CJI चंद्रचूड़ ऐसा क्यों बोले,वोटिंग से नहीं चुने जाते हैं जज, जनता का भरोसा जीतना जरूरी..
भारत के मुख्य न्यायाधीश डॉ. डीवाई चंद्रचूड़ ने बताया है कि अदालतों के लिए जनता का विश्वास कितना महत्वपूर्ण है। इस दौरान उन्होंने यह भी कहा कि चूंकि जज जनता द्वारा चुने नहीं जाते हैं इसलिए उनकी विश्वसनीयता और वैधता के लिए जनता का विश्वास आवश्यक है।
उन्होंने कहा कि जनता के विश्वास से ही अदालतों को अपना नैतिक अधिकार प्राप्त होता है। भूटान के जेएसडब्ल्यू स्कूल ऑफ लॉ में एक कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सीजेआई ने ये बातें कही हैं।
सीजेआई ने कहा, “लोकतांत्रिक सिद्धांत में जवाबदेही आमतौर पर निर्वाचित प्रतिनिधियों से जुड़ी होती है। निर्वाचित प्रतिनिधि सीधे अपने मतदाताओं और विधायी संस्थानों के प्रति जवाबदेह होते हैं।
कुल मिलाकर वे लोकप्रिय जनादेश द्वारा चुने जाते हैं। दूसरी ओर न्यायालय और न्यायाधीश संविधान या वैधानिक कानूनों के जनादेश से अपनी शक्तियां प्राप्त करते हैं
चंद्रचूड़ ने कहा, “न्याय न केवल किया जाना चाहिए बल्कि न्याय होते हुए दिखना भी चाहिए। अदालती प्रक्रिया में फंसे लोगों की तुलना में नतीजे दुर्लभ होते हैं।
इसलिए न केवल संवैधानिक परिणाम बल्कि संवैधानिक यात्राएं भी मायने रखती हैं। ओपन कोर्ट सुलभ अदालतें मिशन का महत्वपूर्ण हिस्सा हैं। प्रौद्योगिकी और सरल प्रक्रियाएं इन यात्राओं की कुंजी होंगी।”
सीजेआई ने कहा कि न्यायाधीशों के लिए जनता का विश्वास महत्वपूर्ण है क्योंकि हम अपने नागरिकों के दैनिक जीवन की समस्याओं से निपटते हैं।
सीजेआई ने कहा, “उस भरोसे को पूरा करने के लिए हमें उनके जूते में अपने पैर रखकर चलना चाहिए। उनकी वास्तविकताओं को समझना चाहिए और उनके अस्तित्व में समाधान खोजना चाहिए।”
सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि औपनिवेशिक संरचनाओं और कानूनी प्रक्रियाओं की पीड़ा से उभरने के बाद भारत में अदालतें सार्वजनिक धारणा के मामले में औपनिवेशिक बोझ से तुरंत मुक्त नहीं हुईं।
भारतीय संविधान ने स्वतंत्रता और संप्रभु संस्थानों के एक नए युग की शुरुआत की, लेकिन यह बदलाव हमारी कानूनी प्रक्रियाओं और प्रथाओं में तुरंत परिलक्षित नहीं हुआ।
स्वतंत्रता-पूर्व ब्रिटिश न्यायालयों के भारतीय न्यायाधीश रातोंरात स्वतंत्र भारत के उच्च न्यायालयों के न्यायाधीश बन गए।
हमारे आधुनिक न्यायालयों में विभिन्न प्रक्रियाएं स्वतंत्रता-पूर्व प्रक्रियाओं से मिलती जुलती हैं। स्वतंत्रता के बाद भले ही लोगों को अब नए संविधान के तहत कानूनी रूप से कई अधिकार प्राप्त हो गए थे, लेकिन इस कानूनी बदलाव का एहसास जमीन पर मुश्किल से ही होता था।