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ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ (।।) के निधन पर भारत में राजकीय शोक क्यों….जिस ब्रिटेन ने देश को लूटा, लाखों को मारा जेल में डाला.. उनके लिए काहे का शोक..?

(शशि कोन्हेर) :जो इस देश पर व्यापार करने के नाम से गिगियाते-रिरियाते पहुंचे थे। उन्होंने बदनियती से हमारे देश के राजाओं महाराजाओं को आपस में फूट डालकर लड़वाया और चंद जयचंदो़ की गद्दारी के दम पर पूरे भारत देश को अपने कब्जे में ले लिया। जिन्होंने अट्ठारह सौ सत्तावन से 1947 तक अनवरत चले स्वतंत्रता संग्राम को बलपूर्वक कुचलते हुए लाखों स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की हत्या कर दी।‌ बड़ी संख्या में लोगों को जेलों में डाल दिया। फांसी पर लटका दिया।

जेल से लेकर काला पानी की सजा दीं और बहुतों को ऐसे मारा कि उनका आज तक पता नहीं चल पाया। यह ठीक है कि एलिजाबेथ (।।) की ताजपोशी भारत के आजाद होने के 5 साल बाद 1952 में हुई थी। इसके आधार पर अधिक उदारवादी हिंदुस्तानी उन्हें निर्दोष और मासूम कर सकते हैं। लेकिन यहां बात एलिजाबेथ।। कि नहीं ब्रिटेन की हो रही है। आखिर उनके ही पूर्ववर्तियों ने 13 अप्रैल 1919 को बैसाखी के दिन जालियांवाला बाग जैसा नृशंस हत्या कांड किया। ऐसे लुटेरे और हत्यारे ब्रिटेन के राजा और राज परिवार को कैसी श्रद्धांजलि…और कैसा राजकीय शोक..? 

यहां आपको याद दिला दूं कि जालियांवाला बाग मैं बैसाखी के दिन इसी ब्रिटिश राजपरिवार और ब्रिटेन के नुमाइंदे जनरल ओ डायर ने निहत्थे लोगों पर गोली चला कर 1000 से अधिक लोगों की जान ले ली। और 2000 से अधिक लोग घायल हो गए। महामना पंडित मदन मोहन मालवीय ने तब दावा किया था है कि जालियांवाला बाग कांड में 13 सौ से अधिक लोग मारे गए थे।

यहां यह बता दें कि ब्रिटेन का राज परिवार…वहां की तीनों सेनाओं के साथ ही ब्रिटेन का सर्वोच्च अधिकारी होता है। मंत्रियों को शपथ दिलाने से लेकर तमाम काम ब्रिटिश राजघराने के लोग ही करते हैं। इसी राजपरिवार की छत्रछाया में तमाम अन्य औपनिवेशिक राज्यों की तरह भारत को भी 200 साल तक अपना गुलाम बना कर रखने वाले अंग्रेज 45 ट्रिलियन डॉलर से भी कई गुना अधिक संपत्ति भारत से लूट कर ब्रिटेन ले गए। इसके बाद भी उसी राज परिवार की 96 वर्षीय वृद्धा के निधन पर अगर हमारी सरकार 11 सितंबर को एकदिवसीय शोक घोषित करती है। तो यह सिर्फ भारत में ही हो सकता है।

महारानी एलिजाबेथ ।। 14 अक्टूबर 1997 को भारत की यात्रा पर आई थी। उस समय वे जालियांवाला बाग भी गई थीं। वहां नंगे पैर उन्होंने भीतर प्रवेश किया और शहीदों को नमन किया। लेकिन बार-बार इंगित करने के बावजूद उन्होंने ब्रिटेन के द्वारा इतना भयंकर नरसंहार करने के लिए अपनी ओर से कोई सार्वजनिक माफी नहीं मांगी। आज हमारा वो कोहिनूर हीरा भी उनके ही ताज की शोभा बढ़ा रहा है।

जिसे अग्रेज महाराजा रणजीत सिंह के खजाने से लूट कर ले गये थे। आश्चर्य होता है कि पूरे देश से गुलामी के प्रतीक कह कर कई सड़कों और शहरों के नाम बदलने वाली इस सरकार ने आखिरकार क्या सोच कर कल11 सितम्बर को एलिजाबेथ (।।) के निधन पर एक दिवसीय राजकीय शोक की घोषणा की है..?  सरकार की यह बात ना तो किसी को पच रही है और ना ही समझ में आ रही है।

यहां आप सभी को याद दिला दें कि जैसे हम पर अंग्रेजों ने कब्जा किया और हमें गुलाम बनाया। ठीक उसी तरह, चीन पर लंबे समय तक जापान ने भी कब्जा किया था। लेकिन एक समय ऐसा आया कि जापान ने चीन पर आक्रमण करने और वहां कब्जा कर अपना राज्य चलाने के लिए सार्वजनिक रूप से माफी मांगी। फिर ब्रिटेन को अपने को कर्मों के लिए भारत से माफी क्यों नहीं मांगनी चाहिए। ब्रिटेन भारत से सार्वजनिक  माफ़ी ना मांगे।

लेकिन क्या हम अभी भी इतने गुलाम मानसिकता के बने हुए हैं कि हम ब्रिटेन से दमदारी के साथ कह भी नहीं सकते कि उसे अपने कुकर्मों..लूट, हत्याओं और नरसंहार के लिए भारत से माफी मांगनी चाहिए। और जब तक वह ऐसा नहीं करता तब तक हम वहां के राजपरिवार अथवा सरकार के किसी अगुआ की मौत पर कम से कम राजकीय शोक की घोषणा जैसा शर्मनाक ढकोसला तो ना करें।

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