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विपक्षी एकता में ट्विस्ट, अडानी को मिला शरद पवार का साथ….क्या बनने से पहले ही बिगड़ गया खेल?

(शशि कोन्हेर) : अगले साल होने वाले लोकसभा चुनाव के लिए विपक्ष एकजुट होने की कोशिश में लगा हुआ है। कांग्रेस, आम आदमी पार्टी, तृणमूल कांग्रेस समेत तमाम विपक्षी दल बजट सत्र के दौरान कारोबारी गौतम अडानी को लेकर सामने आई हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को लेकर हमलावर रहे। अडानी और राहुल गांधी की सांसदी जाने के मामले में लंबे समय से बिखरा-बिखरा दिखाई दे रहा विपक्ष एक साथ नजर आया। सभी ने एक-दूसरे के साथ एक सुर मिलाए, जिससे पूरे सत्र के दौरान संसद लगातार स्थगित होती रही। विरोध प्रदर्शन होने के बाद भी सरकार ने विपक्ष की जेपीसी की मांग नहीं मानी, लेकिन इस बीच विपक्ष को अडानी मामले में बड़ा झटका जरूर लग गया। दरअसल, एनसीपी चीफ शरद पवार ने कांग्रेस समेत विपक्षी दलों के जेपीसी की मांग से खुद को अलग कर लिया है। पवार का यह कदम विपक्षी एकजुटता के लिए लोकसभा चुनाव से ठीक पहले अहम झटका माना जा रहा है।


तमाम विपक्षी दल एनसीपी चीफ शरद पवार की ओर उम्मीदों से देखते आए हैं। इसके पीछे का कारण पवार द्वारा महाराष्ट्र में कुछ साल पहले एक-दूसरे से विपरीत विचारधारा वाले दलों को साथ में लाना है। एनसीपी चीफ की वजह से ही महाराष्ट्र में शिवसेना, कांग्रेस और एनसीपी साथ आ पाए और सरकार बनाई। इसी वजह से लोकसभा चुनाव को लेकर भी विपक्षी दल उम्मीद कर रहे थे कि शरद पवार अपने अनुभव से जरूर विपक्ष को एकजुट रख सकेंगे और बीजेपी के खिलाफ कोई बड़ा विकल्प जनता को दे सकेंगे, लेकिन ऐसा होने से पहले ही विपक्ष का पूरा खेल बिगड़ गया।

एक इंटरव्यू में शरद पवार ने विस्तार से अडानी मामले पर बात की। उन्होंने साफ किया कि मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से ही करवाई जानी चाहिए, नाकि जेपीसी की। उल्लेखनीय है कि पूरे बजट सत्र के दौरान विपक्ष जेपीसी पर ही अड़ा रहा था। सुप्रीम कोर्ट द्वारा कमेटी बनाए जाने के बाद भी विपक्ष जेपीसी की मांग करता रहा। पवार ने इंटरव्यू में कहा, ”विपक्ष ने हिंडनबर्ग की रिपोर्ट को जरूरत से ज्यादा अहमियत दी। इस कंपनी के बारे में ज्यादा किसी को भी मालूम नहीं है। यहां तक कि इसका नाम भी हमने नहीं सुना।” पवार ने आशंका जताई है कि इस मामले में एक इंडस्ट्रियल समूह को निशाना बनाया गया है। पवार द्वारा अडानी समूह का समर्थन किए जाने से विपक्ष सकते में आ गया है।

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