(शशि कोन्हेर) : बिलासपुर : कोरबा में शनिवार को केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह की आम सभा में आई भीड़ को देखकर दूसरे कोई भले ही हैरत में पड़ जाए। लेकिन भाजपा नेताओं को इस सभा की जबरदस्त सफलता से इसलिए कोई आश्चर्य नहीं होगा… क्योंकि उन्हें पता है कि इस सभा के लिए भीड़ इकट्ठा करने में उन्हें कितने पापड़ बेलने पड़े है। फिर बीते कुछ दशकों से देश की जनता या कहें मतदाता की तासीर कुछ ऐसी बदली है कि अब सभाओं की भीड़ को पार्टी अथवा नेताओं की लोकप्रियता तथा चुनावी जीत के पूर्वानुमान का पैमाना नहीं माना जा सकता।
भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व को इस खुशफहमी में नहीं रहना चाहिए कि एक प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदल देने मात्र से पार्टी को जमीन पर मजबूत किया जा सकता है। प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के बदलाव को भाजपा के जमीनी कार्यकर्ता “ओल्ड वाइन इन ए न्यू बाटल” से अधिक तवज्जो नहीं दे रहे। उनकी सोच है कि बदलाव के बावजूद पार्टी पर अभी भी उन्हीं दिग्गजों का कब्जा हो सकता है।
जिनके कारण 15 साल की सल्तनत के बाद छत्तीसगढ़ में भाजपा की फजीहत हुई थी (और हो रही है)..उन्हें डर है कि यही पुराने ताहुतदार पार्टी के नए अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष को अपनी सोच और इरादों का बंधक बना सकते हैं। दरअसल आज छत्तीसगढ़ भाजपा की हालत उस मरीज की तरह हो गई है जिसे एक नहीं मल्टीपल डिजीज हो गई हो। ऐसे में एक या दो दवाओं अथवा एकाध ऑपरेशन से मरीज के ठीक होने की उम्मीद करना मूर्खों के स्वर्ग में रहने के समान है। ठीक ऐसे ही छत्तीसगढ़ में भारतीय जनता पार्टी को हुई “मल्टीपल डिजीज” का इलाज मात्र एक प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदलने से ही हो जाएगा,. यह मानना, जमीनी सच्चाई से मुंह मोड़ने जैसा ही होगा।
फिर भाजपा का आम कार्यकर्ता अपनी आंखों से साफ-साफ देख रहा है कि भले ही प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष बदले गए हैं। लेकिन पार्टी में अभी भी उन्हीं दिग्गजों की चल रही है जिन्हे पार्टी कार्यकर्ता, छत्तीसगढ़ में भाजपा की दुर्गति के लिए जिम्मेदार मानते हैं। उन्हें नये पार्टी अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष इन्हीं पुराने दिग्गजों के प्रभाव और दबाव में दिखाई देने लगे हैं। भाजपा का हरावल दस्ता पार्टी में ऊपर से नीचे तक बदलाव चाहता है। उसका सोच है कि गंगा को अगर साफ करना है तो ऊपर गंगोत्री से लेकर नीचे हावड़ा (कोलकाता) तक करना होगा।
केवल प्रदेश अध्यक्ष और नेता प्रतिपक्ष के पद पर चेहरे बदल देने से कार्यकर्ताओं में कार्यकर्ताओं में वह बात नहीं दिखाई दे रही है जो विधानसभा चुनाव के 1 साल पहले दिखाई देनी चाहिए। कार्यकर्ताओं में जुझारूपन, जोश, मरजीवडापन किलरस्टिंट तथा पार्टी के लिए जान दे देने का जज्बा तभी आ सकता है… जब भाजपा में नीचे से ऊपर क्रांतिकारी बदलाव हो। अनेक मामलों में मतभिन्नता के बावजूद इस बात में कोई दो मत नहीं है कि प्रदेश के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बीते 4 साल में खुद की पहचान जिस तरह छतीसगढ़ के “पहले छत्तीसगढ़िया मुख्यमंत्री” के रूप में बना ली है।
उससे निपटना भाजपा के लिए आसान नहीं होगा। बड़े-बड़े नेताओं के दौरे और उन दोनों के लिए भारी मेहनत से जुटाई गई भीड़ इसका इलाज नहीं हो सकती। पार्टी का कार्यकर्ता अभी भी उस उपेक्षा और अपमान को नहीं भूल पाया है जो 15 साल की अपनी ही सरकार के कार्यकाल में उसे झेलना भोगना पड़ा है। और अफसोस की बात यह है कि पार्टी में अभी भी इसके लिए जिम्मेदार लोगों की ही तूती बोल रही है। न्याय के बारे में एक मान्य सिद्धांत यह कहा जाता है कि “न्याय ऐसा होना चाहिए जिससे लोगों को दिखना भी चाहिए कि हां.. न्याय हुआ है”.. ठीक यही बात भाजपा का कार्यकर्ता पार्टी में हुए बदलाव को लेकर कहता दिख रहा है कि पार्टी में सिर्फ कहने को बदलाव मत हो।
ऊपर ही ऊपर महज 2-4 चेहरे बदल देने से कोई बदलाव नहीं हो पाएगा। पार्टी में बदलाव तो ऐसा होना चाहिए… जिससे आम कार्यकर्ताओं को भी लगे कि हां… पार्टी में बदलाव हुआ है।
हमें यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि ऐसा बदलाव होने पर ही भाजपा का कार्यकर्ता फिर से पार्टी की लड़ाई को अपनी लड़ाई समझेगा और आग में कूदने को भी तैयार हो जाएगा। लेकिन हमारी समझ में इसके लिए भाजपा के जमीनी कार्यकर्ताओं की पहली और अंतिम शर्त यह है कि उसे, प्रदेश से लेकर जिले तक पार्टी की ऊंची कुर्सियों और प्रभाव वाले पदों पर वो चेहरे बिल्कुल दिखाई नहीं देनी चाहिए जिन्होंने पार्टी के “15 साला शासन” के दौरान उनका अपमान (उपेक्षा) किया था…और जो अधिकांश कार्यकर्ताओं को आज भी सख्त नापसंद हैं।