MP से राजस्थान तक क्यों भाजपा उतार रही सांसद और केंद्रीय मंत्री….
नई दिल्ली : दोपहर 12 बजे निर्वाचन आयोग ने मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ समेत 5 राज्यों के चुनाव की तारीखों का ऐलान किया था। फिर कुछ ही घंटों के अंदर भाजपा ने मध्य प्रदेश में 57 उम्मीदवारों की तीसरी लिस्ट जारी कर दी। इसके साथ ही राजस्थान के 41 उम्मीदवारों की पहली और छत्तीसगढ़ में 64 कैंडिडेट्स की भी दूसरी लिस्ट जारी हो गई।
तीनों ही राज्यों में कॉमन बात यह रही है कि भाजपा ने चुन-चुन कर सांसदों और मंत्रियों तक को मैदान में उतार दिया है। राजस्थान की पहली ही लिस्ट में भाजपा बाबा बालकनाथ, किरोड़ीलाल मीणा और राज्यवर्धन सिंह राठौड़ समेत 7 सांसदों को मैदान में उतारा है।
इसके अलावा छत्तीसगढ़ से भी रमन सिंह, अरुण साव समेत तीन सांसदों को मौका मिला है। मध्य प्रदेश से पहले ही कैलाश विजयवर्गीय, नरेंद्र सिंह तोमर जैसे नेताओं को विधानसभा चुनाव में उतारने का ऐलान हो चुका है। विधानसभा के चुनाव में भाजपा इस तरह सांसदों को उतारने से बचती ही थी।
लेकिन इस बार उसने अपनी रणनीति से सबको चौंका दिया है। यहां तक कि कई तो उम्मीदवार ही खुद को मौका मिलने से हैरान नजर आए, लेकिन दबे मन से ही सही, पार्टी के फैसले को मानने की बात कही।
राजस्थान में BJP की पहली लिस्ट, 7 सांसदों समेत 41 को टिकट
अब सवाल यह है कि भाजपा आखिर सांसदों और मंत्रियों तक को मैदान में क्यों उतार रही है। पार्टी के सूत्र और भाजपा की रणनीति को समझने वाले जानकार कहते हैं कि भाजपा इसमें कई फायदे देख रही है। इनमें से तीन की चर्चा सबसे ज्यादा है। पहला यह कि भाजपा सांसदों को उतारकर उस सीट पर जीत तय करना चाहती है, जहां से वे लड़ेंगे।
इसके अलावा आसपास की सीटों पर भी असर होने की उम्मीद कर रही है। इसकी वजह यह है कि सांसद का अपने संसदीय क्षेत्र की सीटों पर असर रहता ही है। एक संसदीय क्षेत्र में अमूमन 5 से 7 सीटें आती हैं। ऐसे में भाजपा को लग रहा है कि यदि सांसद मजबूती से विधायकी लड़ेंगे तो आसपास की सीटों को भी जीतने में मदद मिलेगी।
MP के लिए BJP ने जारी की 57 उम्मीदवारों की लिस्ट, किसे कहां से टिकट?
नरेंद्र सिंह तोमर, कैलाश विजयवर्गीय, राज्यवर्धन सिंह राठौड़ जैसे नेताओं से भाजपा यही उम्मीद कर रही है। दूसरा फैक्टर यह है कि भाजपा मध्य प्रदेश जैसे राज्य में एंटी-इनकम्बैंसी फैक्टर का सामना कर रही है। इसलिए कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ाने के लिए भी बड़े नाम जरूरी हैं। किसी भी राज्य में भाजपा सीएम उम्मीदवार नहीं उतार रही है। ऐसे में बिना सीएम फेस के ही मजबूत सामूहिक नेतृत्व के वह चुनावी जंग में जाने का प्लान कर रही है। खैर, यह तो 3 दिसंबर को आने वाले नतीजे ही बताएंगे कि भाजपा को इस रणनीति का कितना फायदा मिला है।