए अधिग्रहीत की जा रही जमीन के मध्य में आ गई है।
उन्हाेंने बताया कि इसके चलते उन्होंने अपनी फैक्ट्री को यहां से शिफ्ट कर लिया है। किंतु, इसके बाद उनकी कोठी भी अधिग्रहीत की जाने वाली जमीन में आ गई। कोठी का निर्माण कुछ वर्ष पहले ही हुआ है और इसमें एक-एक चीज उन्होंने अपनी पसंद की लगाई थी। इससे उनकी व उनके परिवार की भावनाएं भी जुड़ी हैं। ऐसे में मेहनत के सवा करोड़ रुपये से तैयार की गई कोठी को वह अपनी आंखों के सामने ध्वस्त होता नहीं देख सकते थे।
उन्होंने कहा कि अगर वह अब नई कोठी का निर्माण करने का विचार करें तो इसमें न केवल कई गुणा लागत बढ़ जाती बल्कि फिर ऐसी मनपसंद कोठी तैयार नहीं हो सकती। इसलिए उन्होंने अपनी कोठी को ज्यों की त्यों शिफ्ट करवाने का विचार किया। इसके लिए बकायदा माहिर कारीगरों की मदद ली, जिन्होंने इस कार्य को करने का जिम्मा उठाया है।
सुक्खी ने कहा कि बेशक एक्सप्रेस-वे के लिए अधिग्रहण की गई जगह का उन्हें मुआवजा मिलना है, लेकिन यह मुआवजा कोठी की लागत से बेहद कम है। इसलिए वह नई कोठी तैयार करने का आर्थिक नुकसान नहीं उठा सकते। आज निर्माण सामग्री की कीमत काफी अधिक है। यही कारण है कि वह अपने सपनों की कोठी को सुरक्षित तरीके से शिफ्ट करवा रहे हैं।
अपनाई गई लिफ्टिंग तकनीक यह बेहद चुनौती भरी
कोठी को शिफ्ट करने का जिम्मा लेने वाले ठेकेदार हसन अली व उनके पुत्र शाहिद खान ने कहा कि वे मकान को लिफ्ट करके ऊंचा उठाने का काम करते हैं, किंतु उन्होंने मकान को शिफ्ट करने का पहला प्रोजेक्ट हाथ में लिया है। कोठी को जगह से 500 फीट पीछे हटाना व फिर उसे घुमाकर विपरीत दिशा में 60 फीट पीछे करना है। हमने अब तक 250 फीट की दूरी को कवर कर लिया है।
उन्होंने बताया के कोठी को वे रोजाना दस से पंद्रह फीट ले जाते हैं। कोठी की नींव में गाड़ी के नीचे लगने वाले जैक काफी संख्या में लगाए गए हैं। इनके नीचे लोहे के रोलर लगाए हैं व लोहे की पटरी बिछाई गई है। इस पटरी पर रोलर की मदद से कोठी को धकेला जाता है। सभी जैक में कोड लगाए गए हैं और कोड के हिसाब से ही काम किया जाता है, ताकि संतुलन बना रहे व कोठी को सही सलामत शिफ्ट किया जा सके।
उन्होंने बताया कि यह बेहद चुनौती भरा कार्य है, क्योंकि दूरी काफी अधिक है व कोठी को सुरक्षित रखना भी जरूरी है। यह काम बेहद सावधानी व बारीकी से करना पड़ता है। तालमेल बनाकर काम किया जाता है और एक ही समय पर कोठी को पीछे धकेला जाता है।